पिलिव जागीर (Piliv Vassal)


पिलिव जागीर (Piliv Vassal)
पिलिव नगर (जिला:सोलापुर,महाराष्ट्र) के मदने- पाटील खानदान के मुलपुरूष हिराजी नाईक(मदने)-जहागीरदार थेI वीर सरदार हिराजी नाईक को बिजापुर के सुलतान आदिलशाह ने पंद्रह सदी में पिलिव प्रांत की जागीर प्रदान कीI ”नाईक” एक बड़ी उपाधि थी जो सरदारों को दी जाती थीIआज पिलिव प्रांत में मदने परिवार की जनसंख्या लगभग चार हजार के करीब हैI सरदार हिराजी ने अपने खानदान की कुलदेवता श्री महालक्ष्मी देवी के मंदिर का निर्माण कियाI जहागीरदार हिराजी ने अपनी बेटी की शादी शेंडगे परिवार में की और बेटी के परिवार को देवी के मंदिर के पूजा का मान प्रदान कियाI देवी के मंदिर के विश्वस्त मदने- पाटील लोग हैI
आज भी मंदिर के पुजारी ब्राह्मण नहीं बल्कि शेंडगे धनगर(मेषपाल) लोग हैI
'जागीरदार' फ़ारसी भाषा के शब्द 'जागीर', अर्थात भूमि और दार, अर्थात अधिकारी से मिलकर बना है। जागीरदारी एक ऐसी प्रथा थी जिसमे सरदार को एक नियोजित प्रांत में से कर वसूल करने का अधिकार दिया जाता था। उस प्रांत का वो सरदार मालिक होता थाI सशर्त जागीर में जागीरदार को शासन के हित में कर वसूलने और सेना संगठित करने जैसे जनकार्य करने पड़ते थे। भूमि, जो कि 'इकता' कहलाती थी, आमतौर पर जीवन भर के लिए दी जाती थी और अधिकारी की मृत्यु के बाद जागीर फिर से शासन के अधिकार में चली जाती थी। जागीरदार को उत्तराधिकारी निश्चित रकम अदा करके जागीर का नवीनीकरण कर सकता था।
यह प्रथा छत्रपति शिवाजी महाराज ने बंद करवाई थी क्योंकि आम जनता और किसान इस प्रथा से त्रस्त थी।बाद में फिर यह प्रथा छत्रपति शाहू प्रथम ने शुरू की और पिलिव की जागीर भोसले खानदान के पास गईI ब्रिटिश शासन काल में फिर यह प्रथा बंद हो गयी और 'जागीरदार' सिर्फ नाम के रेह गयेI
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