Posts

Showing posts from 2016

प्राचीन काळांपासून पशुपालन करणारा समाज म्हणजे - धनगर समाज !

प्राचीन काळांपासून पशुपालन करणारा समाज म्हणजे - धनगर समाज ! वैभवशाली आणि गौरवशाली इतिहास घडवणारा समाज म्हणजे - धनगर समाज ! आपल्या पशुपालन या पारंपारीक व्यवसायामुळे सर्वत्र पसरलेला व तेथील भाषेनूसार वेगवेगळ्या नावांनी ओळखला जाणारा समाज म्हणजे - धनगर समाज ! पण असे असून देखील आपले सामाजिक, सांस्कृतिक आणि धार्मिक परंपरेची एकोप्याने ठेवन करणारा समाज म्हणजेच - धनगर समाज ! प्रामुख्याने गाई, म्हैस, शेळ्या आणि मेंढ्या अशा दुभत्या जनावरांचे पालन करणाऱ्या या धनगर समाजाचा उल्लेख आजकाल फक्त मेंढपाळ या अर्थाने केला जातोय. मेषपालन करणारा समाज धनगर आहेच पण धनगर शब्दाची व्याप्ती फक्त मेषपालनापर्यंतचीच नाही तर ती दुभत्या पशुपालनापर्यंत आहे. अगदी सोप्या भाषेत सांगायचे तर, दुभत्या जनावरांचे पालन करणारा समाज म्हणजेच धनगर समाज. वैदिकाची ॠषी परंपरा (Vaidic sanskriti is also developed by ancient Hotar/Hatti tribe of Shepherds.) ,जैन समाजाची मुनी परंपरा ,तर धनगर समाजाची सिध्द परंपरा या देशात लाखो वर्षापासुन सुरु आहे . हलू म्हणजे दूध दुधावर जगनारा म्हणजे हा धनगर समाज .हलसिध्दनाथाची(अप्पाचीवाडी) भाकणुक आजह...

वैदिकाची ॠषी परंपरा ,जैन समाजाची मुनी परंपरा ,तर धनगर समाजाची सिध्द परंपरा या देशात लाखो वर्षापासुन सुरु आहे

Image
वैदिकाची ॠषी परंपरा ,जैन समाजाची मुनी परंपरा ,तर धनगर समाजाची  सिध्द   परंपरा या देशात लाखो वर्षापासुन सुरु आहे  . हलू म्हणजे दूध दुधावर जगनारा म्हणजे हा धनगर समाज .हलसिध्दनाथाची(अप्पाचीवाडी) भाकणुक आजही प्रसिध्द आहे ."या देशावर भगवा झेंडा फडकेल " हे हुईक सांगितल गेल आहे .हालमत हे धनगर समाजाचे सत्यावर आधारित नैतिक विचारधारा आहे .हलमत हेच धनगर समाज भगवदगीते प्रमाणे मानतात .धनगर ही या देशातील आती प्राचीन स्वतंत्र अस्तित्व असणारी विचार व आचार धारा आहे .धनगर ही संपूर्ण देशभर आढळणा री बहुभाषिक जमात आहे . कुरबर, कुरम्बा, धनगर ,भरवाड ,मालधारी, गाडरी, रायका ,रबारी, पाल, बघेल ,बकरवाल अशी एक ना आनेक बहुभाषिक नावाने धनगर समाज ओळखला जातो . मुस्लिम समाजापेक्षा मोठी म्हणजे १५ ते १६ कोटि ही एकत्रित लोकसंख्या आहे . औषधी युक्त शेळया मेंढ्याच दुधातुन आलेली कटाक निरोगीपणा मेंढ़पाळीतुन भटकंती त्यातून ज्ञान प्रदेशाची माहिती त्यामुळे सैन्यातील मोठा सहभाग हे धनगर समाजाचे वैशिष्ट्य राहिले आहे धनगर ही मोठी उपेक्षित आदिवासी जमात विकसित समाजात आपली जागा शोधत आहे .हलमता प्रमाणे चालणारा हा समाज सत्यव...

• वाराह उपासक मिहिर पर्याय हूण (Mihir Varah Huns Gurjaras) (गुर्जरों की हूण उत्पत्ति पर नवीन दृष्टी)

• वाराह उपासक मिहिर पर्याय हूण (Mihir Varah Huns Gurjaras) ( गुर्जरों की हूण उत्पत्ति पर नवीन दृष्टी ) डा . सुशील भाटी https://www.facebook.com/manish.dorata/posts/1634485433522009

यूरोप में वाराह (राजशाही निशान) को हूणों का पर्याय माना जाता हैं, इसे हूणों कि शक्ति और साहस का प्रतीक समझा जाता हैं|

यूरोप में वाराह ( राजशाही निशान ) को हूणों का पर्याय माना जाता हैं , इसे हूणों कि शक्ति और साहस का प्रतीक समझा जाता हैं |   https://www.facebook.com/GurjarHistory/photos/a.1692611387619236.1073741828.1692582200955488/1819355051611535/?type=3 https://www.facebook.com/vinaykumar.madane/posts/936691289796620

Albino people of Indian origin have created false history all over the world

Image
Albino people of Indian origin have created false history all over the world मूल सप्तसिंधु लोगों से (कृष्णवर्णी) निर्माण हुए (बाहर निकाल दिए गए) रंगहीन(श्वेतवर्णी) लोगों ने विश्व में गलत इतिहास का निर्माण किया है।

प्राचीन ईरान के "मीदि" लोग

Image
प्राचीन ईरान के "मीदि" लोग  मीदि लोग अच्छी नस्ल के घोड़े की पैदाइश और घुमंतू मेषपालन के लिए इतिहास में प्रसिध्द थे।सिंध प्रांत के "मोहना' लोग प्राचीन "मीदि साम्राज्य" के वंशज है। "हवक्षत्र" इस वंश के महान सम्राट थे जिन्होंने शक्तिशाली "असेरियन" साम्राज्य को पराजित करके ईसा.पूर्व ६०० में "मिडीयन" साम्राज्य की स्थापना की थी और तत्कालीन विश्व में महासत्ता के रूप में उभर आये।पर्शियन सम्राट साइरस महान की माता "मंदाने"(मंदाना) मीदि सम्राट "आस्तायागस" की पुत्री थी।

असुर गुरु ज़रथुश्त्र (संस्कृत: हरित् + उष्ट्र ,सुनहरी ऊंट वाला)

Image
असुर गुरु ज़रथुश्त्र (संस्कृत: हरित् + उष्ट्र ,सुनहरी ऊंट वाला) प्रेषित ज़रथुश्त्र प्राचीन ईरान के "पारसी" धर्म के संस्थापक थे।"अहुरा मज़्दा"(संस्कृत असुर मेधा) पार्सियों की मुख्या देवता(Supreme God) है। महिषासुर(म्हसोबा) महाराष्ट्र के पशुपालों की(धनगर/गवली) लोगों की एक देवता है।शिव धनगरों की मुख्या देवता(Supreme God) है।इससे पारसी और धनगरों का पुराना रिश्ता पता चलता है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=867011096764640&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

सबसे जयादा कसाई मुस्लिम और कसाई खानों के मालिक हिन्दू : असद ईरशाद

सबसे जयादा कसाई मुस्लिम और कसाई खानों के मालिक हिन्दू : असद ईरशाद | 19 Aug 2016 भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी माँसाहार का सेवन करती है...यानि लगभग 75% भारतीय नॉन-वेज खाते है...इस पचहत्तर प्रतिशत मे हिन्दु, मुस्लिम, इसाई, दलित, और नास्तिक सभी आते है...पर माँसाहार के सेवन के लिए सबसे ज्यादा बदनाम मुसलमान है...क्योँ...? क्योकिँ यहाँ ज्यादातर कसाई मुसलमान होते है...गौमाँस हिँदुओ को छोड़कर बाकी सभी खाते है लेकिन गौमाँस खाने के लिए बदनाम सिर्फ मुसलमान है क्योकि गाय काटने वाले अधिकतर कसाई मुसलमान होते है...गौमाँस को छोड़ दे तो फिर बीफ(भैँस), मटन और चिकन खाने वालो मे हिंदु भी शामिल है...लेकिन फिर वही बात कि भैँस और बकरा काटने वाले कसाई भी ज्यादातर मुसलमान होते है...इसका मुल कारण ये है कि कसाई एक वंशानुगत पेशा है...कसाई का बेटा कसाई बनता है...जिस तरह दलितो का किसी और पेशे मे घुसने नही दिया जाता उसी प्रकार कसाईयो के साथ भी होता है...क्योकि लोग ये जानते है कि कसाई अगर अपना पेशा छोड़ दे तो फिर उनके थाली मे चिकन सुप, मटन कोफ्ता और बीफ फ्राई कैसै सजेगेँ...?कसाई समाज को भी अपने पेशे की वजह से अ...

रामजन्म भूमि , राम की नहीं बौध विहार है जिसे ब्राह्मणों ने तोडा था : वीरू कौशिक

रामजन्म भूमि , राम की नहीं बौध विहार है जिसे ब्राह्मणों ने तोडा था : वीरू कौशिक https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1665525757100294&id=100009286577739

गोरे रंग का रहस्य

Image
गोरे रंग का रहस्य भारतीय और यूरोपीय लोगों में गोरे रंग का उगम मध्य-एशिया (यूरेशिया) में है।भारतीय पशुपालों का यूरेशिया की पशुपाल महिलाओं से संगोग हो गया है। आजके ब्राह्मण मूल भारत के कृष्णवर्णी (काले) वैदिक आर्यों के नहीं बल्कि मध्य एशिया की गोरी "सिथियन" जाति के वंशज है।भारतपर आर्य आक्रमण का कोई भी प्रमाण नहीं है। ईसा पूर्व ३०० से भारत पर सिथियन लोगों का आक्रमण होने लगा था।सिथियन लोगों ने भारत पर सत्ता की स्थापना की थी और ईसा.पूर्व ३०० के बाद के ज्यादातर राजवंश सिथ ियन वंश के थे।भारत आने के बाद सिथियन लोगों ने वैदिक सभ्यता को ही समर्थन दिया था।ब्राह्मण सिथियन लोगों की पुरोहित जाती थी। सुमेरियन और सिंधु सभ्यता के नष्ठ हो जाने के बाद ईरान और सिंधु सभ्यता के प्रगत लोग विपुल चरवाहा क्षेत्र की उपलब्धता के कारण मध्य एशिया गये थे।भारतीय पुरूषों का यूरेशिया की गोरी महिलाओं के साथ संयोग हो गया। इसी कारण भारत के धनगरों के डीएनए में भारतीय पुरुष और यूरेशियन महिलाओं का प्रमाण ज्यादा है। अभी तक ये विरोधाभास विद्वानों को रहस्यमय ही रहा है।भारत वापस आते समय ये लोग सिथियन(शक),हुन औ...

आर्य आक्रमण सिद्धांत:मिथक/काल्पनिकता है

Image
आर्य आक्रमण सिद्धांत:मिथक/काल्पनिकता है(सुमेरियन,इजिप्तशियन और सिंधु सभ्यता के बाद ही हो गया आर्यों का उगम) ये शिल्प प्राचीन पर्शियन लोगों का है जिन्हें अभी तक गोरे आर्य समझा जाता है।पर्शियन और भारतीय(वैदिक) आर्यों का उगम ईरान की प्रगत सुमेरियन और भारत की सिंधु सभ्यता के बाद ही हो गया था। इसका मतलब आर्य लोग सुमेरियन और सिंधु वासियों के ही वंशज थे।भारतीय पुराण में "सुमेरु पर्वत" का संदर्भ आता है। गोरे रंग का रहस्य गोर रंग का उगम मध्य-एशिया (यूरेशिया) में हो गया था। सुमेरि यन और सिंधु सभ्यता के नष्ठ हो जाने के बाद ईरान और सिंधु सभ्यता के प्रगत लोग विपुल चरवाहा क्षेत्र की उपलब्धता के कारण मध्य एशिया गये थे।भारतीय पुरूषों का यूरेशिया की गोरी महिलाओं के साथ संयोग हो गया। इसी कारण भारत के धनगरों के डीएनए में भारतीय पुरुष और यूरेशियन महिलाओं का प्रमाण ज्यादा है। अभी तक ये विरोधाभास विद्वानों को रहस्यमय ही रहा है। भारत वापस आते समय ये लोग शक,हुन और गुर्जर नाम से जाने गए।कुछ लोग भारत और ईरान से इस्राइल गए जिन्हें अभी "ज्यु" कहा जाता है।इस्राइल के इतिहासकारों ने भी अ...

प्राचीन सुमेर लोग(मेसोपोटेमिया/ईरान-इराक)

Image
प्राचीन सुमेर लोग(मेसोपोटेमिया/ईरान-इराक) सिंधु,पर्शियन,शक और सुमेर लोगों का मूल एक ही था। सिंधु और सुमेरियन लोगों की संस्कृति असुर/नाग संस्कृति थी।पर्शियन लोगों की देवता भी "असुर" ही थी।सिंधु और सुमेर लोगों की भाषा आद्य-पाली (हिंदी,मराठी इत्यादि भाषाओं की पूर्वज ) थी। सुमेरियन साहित्यामधील पुराणकथांमध्ये 'आरट्टा' नामक प्रदेशाचे उल्लेख आढळतात. तेथील प्रथम राजा उरूक होता. उरूक नावाचा प्रदेश आणि राजा मेसोपोटोमिया भागात असल्याचे शिलालेखीय उल्लेख आहेत. त्यांची एक देवता 'इनाना'  हि या प्रदेशातील होती त्यामुळे हे स्थान अत्यंत पवित्र मानण्यात येत असे. त्याचबरोबर त्यांचा ईश्कुर नामक देवता हा 'शेतकऱ्यांचा देव' मण्यात असे. पाश्चात्य अभ्यासकांच्या मते शिलालेखात उल्लेख असलेला 'शुरूप्पक' प्रदेश म्हणजेच आरट्टा असावा. त्यांच्यात राजाला/देवता 'दुमूझिद मेंढपाळ', 'दुमूझिद कोळी' असे पण उल्लेख आढळतात. (मेंढपाळ आणि कोळी हे मी मराठी अर्थाने लिहिलेले शब्द आहेत). इनाना देवीने 'दुमूझिद' हा मेंढपाळचा प्रमुखाला आरट्टामधील राजा म्हणून नेमले होत...

मोहेंजो-दारो :एक नस्लीय हमला:आदिवासियों द्वारा मोहेंजो-दारो पर मुकदमा महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰

Image
मोहेंजो-दारो :एक नस्लीय हमला:आदिवासियों द्वारा मोहेंजो-दारो पर मुकदमा महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰ कौशम्बी ने महिषासुर या म्हसोबा को "गवली" या "यादव" माना है।कबीर बेदी फिल्म में खलनायक हैं और बेदी को महिषासुर वाला आदिवासी गेटअप दिया गया है। दुनिया की प्राचीन और महानतम सभ्यता ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ पर आधारित आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्मित फिल्म ‘मोहेंजो-दारो’ का तीखा विरोध करते हुए आदिवासी समाज ने झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में पुलिस में मामला दर्ज कराया है। गांव, तहसील और जिला स्तर से लेकर सोशल मीडिया तक में आदिवासियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। फिल्म मोहेंजो-दारो में आशुतोष गोविरकर ने आर्यों को सिंधु सभ्यता का वासी बताया है और आर्य नायक शरमन (ऋतिक रोशन) द्वारा खलनायक महम (कबीर बेदी, जो महिषासुर के लुक में हैं) और उसकी सत्ता का नाश दिखाया गया है। मोहेंजो-दारो को बैन करने की मांग महिषासुर को अपना देवता बताते हुए ग्राम डाही, जिला धमतरी, छत्तीसगढ़ की पंजीकृत संस्था आदिवासी एवं विशेष पिछड़ी जनजाति विकास ...

ब्रिटिश और निज़ाम भी रखते थे धनगरों से कौफ़

Image
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=864435953688821&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

घुमंतू हूण जाति (हूण नोमेडिक ट्राइब/इंडो-ईरानियन्स)

Image
घुमंतू हूण जाति (हूण नोमेडिक ट्राइब/इंडो-ईरानियन्स) घुमंतू योद्धा "अटिला द हूण":हंगरी देश के संस्थापक अटिला का जन्म मध्य एशिया की आदिवासी और मेषपाल "हूण"नाम की जाती में ईसा.४०० में हुआ था।अटिला ने मेषपाल "हूण" जाती को संघटित करके उन्हें "हंगरी"(हूण-गुर्जर) देश के रूप में उभर लाया है। अटिला ने शक्तिशाली "रोम" साम्राज्य को हिलाया था।अटिला हंगरी देश का "नेशनल हीरो" है। पूर्वी रोमन सम्राट् थियोडोसियस द्वितीय की पोती हांनारिया को, दरबार के एक कर्मचारी पर मोहित होने के कारण बन् दी बनाया गया था। उस लड़की ने निराश होकर अपनी अंगूठी अत्तीला को भेजी तथा अपने को मुक्त कराने और पति बनने की प्रार्थना की। अत्तीला तुरन्त दक्षिण की ओर बढ़ा और कांस्टेंटीपल के निकट पहुंच गया। इतिहासज्ञ गिब्बन के अनुसार उसने अपनी सफलता में ७० नगर नष्ट कर दिए। रोमन सम्राट् ने उससे बहुमूल्य शान्ति-सन्धि करनी पड़ी। अत्तीला हांनारिया को अपनी दुल्हन समझता रहा। उसने अगले आक्रमण के लिये बहाने के रूप में उस सम्बन्ध को कायम रखा। सम्राट् को एक और सन्धि करने के लिये विव...

Kumari Kandam(Tamil) Civilization:Ten Lac years old civilization कुमारी कंदम सभ्यता (तमिल सभ्यता) आज से दस लाख वर्ष पूर्व इतनी प्राचीन थी।इंडो-यूरोपीय लोग मूलतःघमंतू(ट्राइबल/नोमेडिक) संस्कृति से थे।द्रविड़ियन लोग नगरी(सिविलाईज़ेड) संस्कृति से थे।

Image
Kumari Kandam(Tamil) Civilization:Ten Lac years old civilization कुमारी कंदम सभ्यता (तमिल सभ्यता) आज से दस लाख वर्ष पूर्व इतनी प्राचीन थी।इंडो-यूरोपीय लोग मूलतःघमंतू(ट्राइबल/नोमेडिक) संस्कृति से थे।द्रविड़ियन लोग नगरी(सिविलाईज़ेड) संस्कृति से थे। कुमारी कंदम की अनकही कहानी: हिंद महासागर में मानव सभ्यता का उद्गम स्थल तमिल लेखकों के अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास, अफ्रीका महाद्वीप में ना होकर हिन्द महासागर में स्थित ‘कुमारी कंदम’ नामक द्वीप में हुआ था | इसे कुमारी नाडु के नाम से भी जाना जाता है | कुछ लेखक तो इसे रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला राम सेतु भी इसी महाद्वीप में पड़ता है |इस राम सेतु के अस्तित्व को तो नासा ने भी सिद्ध कर दिया है | इसलिए अब शक की संभावना कम ही बनती है | कुमारी कंदम का इतिहास: तमिल साहित्य के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में कुमारी कंदम नाम की एक तमिल सभ्यता थी , जो कि अब हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी है सन 1903 में V.G. सूर्यकुमार ने इसे सर्वप्रथम Kumarinatu" ("Kumari N...

South India:The origin of Aryans (दक्षिण भारत:आर्यों का मूलस्थान)

Image
South India:The origin of Aryans (दक्षिण भारत:आर्यों का मूलस्थान) कई विद्वानों का दावा है की आर्य मूलतः भारत के नहीं थे। लेकिन सच तो ये है की आर्य मूलतः दक्षिण भारत के थे। पुराणों में उल्लेख है की "विवस्वत मनु" या "सत्यव्रत" जो प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे वो "द्रविड़ देश"(दक्षिण भारत) के राजा थे।रामसेतु भी दक्षिण भारत में ही है। ईसाई और मुस्लिम रामसेतु को "आदम ब्रीज" के नाम से जानते है और "आदम"(मनु) श्रीलंका से पश्चिम-एशिया आने का दावा करते है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=862665147199235&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

Totemic Culture of Dhangars(Indus Culture) धनगरों की कुल और देवक संस्कृति (सिंधु संस्कृति)

Image
Totemic Culture of Dhangars(Indus Culture) धनगरों की कुल और देवक संस्कृति (सिंधु संस्कृति) सिंधु संस्कृति कुल और देवक संस्कृति थी।प्राचीन काल में धनगरों के अलग अलग कबीले होते थे।इन कबीलों को "कुल" या "गण" कहा जाता था। हर एक कुल का कुलचिन्ह या देवक होता था।ये कुलचिन्ह उनके प्रिय प्राणी,पक्षी और वृक्ष(नाग,कदंब,कमल,मोर,गरुड़,पंचपल्लव इत्यादि) होते थे। प्राचीन काल में धनगरों के प्रमुख दो मुख्य प्रकार थे। एक भारत के "मूलनिवासी" धनगर और दूसरा "सिथियन" यानि की "शक" जो ईरान और मध्य-एशिया के घुमंतू मेषपाल थे।सिथियन लोग भारत आने के बाद उनका मूलनिवासी धनगरों के साथ संयोग हो गया। कई विद्वानों का दावा है की आर्य मूलतः भारत के नहीं थे। लेकिन सच तो ये है की आर्य मूलतः दक्षिण भारत के थे। पुराणों में उल्लेख है की "विवस्वत मनु" या "सत्यव्रत" जो प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे वो "द्रविड़ देश"(दक्षिण भारत) के राजा थे।रामसेतु भी दक्षिण भारत में ही है। ईसाई और मुस्लिम रामसेतु को "आदम ब्रीज"...

प्रभु श्रीराम के अस्तित्व के शास्त्रीय सबूत

Image
प्रभु श्रीराम के अस्तित्व के शास्त्रीय सबूत वाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के नवम् सर्ग के श्लोक 5 में बताया गया है कि जब हनुमान जी सीता जी की खोज के लिए लंका में रावण के भवन के पास से निकले तो उन्होंने वहाँ तीन और चार दाँतों वाले हाथी देखे। श्री पी. एन. ओक के अनुसार आधुनिक प्राणी शास्त्रियों का मानना है कि ऐसे हाथी पृथ्वी पर थे तो अवश्य किन्तु उनकी नस्ल को समाप्त हुए 10 लाख वर्ष से अधिक समय हो गया। दूसरे शब्दों में श्रीराम की कथा दस लाख वर्ष से अधिक प्राचीन तो है ही साथ ही ऐतिहासिक भी है। https://www.facebook.com/vinaykumar.madane/posts/862249023907514

Ancient Indian Science

Image

Million-year-old tools found near Chennai - India’s prehistory pushed back

Million-year-old tools found near Chennai - India’s prehistory pushed back भारत में सिंधु संस्कृति से भी लाखो साल पहले थी प्राचीन सभ्यता। ७५००० साल पहले इंडोशिया में हिन्दू धर्म के अस्त्तित्व के प्रमाण मिले है।

भारत में सिंधु संस्कृति से भी लाखो साल पहले थी प्राचीन सभ्यता

Image
भारत में सिंधु संस्कृति से भी लाखो साल पहले थी प्राचीन सभ्यता दक्षिण भारत और इंडोशिया में ७५००० साल पहले वैदिक सभ्यता के अस्त्तित्व के प्रमाण मिले है।दक्षिण भारत से ही कुछ लोग जाकर उत्तर ध्रुव (आर्क्टिक पोल) पर कुछ साल निवास करने की संभावना है।एक लाख साल पहले के पुरे विश्व में वैदिक सभ्यता के प्रमाण मिले है। प्रभु श्रीराम का अस्तित्व इस धरती पर दस लाख साल पहले होने के पुरातात्विक प्रमाण है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861322137333536&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

Arctic Home in The Vedas(वेदों का उत्तर ध्रुव मूलस्थान)

Image
Arctic Home in The Vedas(वेदों का उत्तर ध्रुव मूलस्थान)  टिलक महाराज,आपको विद्वान कहा जाता है। उत्तर ध्रुव से मानव आया इसका कोई जेनेटिक एविडेंस(अनुवांशिक प्रमाण) है क्या? अगर है तो दुनिया में कोई ऐसा एक भी मनुष्य नहीं है जिसमे उत्तर ध्रुव के डीएनए है।उत्तर ध्रुव पर आदिमानव कभी रहा ही नहीं तो डीएनए कहा से मिलेंगे?? इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार के लोग तो मध्य-एशिया के घुमंतू मेषपाल लोग थे। कहा मध्य -एशिया और कहा उत्तर ध्रुव?? https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861142950684788&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

प्राचीन इजिप्शियन लोग इस्राएल के मेषपाल लोगों का द्वेष करते थे।

Image
प्राचीन इजिप्शियन लोग इस्राएल के मेषपाल लोगों का द्वेष करते थे। ज्यादातर यूरोपियन लोग मध्य एशिया के "घुमंतू मेषपाल"(नोमेडिक ट्राइब/NT) लोगों के वंशज है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861116924020724&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

मेषपाल और किसान की विचारधाराएं

Image
मेषपाल और किसान की विचारधाराएं  किसान पर समाज व्यवस्था का नियंत्रण होता था। किसान अपनी जमीन का "दास" होता था। उसकी विचारधारा सिर्फ अपनी जमीं तक सिमित रहती थी।इसके विरूद्ध मेषपालन एक मुक्त जीवनशैली होती थी। मेषपाल का दॄष्टिकोण "विश्वव्यापक" होता था। विश्व के सभी धर्मों के धर्मगुरु और महान राजा मेषपाल समाज से आगे आये थे। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861112130687870&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

Why our ancestors were shepherds..

Image

Iranian origin of the Mauryan and Pallav Dynasty(:उत्तर भारत के "मौर्या" और तमिलनाडु के "पल्लव" वंश का ईरानी मूल (इंडो-ईरानियन्स/घुमंतू सिथियन/नोमेडिक ट्राइब/NT)

Image
Iranian origin of the Mauryan and Pallav Dynasty(:उत्तर भारत के "मौर्या" और तमिलनाडु के "पल्लव" वंश का ईरानी मूल (इंडो-ईरानियन्स/घुमंतू सिथियन/नोमेडिक ट्राइब/NT) The Pallavas thus sought to emulate the Maurya kings, who were of Iranic origin (Spooner 1915, p.406ff). It is important to note that the Iranic root-word "Mor" occurs all across the Iranian world: consider the "Mardian" tribe of Persians mentioned by Herodotus; "the Avestan name Mourva, the Marga of the Achaemenian inscriptions" (Spooner 1915, p.406), and the city of Merv, also known as "Merw, Meru or Maur", whose inhabitants are known as "Marga and Mourva" (ibid.), the legendary "Meru" mountain, the "Amorites" or "Amurru" of Syria and Palestine who possessed an Iranic ruling caste, the "Amu-Darya" river, "Amol" town just south of the Caspian, "Marwar" in Rajputana, the Oudh towns of "M...

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य अणि त्याच्या जन्मकुळाबद्दल घातलेले घोळ

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य अणि त्याच्या जन्मकुळाबद्दल घातलेले घोळ भारतीय संसदेच्या प्रांगणात भारताच्या पहिल्या सम्राटाचा एक प्रतिकात्मक पुतळा स्थानापन्न करण्यात आला आहे व त्याखाली गौरवाने लिहिलेय- "Shepherd boy-Chandragupta Maurya dreaming of India he was to create". विशेष म्हणजे हा पुतळा हिल्डा सेलेगम्यन या आंतरराष्ट्रीय किर्तीच्या महिला शिल्पकाराने तयार करुन संसद भवनाच्या परिसरात बसवण्यासाठी दान दिला होता. एका धनगर पुत्राने भारताचे विराट स्वप्न पाहिले. ग्रीकांविरुद्धचा पहिला स्वातंत्र्यलढा उभारला. त्यांना भारतातून अथक प्रयत्नांनी हुसकले आणि नंतर "गंग" सम्राट चंद्रमासि(ग्रीक उच्चार क्झ्यंड्रमास) चा पराभव करीत आपली एकछत्री सत्ता उभारली. भारतीय लोकशाहीने त्याला वाहिलेली ही मानवंदना आहे यात शंका नाही. हा गौरवशाली इतिहास आपण येथे थोडक्यात पाहुयात. मोरिय कुळ चंद्रगुप्ताचे "मौर्य" हे आडनाव कसे आले, त्याचे मूळ काय यावर इतकी परस्परविरोधी माहिती जातककथा, जैनसाहित्य, पुराणे व ग्रीक साधनांत आलेली आहे कि कोणीही गोंधळून जावे.याचे कारण हे की "पाटलिपुत्र" ...