मोहेंजो-दारो :एक नस्लीय हमला:आदिवासियों द्वारा मोहेंजो-दारो पर मुकदमा महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰
मोहेंजो-दारो :एक नस्लीय हमला:आदिवासियों द्वारा मोहेंजो-दारो पर मुकदमा
महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰ कौशम्बी ने महिषासुर या म्हसोबा को "गवली" या "यादव" माना है।कबीर बेदी फिल्म में खलनायक हैं और बेदी को महिषासुर वाला आदिवासी गेटअप दिया गया है।
महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰ कौशम्बी ने महिषासुर या म्हसोबा को "गवली" या "यादव" माना है।कबीर बेदी फिल्म में खलनायक हैं और बेदी को महिषासुर वाला आदिवासी गेटअप दिया गया है।
दुनिया की प्राचीन और महानतम सभ्यता ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ पर आधारित आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्मित फिल्म ‘मोहेंजो-दारो’ का तीखा विरोध करते हुए आदिवासी समाज ने झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में पुलिस में मामला दर्ज कराया है। गांव, तहसील और जिला स्तर से लेकर सोशल मीडिया तक में आदिवासियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
फिल्म मोहेंजो-दारो में आशुतोष गोविरकर ने आर्यों को सिंधु सभ्यता का वासी बताया है और आर्य नायक शरमन (ऋतिक रोशन) द्वारा खलनायक महम (कबीर बेदी, जो महिषासुर के लुक में हैं) और उसकी सत्ता का नाश दिखाया गया है।
मोहेंजो-दारो को बैन करने की मांग
महिषासुर को अपना देवता बताते हुए ग्राम डाही, जिला धमतरी, छत्तीसगढ़ की पंजीकृत संस्था आदिवासी एवं विशेष पिछड़ी जनजाति विकास संस्थान ने फिल्म मोहेनजो-दारो का विरोध करते हुए सभी अखबारों को प्रेस विज्ञप्ति जारी की। अध्यक्ष चंद्रप्रकाश ठाकुर, उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार नागरची, सचिव रामलाल मरई, कोषाध्यक्ष टोकेश्वर सिंह नेताम, संयुक्त सचिव सोमनाथ मंडावी ने कहा है कि फिल्म में मूल निवासियों के देवता भैंसासुर (महिषासुर) को बड़े घृणित तरीके से फिल्माया गया है जिससे आदिम संस्कृति अपमानित और धूमिल होती है। अतः इस फिल्म के प्रदर्शन पर बैन लगाया जाए।
महिषासुर को अपना देवता बताते हुए ग्राम डाही, जिला धमतरी, छत्तीसगढ़ की पंजीकृत संस्था आदिवासी एवं विशेष पिछड़ी जनजाति विकास संस्थान ने फिल्म मोहेनजो-दारो का विरोध करते हुए सभी अखबारों को प्रेस विज्ञप्ति जारी की। अध्यक्ष चंद्रप्रकाश ठाकुर, उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार नागरची, सचिव रामलाल मरई, कोषाध्यक्ष टोकेश्वर सिंह नेताम, संयुक्त सचिव सोमनाथ मंडावी ने कहा है कि फिल्म में मूल निवासियों के देवता भैंसासुर (महिषासुर) को बड़े घृणित तरीके से फिल्माया गया है जिससे आदिम संस्कृति अपमानित और धूमिल होती है। अतः इस फिल्म के प्रदर्शन पर बैन लगाया जाए।
नागपुर, महाराष्ट्र के गोंड मूलनिवासी आदिवासी समाज व गोंडवाना यूथ फोर्स ने पुलिस आयुक्त व जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंप कर फिल्म मोहेंजो-दारो के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की है। ज्ञापन में बताया गया है कि फिल्म में आदिवासियों के देवता महिषासुर को खलनायक बनाकर प्रस्तुत व प्रचलित कर हमसब का अपमान किया गया है और आदिवासी समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का षड्यंत्र भी किया गया है, जो प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जघन्य अपराध है। आदिवासी मूलवासी समाज ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर फिल्म पर रोक नहीं लगी तो आदिवासी सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे। शिष्ट मंडल में आदिवासी समाज तथा गोंडवाना यूथ फोर्स के सदस्य संतोष धुर्वे, किशोर वरखेड़े, अनिल कुमरे, पिंटू मरकाम, सोनू मसराम, भूपेश सिरसाम, कपिल कोटनाके, प्रह्लाद उइके, अनिल उइके, वडमेजी, रवि कंगाले तथा आदिवासी विद्यार्थी संगठन व विदर्भ ट्राइबल डॉक्टर एसोसिएशन के डॉ. नरेश कोरटी, डॉ. भूपेंद्र उइके सहित गोंड समाज के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
असुरों के गणराज्य
राजस्थान के आदिवासी विचारक पी.एन. बैफलावत कहते हैं-आर्य आगमन से पूर्व सिन्धुघाटी सभ्यता जो वर्तमान अविभाजित पंजाब, सिंध, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात की लोथल बंदरगाह तक तथा सतलुज, व्यास, रावी, चिनाव, झेलम, हर्हावती और सिंध नदियों के किनारों पर बसी थी, जहा सैकड़ों दुर्ग और नगर बसे थे, जिनके आधिपति वत्रासुर थे। उक्त उर्वर प्रदेश के उत्तर में हिन्दुकुश पर्वत और अफगानिस्तान थे। इस विषय में डॉ. नवल नियोगी ने अपनी अंग्रेजी पुस्तक ”नेटिव कल्चर ऑफ़ इंडिया दी वंडर देटवाज” में लिखा है की हड़प्पाई लोगो की (नाग, मत्स्य) संस्कृति ने एक नई प्रथा को जन्म दिया था जो गिल्ड अर्थात संघीय शासन प्रणाली थी, जो विशिष्ठ प्रकार के शिल्पी और देश रक्षार्थ योद्धा थे। यह राज प्रभुसत्ता संपन्न थी, जिसे ‘गार्ड किंग ‘ परम्परा भी कहा जाता था, यह परम्परा भारत के अतिरिक्त मेसोपोटामिया सभ्यता के आसीरिया और सुमेरिया में भी थी। प्रोटो-द्रविड़ मूलनिवासियों के अपने-अपने गणचिन्ह थे और अलग-अलग गणो के अलग-अलग जनपद थे। केन्द्र हड़प्पा और मोहजोदड़ो थे, आर्यों के आक्रमण और लम्बे संघर्ष के बाद ये बिखर गये, जिनकी पहचान आज गोंड, भील, मुण्डा, उराँव, संथाल, असुर व अन्य आदिवासी कबीलो के रूप मे की जा सकती है। गोंड लोग द्रविड़ो के साथ दक्षिण की ओर चले गये और मीणा, भील अरावली पर्वतमालाओं में तथा बाकी विंध्याचल व सतपुड़ा की श्रेणियो की कंदराओं मे अपना ठिकाना बनाया। असुर झारखण्ड, उड़ीसा व छत्तीसगढ़ की रूख कर गए।
वे बताते हैं कि सिंधु सभ्यता गणराज्य प्रणाली पर आधारित थी। सप्त सिन्धु गणराज्य वृतासुर के अधीन था। ऐसे 11 गणराज्य और थे। दूसरा गण प्रदेश जम्मू कश्मीर, नेपाल, भूटान, सिक्किम, उतरांचल और बर्मा तक महासुर के अधीन था, जिसे बाद में आर्यों ने रिश्तेदार बनाकर महादेव नाम दे दिया था और उसका महिमा मंडन कर 12 गणराज्यों पर अधिपत्य स्थापित किया। तीसरा गण प्रदेश भिंड-मुरेना पर्वतमाला और विन्ध्याचल पर्वतमाला क्षेत्र था, जिसका अधिपति शंबरासुर था। चौथा गण प्रदेश पूर्वी राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तक फैला था जो बाणासुर के अधीन था। पांचवा गण प्रदेश पश्चिमी मध्य भारत गुजरात प्रदेश तक फैला था जो वर्तासुर के अधीन था। छठा गण प्रदेश आसाम, नागालेंड और मिजोरम तक फैला था जिसका अधिपति महिषासुर था। सातवां – गयासुर, आठवां – बंगासुर, नौंवां – उदिश्र्वासुर, दसवां – मदरासुर, ग्यारहवां – केरिल्यासुर और बारहवां गणराज्य – जम्बकासुर के अधीन था।
राजस्थान के आदिवासी विचारक पी.एन. बैफलावत कहते हैं-आर्य आगमन से पूर्व सिन्धुघाटी सभ्यता जो वर्तमान अविभाजित पंजाब, सिंध, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात की लोथल बंदरगाह तक तथा सतलुज, व्यास, रावी, चिनाव, झेलम, हर्हावती और सिंध नदियों के किनारों पर बसी थी, जहा सैकड़ों दुर्ग और नगर बसे थे, जिनके आधिपति वत्रासुर थे। उक्त उर्वर प्रदेश के उत्तर में हिन्दुकुश पर्वत और अफगानिस्तान थे। इस विषय में डॉ. नवल नियोगी ने अपनी अंग्रेजी पुस्तक ”नेटिव कल्चर ऑफ़ इंडिया दी वंडर देटवाज” में लिखा है की हड़प्पाई लोगो की (नाग, मत्स्य) संस्कृति ने एक नई प्रथा को जन्म दिया था जो गिल्ड अर्थात संघीय शासन प्रणाली थी, जो विशिष्ठ प्रकार के शिल्पी और देश रक्षार्थ योद्धा थे। यह राज प्रभुसत्ता संपन्न थी, जिसे ‘गार्ड किंग ‘ परम्परा भी कहा जाता था, यह परम्परा भारत के अतिरिक्त मेसोपोटामिया सभ्यता के आसीरिया और सुमेरिया में भी थी। प्रोटो-द्रविड़ मूलनिवासियों के अपने-अपने गणचिन्ह थे और अलग-अलग गणो के अलग-अलग जनपद थे। केन्द्र हड़प्पा और मोहजोदड़ो थे, आर्यों के आक्रमण और लम्बे संघर्ष के बाद ये बिखर गये, जिनकी पहचान आज गोंड, भील, मुण्डा, उराँव, संथाल, असुर व अन्य आदिवासी कबीलो के रूप मे की जा सकती है। गोंड लोग द्रविड़ो के साथ दक्षिण की ओर चले गये और मीणा, भील अरावली पर्वतमालाओं में तथा बाकी विंध्याचल व सतपुड़ा की श्रेणियो की कंदराओं मे अपना ठिकाना बनाया। असुर झारखण्ड, उड़ीसा व छत्तीसगढ़ की रूख कर गए।
वे बताते हैं कि सिंधु सभ्यता गणराज्य प्रणाली पर आधारित थी। सप्त सिन्धु गणराज्य वृतासुर के अधीन था। ऐसे 11 गणराज्य और थे। दूसरा गण प्रदेश जम्मू कश्मीर, नेपाल, भूटान, सिक्किम, उतरांचल और बर्मा तक महासुर के अधीन था, जिसे बाद में आर्यों ने रिश्तेदार बनाकर महादेव नाम दे दिया था और उसका महिमा मंडन कर 12 गणराज्यों पर अधिपत्य स्थापित किया। तीसरा गण प्रदेश भिंड-मुरेना पर्वतमाला और विन्ध्याचल पर्वतमाला क्षेत्र था, जिसका अधिपति शंबरासुर था। चौथा गण प्रदेश पूर्वी राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तक फैला था जो बाणासुर के अधीन था। पांचवा गण प्रदेश पश्चिमी मध्य भारत गुजरात प्रदेश तक फैला था जो वर्तासुर के अधीन था। छठा गण प्रदेश आसाम, नागालेंड और मिजोरम तक फैला था जिसका अधिपति महिषासुर था। सातवां – गयासुर, आठवां – बंगासुर, नौंवां – उदिश्र्वासुर, दसवां – मदरासुर, ग्यारहवां – केरिल्यासुर और बारहवां गणराज्य – जम्बकासुर के अधीन था।
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Its True
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