रूद्रदेव और पुषाणदेव में संघर्ष का इतिहास :
रूद्रदेव और पुषाणदेव में संघर्ष का इतिहास :
वैदिक लोगों के देव पुषाण रुद्र के विरुद्ध जिते थे लेकिन पुराणों में रूद्र को शिवा और पशुपति को दक्ष-प्रजापति यह बड़ा स्वरुप देकर उसमें शिवा को विजेता और प्रजापति को पराजित दिखाया हैं। सति प्रथा भी बहुत बाद में विधवा महिलाओं पर निर्बंध डालने के लिए निर्माण की गई हैं। ऋग्वेद में देवी सति के कोई संदर्भ नहीं मिलते हैं। बाद में सति को शिवा की पत्नी दिखाकर शिवा का मानवीकरण(Manifestation) कियाँ गया हैं।
वैदिक लोगों के देव पुषाण रुद्र के विरुद्ध जिते थे लेकिन पुराणों में रूद्र को शिवा और पशुपति को दक्ष-प्रजापति यह बड़ा स्वरुप देकर उसमें शिवा को विजेता और प्रजापति को पराजित दिखाया हैं। सति प्रथा भी बहुत बाद में विधवा महिलाओं पर निर्बंध डालने के लिए निर्माण की गई हैं। ऋग्वेद में देवी सति के कोई संदर्भ नहीं मिलते हैं। बाद में सति को शिवा की पत्नी दिखाकर शिवा का मानवीकरण(Manifestation) कियाँ गया हैं।
पुराण मौर्य समय के बाद लिखे गए ,उस समय भारत में वैदिक लोगों की सत्ता जाकर शैव लोगों की सत्ता आयी थी। वास्तव में पुषाण और रूद्र दोनों पशुपालों की देवता थी और यह संघर्ष दो या दो से अधिक पशुपालों के कबीले में था।
राम,कृष्ण और विश्वामित्र यह राजा और ऋषी वैदिक लोगों के इंद्र के विरुद्ध युद्ध हारे थे।
पुषाण वैदिक लोगों के बारा आदित्यों में से एक मतलब वैदिक लोगों की प्रमुख "सूर्यदेवता" थी। पुषाण घुमंतू मेषपाल लोगों के लिए बहुत ख़ास थे।
रूद्र खास करके योद्धाओं की देवता थी। रूद्र के प्रति आदर दिखाने के लिए सर्वप्रथम शक क्षत्रपों ने रुद्रदामन और रुद्रसिंह नाम धारण किये थे।
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