पशुपालकाकडे कुळ –गोत्र अतिप्राचीन काळापासून(हिंदू धर्म स्थापनेच्या अगोदर पासून) होती
पशुपालकाकडे कुळ –गोत्र अतिप्राचीन काळापासून(हिंदू धर्म स्थापनेच्या अगोदर पासून) होती. चार कुटुंबाची बारा कुटुंबे आणि नंतर बावीस पोट-जाती तयार होण्यास हजारो वर्षाचा कालखंड गेला असेल, हे लक्षात घ्यावे लागेल.श्री.भालचंद्र नेमाडे यांचे "हिंदू" या पुस्तकातून आपल्या समजते कि वैदिक धर्मा मध्ये जाती मध्ये लग्न करणे बंधनकारक नव्हते,तसेच बरीच समृद्ध कुटुंब हा नियम पाळत नह्वती (अशी बरीच उदाहरणे सापडतात,ब्राह्मण मुलीनी धनगर समाजा मध्ये विवाह केल्याचे).ऋग्वेद हा कर्म नुसार वर्ण स्यीकारायची परवानगी देतो, आणि मनुस्म्र्ती हि रीग्वेदाच्या खूप नंतर च्या कालखंडानंतर लिहिली आहे, कारण त्याचा लेखक अज्ञात असून त्यांना हे माहित नव्हते की पूर्व इतिहासा मध्ये पशुपालक राजे राहिलेले आहेत.
अग्निवंश नागवंश की एक शाखा हैI
उत्पत्ति :-
परम्परा में परमार अग्निवंशी माने जाते है इसकी पुष्टि साहित्य और शिलालेख और शिलालेख भी करते है | अग्निकुंड से उतपत्ति सिद्ध करने वाला अवतरण वाक्पतिकुंज वि. सं. १०३१-१०५० के दरबारी कवी पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसहशांक -चरित पुस्तक में पाया जाता है जिसका सार यह है की आबू -पर्वत वशिष्ठ ऋषि रहते थे | उनकी गो नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए | इस पर वशिष्ठ मुनि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी(नाग-पुंड्र वंश के पुरुष की) जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ जो शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा उस वीर पुरुष के वंश का नाम परमार( परा-मुर यानी की शत्रु का विनाश) हुआ | परा-मुर से पुरु और मौर्य की उत्पत्ति हो गईI
उत्पत्ति :-
परम्परा में परमार अग्निवंशी माने जाते है इसकी पुष्टि साहित्य और शिलालेख और शिलालेख भी करते है | अग्निकुंड से उतपत्ति सिद्ध करने वाला अवतरण वाक्पतिकुंज वि. सं. १०३१-१०५० के दरबारी कवी पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसहशांक -चरित पुस्तक में पाया जाता है जिसका सार यह है की आबू -पर्वत वशिष्ठ ऋषि रहते थे | उनकी गो नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए | इस पर वशिष्ठ मुनि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी(नाग-पुंड्र वंश के पुरुष की) जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ जो शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा उस वीर पुरुष के वंश का नाम परमार( परा-मुर यानी की शत्रु का विनाश) हुआ | परा-मुर से पुरु और मौर्य की उत्पत्ति हो गईI
अग्निवंश से उत्पत्ति सम्बन्धी इस घटना को भविष्य पुराण ठीक ढंग से प्रस्तुत करता है | इस पुराण में लिखा है |
''विन्दुसारस्ततोअभवतु |
पितुस्तुल्यं कृत राज्यमशोकस्तनमोअभवत ||44||
एत्सिमन्नेत कालेतुकन्यकुब्जोद्विजोतम: |
अर्वूदं शिखरं प्राप्यबंहाहांममथो करोत ||45|
वेदमंत्र प्रभाववाच्चजाताश्च्त्वाऋ क्षत्रिय: |
प्रमरस्सामवेदील च चपहानिर्यजुर्विद: ||46||
त्रिवेदी चू तथा शुक्लोथर्वा स परीहारक: |
''विन्दुसारस्ततोअभवतु |
पितुस्तुल्यं कृत राज्यमशोकस्तनमोअभवत ||44||
एत्सिमन्नेत कालेतुकन्यकुब्जोद्विजोतम: |
अर्वूदं शिखरं प्राप्यबंहाहांममथो करोत ||45|
वेदमंत्र प्रभाववाच्चजाताश्च्त्वाऋ क्षत्रिय: |
प्रमरस्सामवेदील च चपहानिर्यजुर्विद: ||46||
त्रिवेदी चू तथा शुक्लोथर्वा स परीहारक: |
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