Chu-Han
Chuhan:
Puru-Maurya(Parmara/Pratihar),Sargar and Sul/Sullikas(Solanki and the Huns
The Chu–Han Contention (206–202 BC) was an interregnum between
the Qin
dynasty and the Han dynasty in Chinese
history.
Following the collapse of the Qin dynasty in 206 BC, Xiang
Yu split the former Qin Empire into the Eighteen
Kingdoms. Two
major contending powers, Western Chu and Han,
emerged from these kingdoms and engaged in a struggle for supremacy over China
Chu-Han
Chuhan: Chuhan is an aristocrat of Puru-Maurya(Parmara/Pratihar),Sargar ,Sul/Sullikas(Solanki) and the Hun clans.
Origin of Paramara: Parmara is the Agnivanshi clan is the sub-clan of the Nagvanshi race. The ancient inscriptions in the Pali Buddhist character have been discovered in various parts of Rajasthan of the race of Taxak(Naga) or Tak, relating to the tribe Mori and Parmara are their descendants. Taxak (Naga) Mori was the lord of Chittor from very early period. The Huna Kingdom of Sialkot (of Mihir Kula 515-540 AD), destroyed by Yashodharman, was subsequently seized by a new dynasty of called Tak or Taxaka. The Taxak Mori as being lords of Chittor from very early period and few generations after the Guhilots supplanted the Moris.प्राचीन सरगर वंश का
Chuhan: Chuhan is an aristocrat of Puru-Maurya(Parmara/Pratihar),Sargar ,Sul/Sullikas(Solanki) and the Hun clans.
Origin of Paramara: Parmara is the Agnivanshi clan is the sub-clan of the Nagvanshi race. The ancient inscriptions in the Pali Buddhist character have been discovered in various parts of Rajasthan of the race of Taxak(Naga) or Tak, relating to the tribe Mori and Parmara are their descendants. Taxak (Naga) Mori was the lord of Chittor from very early period. The Huna Kingdom of Sialkot (of Mihir Kula 515-540 AD), destroyed by Yashodharman, was subsequently seized by a new dynasty of called Tak or Taxaka. The Taxak Mori as being lords of Chittor from very early period and few generations after the Guhilots supplanted the Moris.प्राचीन सरगर वंश का
इतिहास
नवम्बर 2011 में प्रकाशित ‘‘क्षत्रिय सरगरा समाज का गौरवशाली इतिहास’के लेखन डॉ. आर. डी. सागर ने सरगरा समाज की उत्पति के सम्बन्ध में एक कथा का वर्णन किया है । दैत्य कुल में जन्मे राजाबली ने स्वर्ग का राज्य प्राप्त करने लिए यज्ञ प्रारंभ किया । देवताओं के गुरू वृहस्पति(महर्षी वसिष्ठ के बेटे) ने इस यज्ञ में एक जीवित मनुष्य की आहुति देने की आज्ञा दी । राजा बलि आहुति के लिए जीवित मनुष्य ढूंढते हुए ऋषि मानश्रृंग के आश्रम में पहुचे । मानश्रृंग ऋषि के 14 वर्षीय पुत्र सर्वजीत को पिता की सहमति से लेकर आए । यज्ञ में आहुति देने से एक दिन पहले सर्वजीत ऋषि वाल्मीकि के पास पहूँचा । ऋषि ने अपने तप के प्रभाव से उसे ऊर्जावान बना दिया । यज्ञ में सर्वजीत की जीवित आहुति दे दी गई । यज्ञ सवा तीन महीने चला । यज्ञ समाप्ति के बाद सर्वजीत यज्ञ की ढेरी से जीवित निकला । ऋषि वाल्मीकि ने सर्वजीत को सात साल पाला-पोषा पढाया । गुरू वाल्मीकि की आज्ञा का पालन करते हुए सर्वजीत ने अवंति के राजा सत्यवीर(चौहान वंश) की पुत्री मधुकंवरी के साथ विवाह किया । उनके तीन पुत्र हुए- 1. सर्गरा 2. सेवक तथा 3.गांछा । इस प्रकार इन तीन जातियों की उत्पति हुई । लेखक यह भी कहते है कि क्षत्रिय सरगरा जाति के लोग राजा बलि की तुलना में महर्षि वाल्मीकि को श्रद्वा से देखते है ।
नवम्बर 2011 में प्रकाशित ‘‘क्षत्रिय सरगरा समाज का गौरवशाली इतिहास’के लेखन डॉ. आर. डी. सागर ने सरगरा समाज की उत्पति के सम्बन्ध में एक कथा का वर्णन किया है । दैत्य कुल में जन्मे राजाबली ने स्वर्ग का राज्य प्राप्त करने लिए यज्ञ प्रारंभ किया । देवताओं के गुरू वृहस्पति(महर्षी वसिष्ठ के बेटे) ने इस यज्ञ में एक जीवित मनुष्य की आहुति देने की आज्ञा दी । राजा बलि आहुति के लिए जीवित मनुष्य ढूंढते हुए ऋषि मानश्रृंग के आश्रम में पहुचे । मानश्रृंग ऋषि के 14 वर्षीय पुत्र सर्वजीत को पिता की सहमति से लेकर आए । यज्ञ में आहुति देने से एक दिन पहले सर्वजीत ऋषि वाल्मीकि के पास पहूँचा । ऋषि ने अपने तप के प्रभाव से उसे ऊर्जावान बना दिया । यज्ञ में सर्वजीत की जीवित आहुति दे दी गई । यज्ञ सवा तीन महीने चला । यज्ञ समाप्ति के बाद सर्वजीत यज्ञ की ढेरी से जीवित निकला । ऋषि वाल्मीकि ने सर्वजीत को सात साल पाला-पोषा पढाया । गुरू वाल्मीकि की आज्ञा का पालन करते हुए सर्वजीत ने अवंति के राजा सत्यवीर(चौहान वंश) की पुत्री मधुकंवरी के साथ विवाह किया । उनके तीन पुत्र हुए- 1. सर्गरा 2. सेवक तथा 3.गांछा । इस प्रकार इन तीन जातियों की उत्पति हुई । लेखक यह भी कहते है कि क्षत्रिय सरगरा जाति के लोग राजा बलि की तुलना में महर्षि वाल्मीकि को श्रद्वा से देखते है ।
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