नागवंश और नागों का साम्राज्य







महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से नागपुर(महाराष्ट्र), तिरुवनंतपुरम(केरळ),असम, मणिपुर, नागालैंड, नागासाकी(जापान) तक इनका प्रभुत्व था। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं। नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंशतथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है।
कश्यप ऋषि और उनकी नाग पत्नी कुदरू के एक सौ एक नाग पुत्रों का पूरे काश्मीर से शकस्थान तक साम्राज्य फैला थाI अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला(पिंगळे)- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का भारत में वर्चस्व था। यह सभी कश्यप वंशी थे, लेकिन इन्ही से नागवंश चला।इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है।
नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला।
वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
कभी कभी अगर हम नागवंश को सुर्यवंश कहे तो गलत नही होगा क्योंकि सूर्यवंशी प्रभु श्रीराम के भ्राता लक्ष्मण जी शेषनाग थेI 
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