धनगर- पश्चिमी शक क्षत्रप वंश: " खरात" वंश के महाक्षत्रप नहपाना और " कर्दम(कदम) " वंश के महाक्षत्रप रुद्रदमन्. (ई.सा.35-405)
धनगर- पश्चिमी शक क्षत्रप वंश: " खरात" वंश के महाक्षत्रप नहपाना और " कर्दम(कदम) " वंश के महाक्षत्रप रुद्रदमन्.
कर्दम ऋषि :
कर्दम ऋषि की उत्पत्ति सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी की छाया से हुई थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रजा में वृद्धि करने की आज्ञा दी। उनके आदेश का पालन करने के लिये कर्दम ऋषि ने स्वयंभुव मनु के द्वितीय कन्यादेवहूति से विवाह कर नौ कन्याओं तथा एक पुत्र की उत्पत्ति की। कन्याओं के नाम कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति थे तथा पुत्र का नाम कपिल था। कपिल के रूप में देवहूतिके गर्भ से स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुये थे।
कथा
ब्रह्मा ने कर्दम को आज्ञा दी थी कि वह सृष्टि का विस्तार करें। कर्दम ने भगवान विष्णु को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके अपने लिए योग्य कन्या की याचना की। विष्णु ने कहा कि इसकी व्यवस्था वे पहले ही कर चुके हैं। भगवान विष्णु ने कर्दम से कहा, "स्वयंभुव मनु तुम्हारी कुटिया में पहुँचकर अपनी कन्या देवहूति का प्रस्ताव तुम्हारे सामने रखेंगे, जिसे तुम स्वीकार कर लेना।" विष्णु ने बताया कि वे स्वयं उसकी पत्नी के गर्भ से जन्म लेकर अवतरित होंगे।
कपिल
का जन्म
कला, अनसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति का विवाह क्रमश: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह,
ऋतु, भृगु, वसिष्ठ तथा अथर्वा से सम्पन्न हो गया। देवहूति ने 'कपिल'
को जन्म दिया, जो कि विष्णु के अवतार थे। कपिल अपनी मां देवहूति के साथ रहे तथा देवहूति ने उसे भक्ति-वैराग्य आदि के मार्ग पर अग्रसर किया। देवहूति ने उस आश्रम में रहकर ही गृहस्थ धर्म का परित्याग कर योग के द्वारा अध्यात्म पथ का अनुसरण किया। कपिल मां की आज्ञा लेकर पिता के आश्रम 'ईशानकोण' की ओर चले गये।
पितामह चष्टन
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इस वंश का शासन काल सम्भवतः 130 ई. से 388 ई. तक माना जाता है।
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नहपान की मृत्यु के बाद उसे कुषाण साम्राज्य के दक्षिण पश्चिमी प्रान्त का वायसराय नियुक्त किया गया था।
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'अन्धै' (कच्छखाड़ी) के अभिलेख से ज्ञात होता है कि,130 ई. में चष्टन अपने पौत्र रुद्रदामन के साथ मिलकर शासन कर रहा था।
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टॉल्मी के भूगोल (140 ई.) पता चलता है कि, अवन्ति या पश्चिम मालवा की राजधानी पर 'हिमास्टेनीज' का अधिकार था।
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इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि, चष्टन ने नहपान द्वारा खोए हुए कुछ प्रदेशों को सातवाहनों से पुनः जीतकर उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था।
महाक्षत्रप रुद्रदमन
परिचय
दक्षिण-पश्चिम के क्षत्रप शासकों में रुद्रदमन् का नाम विशेषतया उल्लेखनीय है। इन शासकों के वैदेशिक होने में संदेह नहीं है, पर रुद्रदामन्, रुद्रसेन, विजयसेन आदि नामों से प्रतीत होता है कि वे पूर्णतया भारतीय बन गए थे। इसकी पुष्टि उन लेखों से होती है जिनमें इनके द्वारा दिए गए दानों का उल्लेख है। जूनागढ़ के शक संवत् ७२ के लेख से यह विदित होता है कि जनता ने अपनी रक्षा के लिए रुद्रदामन् को महाक्षत्रप पद पर आसीन किया। यह संभव है कि शातकर्णि राजा गोतमीपुत्र के आक्रमण से शकों को बड़ी क्षति पहुँची और वंश की प्रतिष्ठा को उठाने के लिए यह प्रयास किया गया हो। रुद्रदामन ने जनता के अपने प्रति विश्वास का पूर्ण परिचय दिया, जैसा उक्त लेख में उसकी विजयों से प्रतीत होता है। उसने अपने पितामह चष्टन के साथ संयुक्त रूप से राज्य किया था। गौतमीपुत्र शातकर्णि ने शक, यवन तथा पल्हवों का हराया था तथा क्षहरातवंश का उन्मूलन किया था। चष्टन ने क्षति की पूर्ति के लिए मालवों पर विजय प्राप्त की और उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया। अंधौ लेख के अनुसार शक सं. ५२ में रुद्रदामन् जब अपने पितामह चष्टन के साथ संयुक्त रूप से राज्य कर रहा था उस समय उसका पिता जयदामन् मर चुका था। सं. ५२ और ७२ के बीच रुद्रदामन् ने उन भागों को जीता जिनपर अंध्र शात वाहन शासक गौतमीपुत्र ने पहले अधिकार कर लिया था। इनका क्रमश: उल्लेख उसके जूनागढ़ के लेख में मिलता है। उसने दो बार दक्षिणपति शातकर्णि को पराजित किया पर निकट संबंधी होने के कारण उसका नाश नहीं किया। इस शासक की समानता वाशिष्टीपुत्र श्री शातकर्णि पुत्र पुलुमाइ से की गई है। इसकी सम्राज्ञी, कणेहरी से प्राप्त एक लेख के अनुसार, महक्षत्रप रुद्र (रुद्रदामन्) की पुत्री थी।
जूनागढ़ के लेख में रुद्रदामन् के चौधेयों के साथ युत्र का भी उल्लेख है पर उनके नष्ट होने का प्रमाण नहीं मिलता। इस लेख में इस शासक के प्रशासक कार्यों का भी विवरण है। मौर्यकालीन सुदर्शन झील का बाँध भीषण वर्षा के कारण टूट जाने का भी उल्लेख है। रुद्रदामन् के समय में इसकी मरम्मत हुई थी। शक शासक स्वयं बड़ा विद्वान् था और वह विभिन्न विज्ञान, व्याकरण, न्याय, संगीत इत्यादि में पारंगत था। जनता के हित का उसे सदैव ही ध्यान रहता था और इसीलिए उसके शासन में विष्टि (बेगार) तथा प्रव्य (बिना वेतन के कार्य करवाने) इत्यादि की प्रथा न थी। मतिसचिव तथा कर्मसचिव नामक दो प्रकार के पदाधिकारी उसने नियुक्त किए थे।
धनगरांचे बलाढ्य " खरात" राजघराणे. पश्चिमी क्षत्रप साम्राज्य (इ. सन 35 ते 405) का शक्तिशाली खरात राजवंश.
महाक्षत्रप नहपाना:
क्षहरात घराण्यातील शकवंशीय नहपानाने गौतमीपुत्राच्या दुर्बल पूर्वजांवर वारंवार आक्रमणे करुन माळव्यापासून दक्षिणेपर्यंत असलेली सातवाहनांची सत्ता निष्प्रभ केली (या क्षहरातांचा व शकांचा संबंध होता व हे बहुधां मूळचे शकस्थानांतील (सीस्थान) रहिवासी होते). इतकी की गौतमीपुत्र राजा झाला तंव्हा त्याच्या ताब्यात साताऱ्याचा काही भाग सोडला तर काहीच उरले नाही. कोकण-गोमंतकही नहपानाने हिरावून घेतला असल्याने तेथल्या बंदरांतून चालणारा व्यापारही नहपानाच्या हाती गेला.
प्रथम हा सत्रप (गव्हर्नर) होता. पुढें यानें आपल्याला महाक्षत्रप व राजा हीं उपपदें लाविलीं. यानें आपलें राज्य दक्षिण राजपुताना ते नाशिक पुणेंपर्यंत (सुराष्ट्र काठेवाड धरून) वाढविलंन होतें.
क्षत्रप शब्द का प्रयोग ईरान से शु्रू हुआ था। क्षत्रप एक प्रकार की उपाधि थी, जो राज्यों के मुखिया के लिए प्रयुक्त की जाती थी। भारत में क्षत्रप शब्द आज भी राजनीति में प्रयोग किया जाता है।
नहपान हा क्षहरात घराण्यातील पश्चिमेवर राज्य करणारा एक क्षत्रप होता. मुळचे हे क्षत्रप कुशाणांचे(Khushan are Gurjars) अधिकारी, पण कुशाणांची सत्ता खिळखिळी झाल्यावर ते स्वतंत्र बनले. इ.स. ३२ मद्धे नहपान सत्तेवर आला. तो अत्यंत महत्वाकांक्षी होता. या काळातील सुंदर, चकोर वगैरे सातवाहन राजे दुर्बळ निघाले. याचा फायदा घेत त्याने सातत्याने स्वा-या करत सातवाहनांचा बहुतेक प्रदेश जिंकुन घेतला. पुढें यानें आपल्याला महाक्षत्रप व राजा हीं उपपदें लाविलीं. यानें आपलें राज्य दक्षिण राजपुताना ते नाशिक पुणेंपर्यंत (सुराष्ट्र काठेवाड धरून) वाढविलें होतें. याची राजधानी जुन्नर (पुणें जिल्हा) येथें होती.
गौतमीपुत्र सातवाहन सत्तेवर आला तेंव्हा सातारा-क-हाड एवढाच भाग त्याच्या स्वामित्वाखाली होता.
परंतु गौतमीपुत्र हा अत्यंत पराक्रमी पुरुष होता. त्याने नहपानावर सलग आक्रमणे सुरू केली. जवळपास वीस वर्ष त्याने नहपानाशी संघर्ष केला. त्याला पूर्वजांनी उभारलेल्या गिरिदुर्गांचाही त्याला उपयोग झाला.
विशेष पाहता (अहिर) सातवाहन राजा गौतमी पुत्र सातकर्णी या महाराष्ट्री प्राकृत महापराक्रमी राजाने शकांना २० वर्ष लढाई करून हरविले. आणि मराठी काळ गणना सुरु केली त्याला शके आपण म्हणतो.
गौतमीपुत्राने नहपानावर विजय मिळवून सातवाहन साम्राज्याचे गतवैभव परत प्राप्त केले आणि मराठी भाषेस सुवर्णकाळ प्राप्त केला .
नाशिक जवळ अतिशय निकराचे युद्ध करुन गौतमीपुत्राने नहपानाचा समूळ पराभव केला. त्याला ठार मारले. नाशिक येथील लेण्यातील एका शिलालेखात गौतमीपुत्र अभिमानाने नोंदवतो- "खखरात (क्षहरात) वंस निर्वंस करस".हा शिलालेख प्राकृत अहिराणी भाषेत आहे.त्यात क्षहरात चा उल्लेख "खखरात " असा केला आहे.
Kharat is the prakrit form of Kshaharata (क्षहरात).क्षहरात is an
Iranian word found in Avesta ( Pharasi
Religious text).क्षहरात means
ruler-ship.The word Shaha is derived from (क्षहरात).Shaha means king.There is similarity between Avestan and Sanskrit world
like Sapthah-Hapta,Sindhu-Hindu etc..
स्वतःला राजर्षिवधू म्हणवून घेणाऱ्या त्याच्या आईने-गौतमी बलश्रीने-नाशिक येथील शिलालेखात आपल्या पुत्राच्या मागे " खखरात (क्षहरात) वंस -निरवशेषकर शकपल्हवनिषूदन समुद्रतोयपीतवाहन" अशी बिरुदावली कोरवून घेतली आहे. त्याचा स्वैर अनुवाद पुढीलप्रमाणे --
"क्षत्रियांचा गर्व आणि अभिमान यांचा नि:पात करणारा, शक, यवन आणि पल्लव यांचा सर्वनाश करणारा, क्षहरात घराण्याचा पराभव करून सातवाहन घराण्याची उज्ज्वल परंपरा पुन:स्थापित करणारा....."
माने राजघराने (कुंतलचे राष्ट्रकूट )
नहपानाचे काही वंशज दक्षिण भारतात गेले. त्यांपैकी मान राजाचे नाव पुराणात येते. त्याची क्षहरातांची विशिष्ट चिन्हे असलेली नाणी माहिषक प्रदेशात (आंध्र प्रदेश) सापडली आहेत. पुढे कर्नाटकात शकसत्तेचा विस्तार होऊन त्यायोगे शक संवताचा दक्षिणेत प्रसार झाला, असे दिसते.
सर्वांत प्राचीन ज्ञात राष्ट्रकूट घराणे कुंतल देशात कृष्णानदीच्या खोऱ्यात राज्य करीत होते. त्याचा मूळ पुरुष मानांक (सु. कार. ३५०–७५) हा होय. याने आपल्या नावे मानपूर नामक नगर स्थापून तेथे आपली राजधानी केली. हे मानपूर सातारा जिल्ह्याच्या माण तालुक्याचे माण असावे. ह्या राष्ट्रकूट नृपतींना कुंतलेश्वर म्हणत.
मानांकचा पुत्र देवराज याच्या काळी गुप्त सम्राट दुसरा चंद्रगुप्त (विक्रमादित्य) याने आपला राजकवी कालिदास याला या कुंतलेश राष्ट्रकूटांच्या दरबारी वकील म्हणून पाठविले होते. या प्रसंगाने कालिदासाने कुंतलेश्वरदौत्य रचले होते. ते आता उपलब्ध नाही; पण त्यातील काही उतारे राजशेखर व भोज यांच्या अलंकार ग्रंथांत आले आहेत.
Kale
·
Surnames:-
Kale,Mahin,
Ghahine, Sarse, Hubale, Shrirame, Gore/Gora, Dombale, Singare, Gharbudwe,
Dadas, Namkade, Sigire.
Ye sahrot Jat vanse hai
ReplyDeleteSolanki inka brother hai
Apas me shadi nahi karte
Hain. Chalukya (Solanki)karnatak wale