धनगर-मदने खानदान का इतिहास
यदुवंशी-जादौन
(Jadaun/Jadon) वंश
मदन मोहन जी भगवान
श्री कृष्णा का
एक नाम हैI धनगर-मदने यदुवंशी-जादौन
वंश से हैI
यादव पश्चिम यूरेशिया मे जादव कहलायेंI यूरेशिया के विभिन्न प्रांतों मे भाषा फर्क
के कारण जादव जादौन, जडेजा, ज्यू- दाह कहलायेंI जेरूसलेम येरुशलम
था और येरुशलम यदुकुलम थाI
धनगर डी एन ए रिपोर्ट में (दक्षिण एशियाइ पुरुष/South Asian
males) और पश्चिम यूरेशियन महिलाओं(West Eurasian
Females) का प्रमाण ज्यादा हैI जब आर्य उत्तर ध्रुव (North Pole) से पश्चिम यूरेशिया पहुंचे तब भारतीय धनगर(दक्षिण एशियाइ पुरुष/South Asian
males) पश्चिम एशिया पर राज्य करते थेI उन्होंने आर्य महिलाओं (पश्चिम यूरेशियन महिलाओं) से शादी की और आर्यों की वैदिक सभ्यता का स्विकार कियाI
देवगिरी के राजा रामदेवराय जादव धनगर थेI भोसले कन्नड़ गवळी- धनगर जादौन
खानदान से ही
थेI
मथुरा
के शक क्षत्रप
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सिन्ध से शकों की शक्ति का विस्तार काठियावाड़, गुजरात, कोंकण, महाराष्ट्र और मालवा में हुआ, और वहाँ से उत्तर की ओर मथुरा में। सम्भवतः उज्जयिनी की विजय के बाद ही शकों ने मथुरा पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। मथुरा के शक क्षत्रप भी क्षहरात (प्राकृत भाषा मे खरात) कुल के थे। इन क्षत्रपों के बहुत से सिक्के मथुरा व उसके समीपवर्ती प्रदेशों से उपलब्ध हुए हैं। मथुरा के प्रथम शक क्षत्रप हगमाश और हगान थे। उनके बाद रञ्जुबुल और उसका पुत्र शोडास क्षत्रप या महाक्षत्रप पद पर अधिष्ठित हुए। शोडास के बाद मेवकि मथुरा का महाक्षत्रप बना। मथुरा के शक क्षत्रपों ने पूर्वी पंजाब को जीतकर अपने अधीन किया था। वहाँ पर अनेक यवन राज्य विद्यमान थे, जिनकी स्वतंत्र सत्ता इन शकों के द्वारा नष्ट की गई। साथ ही कुणिन्द गण को भी इन्होंने विजय किया। गार्गीसंहिता से युग पुराण में शकों द्वारा कुणिन्द गण के विनाश का उल्लेख है। शोडास ने जो 'महाक्षत्रप' का पद ग्रहण किया था, वह सम्भवतः इन्हीं विजयों का परिणाम था। मथुरा के इन शक क्षत्रपों की बौद्ध-धर्म में बहुत भक्ति थी। मथुरा के एक मन्दिर की सीढ़ियों के नीच दबा हुआ, एक सिंहध्वज मिला है, जिसकी सिंहमूर्तियों के आगे-पीछे तथा नीचे ख़रोष्ठी लिपि में एक लेख उत्कीर्ण है। इस लेख में महाक्षत्रप रञ्जुबुल या रजुल की अग्रमहिषी द्वारा शाक्य मुनि बुद्ध के शरीर-धातु को प्रतिष्ठापित करने और बौद्ध विहार को एक ज़ागीर दान देने का उल्लेख है। मथुरा से प्राप्त हुए एक अन्य लेख में महाक्षत्रप शोडास के शासन काल में 'हारिती के पुत्र पाल की भार्या' मोहिनी द्वारा अर्हत् की पूजा के लिए एक मूर्ति की प्रतिष्ठा का उल्लेख किया गया है। इसमें सन्देह नहीं कि महाराष्ट्र के क्षहरात (खरात) शक क्षत्रपों के समान मथुरा के शकों ने भी इस देश के धर्मों को अंगीकार कर लिया था।
करौली के जादौन राजा:
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ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली राजस्थान का ऐतिहासिक नगर
है। यह पाल राज्वन्श की राजधानी थी। करौली की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण के वंशज राजा विजय पाल ने 955 ई. में
की थी. 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक महाराजा गणेश पाल देव ने भारत
का हिस्सा बनने का फैसला किया और करौली राजस्थान राज्य का हिस्सा बन गया.
करौली रियासत के चार गावँ खास है जो राज दरबार से करीब है। मनोहरपुरा, खुव पुरा, ऍनाय्ति और राम पुर। मनोहरपुरा, करौली जिले से २५ किलोमीटर दूर्, कैला देवी के मन्दिर के पास स्थित है।
करौली के दो प्रचीन मन्दिर:
अपने ऐतिहासिक किलों और मंदिरों के लिए मशहूर करौली दर्शनीय है।
करौली मे दो प्रचीन मन्दिर है। कैला देवी और मदनमोहन जी के मन्दिर। कैलादेवी मन्दिर राजस्थान में करौली से 24 किमी दूर एक प्रसिद्व हिन्दू धार्मिक स्थल है। जहाँ प्रतिवर्ष मार्च - अप्रॅल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है। मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैला (महालक्ष्मी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है। कैला देवी का मन्दिर कालीसिल नदी के किनारे स्थित है। कैला देवी मन्दिर से १ किलोमीटर कि दूरी पर केदार बाबा की गुफा है, यात्री यहा भी जाते है ! कैला देवी मन्दिर मै लक्ष्मि जी, व कालीजी के दर्शन होते है और मन की मुराद पूरी होती है।
महालक्ष्मी मथुरा के शक और करौली के जादौन वंश की कुलदेवता है।
महालक्ष्मी सोलापूर जिल्हे के मदने-
पाटील
खानदान की भी कुलदेवता है।
मदन मोहनजी मंदिर:
मदन मोहनजी मंदिर करौली किले के अन्दर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा गोपाल सिंह ने करवाया था जिन्होंने इस मंदिर को मदन मोहनजी जो भगवान कृष्ण के एक रूप है को समर्पित किया था । इस मंदिर में भगवान कृष्ण और देवी राधा की 2 मूर्तियाँ है जो 3 और 2 फीट उंची हैं । लोगों का मानना है की दौलताबाद को जीतने के बाद एक बार महाराजा गोपाल सिंह ने भगवान श्री कृष्ण को अपने सपने में देखा जिन्होंने राजा को अपना मंदिर बनवाने का निर्देश दिया था राजा ने निर्देश का पालन करते हुए अजमेर से भगवान की मूर्ति मंगवाई और उसे यहाँ स्थापित कराया।मदन मोहन जी का मंदिर देश-विदेश में बसे श्रृद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय है।
Mahakshatrap Sodasa of
Northern Satrap Dynasty of Mathura
Sodasa was an Indo-Scythian, and
the son of the Great Satrap of Mathura Rajuvula. He is mentioned in the Mathura lion capital.
Sodasa reigned during the 1st
century CE, and also took the title of Great Satrap, probably in the area of
Mathura as well, but apparently under the suzerainty of the Indo-Parthian king Gondophares.
Sodasa was a contemporary of Nahapana.
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