पुरुष सूक्त(ऋग्वेद संहिता



पुरुष सूक्त(ऋग्वेद संहिता) (Info in English is given below)
ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत: |
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्या शूद्रोSअजायत ||११||
विराट पुरुष का दिमाग ब्राह्मण| क्षत्रिय अर्थात बाहु | वैश्य अर्थात् पेट एवं शुद्र उसके पैर हुए ||११||
पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त यानि मंत्र संग्रह (10.90) है, जिसमें एक विराट पुरुष की चर्चा हुई है और उसके अंगों का वर्णन है । इसको वैदिक ईश्वर का स्वरूप मानते हैं, लेकिन अंगो के अर्थ और प्रयोजन पर विवाद है । विभिन्न अंगों में चारो वर्णों, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि की बातें कहीं गई हैं । मैक्समूलर इसको वेदों में सबसे बाद में जोड़े गए अंग समझते हैं क्योंकि इसमें ऋग्वेद के अन्दर वर्ण व्यवस्था की एक मात्र झलक मिलती है । हाँलांकि यही श्लोक यजुर्वेद (31वें अध्याय) और अथर्ववेद में भी आया है ।
ध्यान देने की बात है कि वेदों (और सांख्य शास्त्र में) में पुरुष शब्द का अर्थ जीवात्मा तथा परमात्मा आया है, पुरुष लिंग के लिए पुमान और पुंस जैसे मूलों का इस्तेमाल होता है । पुम् मूल से ही नपुंसकता जैसे शब्द बने हैं ।
People have understood from the verse which states that from his(Lords) mouth, arms, thighs, feet the four Varnas (classes) are born. This four varna-related verse is controversial and is believed by many scholars, such as Max Müller, to be a corruption and a medieval or modern era insertion into the text.

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