ऋग्वेद के "पणि" लोग

ऋग्वेद के "पणि" लोग
"फोनेशियान" लोगों को ऋग्वेद में पणि या "वाणी" नाम से संभोधित किया है और वो लोग "अनार्य" थे इसका ऋग्वेद में स्पष्ठ संकेत है।रोमन लोग पनि लोगों को "पणिक" नाम से जानते थे।
वैदिक लोग मूलतः"पशुपाल" थे और पनि लोग अच्छे "व्यापारी" थे। फोनेशियन लोगों की भाषा "सेमेटिक"( अफ्रो-एसियाटिक ) परिवार की थी। वैदिक लोगों की भाषा "इंडो-यरोपियन" परिवार की थी।वैदिक लोग मूलतः मध्य एशिया से भारत आये थे। पनि लोगों का व्यापर भूमध्यसागर तक फैला था।
पणि लोग ब्याजभोजी(सावकार) थे। आज का 'बनिया' शब्द वणिक का अपभ्रंश ज़रूर है मगर इसके जन्मसूत्र पणि में ही छुपे हुए हैं। दास बनाने वाले ब्याजभोजियों के प्रति आर्यों की घृणा स्वाभाविक थी। आर्य पशुपालन करते थे और पणियों का प्रधान व्यवसाय व्यापार और लेन-देन था। पणिक या फणिक शब्द से ही वणिक भी जन्मा है।
फ़ोनीशिया मध्य-पूर्व के उर्वर अर्धचंद्र के पश्चिमी भाग में भूमध्य सागर के तट के साथ-साथ स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। समुद्री व्यापार के ज़रिये यह १५०० से ३०० ईसा-पूर्व के काल में भूमध्य सागर के दूर-दराज़ इलाक़ों में फैल गई।
इन्होने जिस अक्षरमाला का इजाद किया उसपर विश्व की सारी प्रमुख अक्षरमालाएँ आधारित हैं। कई भाषावैज्ञानिकों का मानना है कि देवनागरी-सहित भारत की सभी वर्णमालाएँ इसी फ़ोनीशियाई वर्णमाला की संताने हैं।
आर्य लोग घुमंतू पशुपाल थे और मध्य एशिया से भारत आये थे।
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