भले ही कडवा है पर है सच:-

भले ही कडवा है पर है सच:-
भारत के इतिहास में 7वीं शती का चीनी यात्री ह्वेनसांग वह पहला व्यक्ति है, जिसने गीता की ओर संकेत करते हुए कहा है कि वह किसी ब्राह्मण का जाली ग्रंथ है। यदि गीता प्राचीन है तो 9वीं शती से पहले भी इस पर कई भाष्य लिखे गए होते। आश्चर्य कि गीता जैसे लोकप्रिय ग्रंथ पर पहला भाष्य 9वीं शती में शंंकराचार्य द्वारा लिखा जाता है। सत्य ये है कि गीता को तो महाभारत में बाद में जोड़ दिया गया हैं। यदि गीता के रचयिता कृष्ण होते तो वे भला अपने (समुदाय) को शूद्र वर्ण में क्यों रखते? साँवले रंग के कृष्ण तो यदुवंशियो के नायक थे। गीता के रचयिता ने ब्राह्मण-धर्म के प्रचार की खातिर अपने को गुमनाम रखते हुए इतने श्रमसाध्य लेखन का श्रेय वेदव्यास को दे दिया है। गीता का यह गुमनाम रचयिता कृष्ण का इस्तेमाल ब्राह्मण-धर्म के प्रचार के लिए करता है।
कृष्ण सधी हुई संस्कृत बोलते थे क्या? सूरदास के कृष्ण ब्रजभाषा बोलते हैं। ऐसा नहीं है कि कृष्ण ब्रजभाषा बोलते थे। वह तो कवि की भाषा है। गीता की भाषा क्लासिकल संस्कृत है, गुप्तकाल के कवियों की भाषा। इसीलिए डीडी कोसांबी ने लिखा है कि गीता की संस्कृत ईसा की तीसरी सदी के आसपास की है। वस्तुत: गीता एक बहुजन नायक के कंधे पर बन्दूक रख कर चलायी गए द्विजवादी गोली है।

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