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Showing posts from August, 2016

मोहेंजो-दारो :एक नस्लीय हमला:आदिवासियों द्वारा मोहेंजो-दारो पर मुकदमा महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰

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मोहेंजो-दारो :एक नस्लीय हमला:आदिवासियों द्वारा मोहेंजो-दारो पर मुकदमा महिषासुर को महाराष्ट्र में "म्हसोबा" नाम से पूजा जाता है।इतिहासकार डी॰ डी॰ कौशम्बी ने महिषासुर या म्हसोबा को "गवली" या "यादव" माना है।कबीर बेदी फिल्म में खलनायक हैं और बेदी को महिषासुर वाला आदिवासी गेटअप दिया गया है। दुनिया की प्राचीन और महानतम सभ्यता ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ पर आधारित आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्मित फिल्म ‘मोहेंजो-दारो’ का तीखा विरोध करते हुए आदिवासी समाज ने झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में पुलिस में मामला दर्ज कराया है। गांव, तहसील और जिला स्तर से लेकर सोशल मीडिया तक में आदिवासियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। फिल्म मोहेंजो-दारो में आशुतोष गोविरकर ने आर्यों को सिंधु सभ्यता का वासी बताया है और आर्य नायक शरमन (ऋतिक रोशन) द्वारा खलनायक महम (कबीर बेदी, जो महिषासुर के लुक में हैं) और उसकी सत्ता का नाश दिखाया गया है। मोहेंजो-दारो को बैन करने की मांग महिषासुर को अपना देवता बताते हुए ग्राम डाही, जिला धमतरी, छत्तीसगढ़ की पंजीकृत संस्था आदिवासी एवं विशेष पिछड़ी जनजाति विकास

ब्रिटिश और निज़ाम भी रखते थे धनगरों से कौफ़

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घुमंतू हूण जाति (हूण नोमेडिक ट्राइब/इंडो-ईरानियन्स)

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घुमंतू हूण जाति (हूण नोमेडिक ट्राइब/इंडो-ईरानियन्स) घुमंतू योद्धा "अटिला द हूण":हंगरी देश के संस्थापक अटिला का जन्म मध्य एशिया की आदिवासी और मेषपाल "हूण"नाम की जाती में ईसा.४०० में हुआ था।अटिला ने मेषपाल "हूण" जाती को संघटित करके उन्हें "हंगरी"(हूण-गुर्जर) देश के रूप में उभर लाया है। अटिला ने शक्तिशाली "रोम" साम्राज्य को हिलाया था।अटिला हंगरी देश का "नेशनल हीरो" है। पूर्वी रोमन सम्राट् थियोडोसियस द्वितीय की पोती हांनारिया को, दरबार के एक कर्मचारी पर मोहित होने के कारण बन् दी बनाया गया था। उस लड़की ने निराश होकर अपनी अंगूठी अत्तीला को भेजी तथा अपने को मुक्त कराने और पति बनने की प्रार्थना की। अत्तीला तुरन्त दक्षिण की ओर बढ़ा और कांस्टेंटीपल के निकट पहुंच गया। इतिहासज्ञ गिब्बन के अनुसार उसने अपनी सफलता में ७० नगर नष्ट कर दिए। रोमन सम्राट् ने उससे बहुमूल्य शान्ति-सन्धि करनी पड़ी। अत्तीला हांनारिया को अपनी दुल्हन समझता रहा। उसने अगले आक्रमण के लिये बहाने के रूप में उस सम्बन्ध को कायम रखा। सम्राट् को एक और सन्धि करने के लिये विव

Kumari Kandam(Tamil) Civilization:Ten Lac years old civilization कुमारी कंदम सभ्यता (तमिल सभ्यता) आज से दस लाख वर्ष पूर्व इतनी प्राचीन थी।इंडो-यूरोपीय लोग मूलतःघमंतू(ट्राइबल/नोमेडिक) संस्कृति से थे।द्रविड़ियन लोग नगरी(सिविलाईज़ेड) संस्कृति से थे।

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Kumari Kandam(Tamil) Civilization:Ten Lac years old civilization कुमारी कंदम सभ्यता (तमिल सभ्यता) आज से दस लाख वर्ष पूर्व इतनी प्राचीन थी।इंडो-यूरोपीय लोग मूलतःघमंतू(ट्राइबल/नोमेडिक) संस्कृति से थे।द्रविड़ियन लोग नगरी(सिविलाईज़ेड) संस्कृति से थे। कुमारी कंदम की अनकही कहानी: हिंद महासागर में मानव सभ्यता का उद्गम स्थल तमिल लेखकों के अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास, अफ्रीका महाद्वीप में ना होकर हिन्द महासागर में स्थित ‘कुमारी कंदम’ नामक द्वीप में हुआ था | इसे कुमारी नाडु के नाम से भी जाना जाता है | कुछ लेखक तो इसे रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला राम सेतु भी इसी महाद्वीप में पड़ता है |इस राम सेतु के अस्तित्व को तो नासा ने भी सिद्ध कर दिया है | इसलिए अब शक की संभावना कम ही बनती है | कुमारी कंदम का इतिहास: तमिल साहित्य के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में कुमारी कंदम नाम की एक तमिल सभ्यता थी , जो कि अब हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी है सन 1903 में V.G. सूर्यकुमार ने इसे सर्वप्रथम Kumarinatu" ("Kumari N

South India:The origin of Aryans (दक्षिण भारत:आर्यों का मूलस्थान)

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South India:The origin of Aryans (दक्षिण भारत:आर्यों का मूलस्थान) कई विद्वानों का दावा है की आर्य मूलतः भारत के नहीं थे। लेकिन सच तो ये है की आर्य मूलतः दक्षिण भारत के थे। पुराणों में उल्लेख है की "विवस्वत मनु" या "सत्यव्रत" जो प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे वो "द्रविड़ देश"(दक्षिण भारत) के राजा थे।रामसेतु भी दक्षिण भारत में ही है। ईसाई और मुस्लिम रामसेतु को "आदम ब्रीज" के नाम से जानते है और "आदम"(मनु) श्रीलंका से पश्चिम-एशिया आने का दावा करते है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=862665147199235&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

Totemic Culture of Dhangars(Indus Culture) धनगरों की कुल और देवक संस्कृति (सिंधु संस्कृति)

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Totemic Culture of Dhangars(Indus Culture) धनगरों की कुल और देवक संस्कृति (सिंधु संस्कृति) सिंधु संस्कृति कुल और देवक संस्कृति थी।प्राचीन काल में धनगरों के अलग अलग कबीले होते थे।इन कबीलों को "कुल" या "गण" कहा जाता था। हर एक कुल का कुलचिन्ह या देवक होता था।ये कुलचिन्ह उनके प्रिय प्राणी,पक्षी और वृक्ष(नाग,कदंब,कमल,मोर,गरुड़,पंचपल्लव इत्यादि) होते थे। प्राचीन काल में धनगरों के प्रमुख दो मुख्य प्रकार थे। एक भारत के "मूलनिवासी" धनगर और दूसरा "सिथियन" यानि की "शक" जो ईरान और मध्य-एशिया के घुमंतू मेषपाल थे।सिथियन लोग भारत आने के बाद उनका मूलनिवासी धनगरों के साथ संयोग हो गया। कई विद्वानों का दावा है की आर्य मूलतः भारत के नहीं थे। लेकिन सच तो ये है की आर्य मूलतः दक्षिण भारत के थे। पुराणों में उल्लेख है की "विवस्वत मनु" या "सत्यव्रत" जो प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे वो "द्रविड़ देश"(दक्षिण भारत) के राजा थे।रामसेतु भी दक्षिण भारत में ही है। ईसाई और मुस्लिम रामसेतु को "आदम ब्रीज"

प्रभु श्रीराम के अस्तित्व के शास्त्रीय सबूत

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प्रभु श्रीराम के अस्तित्व के शास्त्रीय सबूत वाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के नवम् सर्ग के श्लोक 5 में बताया गया है कि जब हनुमान जी सीता जी की खोज के लिए लंका में रावण के भवन के पास से निकले तो उन्होंने वहाँ तीन और चार दाँतों वाले हाथी देखे। श्री पी. एन. ओक के अनुसार आधुनिक प्राणी शास्त्रियों का मानना है कि ऐसे हाथी पृथ्वी पर थे तो अवश्य किन्तु उनकी नस्ल को समाप्त हुए 10 लाख वर्ष से अधिक समय हो गया। दूसरे शब्दों में श्रीराम की कथा दस लाख वर्ष से अधिक प्राचीन तो है ही साथ ही ऐतिहासिक भी है। https://www.facebook.com/vinaykumar.madane/posts/862249023907514

Ancient Indian Science

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Million-year-old tools found near Chennai - India’s prehistory pushed back

Million-year-old tools found near Chennai - India’s prehistory pushed back भारत में सिंधु संस्कृति से भी लाखो साल पहले थी प्राचीन सभ्यता। ७५००० साल पहले इंडोशिया में हिन्दू धर्म के अस्त्तित्व के प्रमाण मिले है।

भारत में सिंधु संस्कृति से भी लाखो साल पहले थी प्राचीन सभ्यता

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भारत में सिंधु संस्कृति से भी लाखो साल पहले थी प्राचीन सभ्यता दक्षिण भारत और इंडोशिया में ७५००० साल पहले वैदिक सभ्यता के अस्त्तित्व के प्रमाण मिले है।दक्षिण भारत से ही कुछ लोग जाकर उत्तर ध्रुव (आर्क्टिक पोल) पर कुछ साल निवास करने की संभावना है।एक लाख साल पहले के पुरे विश्व में वैदिक सभ्यता के प्रमाण मिले है। प्रभु श्रीराम का अस्तित्व इस धरती पर दस लाख साल पहले होने के पुरातात्विक प्रमाण है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861322137333536&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

Arctic Home in The Vedas(वेदों का उत्तर ध्रुव मूलस्थान)

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Arctic Home in The Vedas(वेदों का उत्तर ध्रुव मूलस्थान)  टिलक महाराज,आपको विद्वान कहा जाता है। उत्तर ध्रुव से मानव आया इसका कोई जेनेटिक एविडेंस(अनुवांशिक प्रमाण) है क्या? अगर है तो दुनिया में कोई ऐसा एक भी मनुष्य नहीं है जिसमे उत्तर ध्रुव के डीएनए है।उत्तर ध्रुव पर आदिमानव कभी रहा ही नहीं तो डीएनए कहा से मिलेंगे?? इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार के लोग तो मध्य-एशिया के घुमंतू मेषपाल लोग थे। कहा मध्य -एशिया और कहा उत्तर ध्रुव?? https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861142950684788&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

प्राचीन इजिप्शियन लोग इस्राएल के मेषपाल लोगों का द्वेष करते थे।

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प्राचीन इजिप्शियन लोग इस्राएल के मेषपाल लोगों का द्वेष करते थे। ज्यादातर यूरोपियन लोग मध्य एशिया के "घुमंतू मेषपाल"(नोमेडिक ट्राइब/NT) लोगों के वंशज है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861116924020724&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

मेषपाल और किसान की विचारधाराएं

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मेषपाल और किसान की विचारधाराएं  किसान पर समाज व्यवस्था का नियंत्रण होता था। किसान अपनी जमीन का "दास" होता था। उसकी विचारधारा सिर्फ अपनी जमीं तक सिमित रहती थी।इसके विरूद्ध मेषपालन एक मुक्त जीवनशैली होती थी। मेषपाल का दॄष्टिकोण "विश्वव्यापक" होता था। विश्व के सभी धर्मों के धर्मगुरु और महान राजा मेषपाल समाज से आगे आये थे। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=861112130687870&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

Why our ancestors were shepherds..

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Iranian origin of the Mauryan and Pallav Dynasty(:उत्तर भारत के "मौर्या" और तमिलनाडु के "पल्लव" वंश का ईरानी मूल (इंडो-ईरानियन्स/घुमंतू सिथियन/नोमेडिक ट्राइब/NT)

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Iranian origin of the Mauryan and Pallav Dynasty(:उत्तर भारत के "मौर्या" और तमिलनाडु के "पल्लव" वंश का ईरानी मूल (इंडो-ईरानियन्स/घुमंतू सिथियन/नोमेडिक ट्राइब/NT) The Pallavas thus sought to emulate the Maurya kings, who were of Iranic origin (Spooner 1915, p.406ff). It is important to note that the Iranic root-word "Mor" occurs all across the Iranian world: consider the "Mardian" tribe of Persians mentioned by Herodotus; "the Avestan name Mourva, the Marga of the Achaemenian inscriptions" (Spooner 1915, p.406), and the city of Merv, also known as "Merw, Meru or Maur", whose inhabitants are known as "Marga and Mourva" (ibid.), the legendary "Meru" mountain, the "Amorites" or "Amurru" of Syria and Palestine who possessed an Iranic ruling caste, the "Amu-Darya" river, "Amol" town just south of the Caspian, "Marwar" in Rajputana, the Oudh towns of "M

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य अणि त्याच्या जन्मकुळाबद्दल घातलेले घोळ

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य अणि त्याच्या जन्मकुळाबद्दल घातलेले घोळ भारतीय संसदेच्या प्रांगणात भारताच्या पहिल्या सम्राटाचा एक प्रतिकात्मक पुतळा स्थानापन्न करण्यात आला आहे व त्याखाली गौरवाने लिहिलेय- "Shepherd boy-Chandragupta Maurya dreaming of India he was to create". विशेष म्हणजे हा पुतळा हिल्डा सेलेगम्यन या आंतरराष्ट्रीय किर्तीच्या महिला शिल्पकाराने तयार करुन संसद भवनाच्या परिसरात बसवण्यासाठी दान दिला होता. एका धनगर पुत्राने भारताचे विराट स्वप्न पाहिले. ग्रीकांविरुद्धचा पहिला स्वातंत्र्यलढा उभारला. त्यांना भारतातून अथक प्रयत्नांनी हुसकले आणि नंतर "गंग" सम्राट चंद्रमासि(ग्रीक उच्चार क्झ्यंड्रमास) चा पराभव करीत आपली एकछत्री सत्ता उभारली. भारतीय लोकशाहीने त्याला वाहिलेली ही मानवंदना आहे यात शंका नाही. हा गौरवशाली इतिहास आपण येथे थोडक्यात पाहुयात. मोरिय कुळ चंद्रगुप्ताचे "मौर्य" हे आडनाव कसे आले, त्याचे मूळ काय यावर इतकी परस्परविरोधी माहिती जातककथा, जैनसाहित्य, पुराणे व ग्रीक साधनांत आलेली आहे कि कोणीही गोंधळून जावे.याचे कारण हे की "पाटलिपुत्र"

पणि(फोनेशियान) लोग ब्याजभोजी(सावकार) थे।

पणि(फोनेशियान) लोग ब्याजभोजी(सावकार) थे। आज का 'बनिया' शब्द वणिक का अपभ्रंश ज़रूर है मगर इसके जन्मसूत्र पणि में ही छुपे हुए हैं। दास बनाने वाले ब्याजभोजियों के प्रति आर्यों की घृणा स्वाभाविक थी। आर्य पशुपालन करते थे और पणियों का प्रधान व्यवसाय व्यापार और लेन-देन था। पणिक या फणिक शब्द से ही वणिक भी जन्मा है। आर्य लोग घुमंतू पशुपाल थे और मध्य एशिया से भारत आये थे।पणि अफ्रो-एशियाटिक मूल के लोग थे।

चंद्रगुप्त मौर्य, भारताचा अद्वितीय सम्राट, स्वातंत्र्याचा आद्य उद्गाता एका सामान्य मेंढपाळ समाजात जन्माला आला.

चंद्रगुप्त मौर्य, भारताचा अद्वितीय सम्राट, स्वातंत्र्याचा आद्य उद्गाता एका सामान्य मेंढपाळ समाजात जन्माला आला. मुद्राराक्षस नाटकात चाणक्यही त्याची सतात "वृषल"(शूद्र) म्हणून हेटाळणी करतांना दिसतो. हे नाटक चवथ्या शतकानंतर, जेंव्हा वर्णाहंकार वाढू लागले होते, तेंव्हा कधीतरी लिहिले गेले आहे. पण आज हेच नाटक ऐतिहसिक मानले जावे हे दुर्दैव आहे.ते एक नाटक आहे. चंद्रगुप्त होऊन गेल्यानंतर सात-आठशे वर्षांनंतर लिहिले गेलेले आहे याचे भान आम्हाला नाही. आम्हाला अजून माणसाला माणूस समजायची दानत नाही. त्याच्या भव्यता या जाती-वर्णांच्य फुटपट्ट्यांनी मोजता येत नाहीत हे समजत नाही. किंबहुना भारताचा पहिला सम्राट सामान्य मेंढपाळी करणा-या घराण्यातून जन्माला यावा हेच सहन होत नाही. म्हणून त्याच्य जन्मकुळाबद्दल एवढे घोळ घालतो कि बस्स!

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य अणि त्याच्या जन्मकुळाबद्दल घातलेले घोळ

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सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य अणि त्याच्या जन्मकुळाबद्दल घातलेले घोळ भारतीय संसदेच्या प्रांगणात भारताच्या पहिल्या सम्राटाचा एक प्रतिकात्मक पुतळा स्थानापन्न करण्यात आला आहे व त्याखाली गौरवाने लिहिलेय- "Shepherd boy-Chandragupta Maurya dreaming of India he was to create". विशेष म्हणजे हा पुतळा हिल्डा सेलेगम्यन या आंतरराष्ट्रीय किर्तीच्या महिला शिल्पकाराने तयार करुन संसद भवनाच्या परिसरात बसवण्यासाठी दान दिला होता. एका धनगर पुत्राने भारताचे विराट स्वप्न पाहिले. ग्रीकांविरुद्धचा पहिला स्वातंत्र्यलढा उभारला. त्यांना भारतातून अथक प्रयत्नांनी हुसकले आणि नंतर "गंग" सम्राट चंद्रमासि(ग्रीक उच्चार क्झ्यंड्रमास) चा पराभव करीत आपली एकछत्री सत्ता उभारली. भारतीय लोकशाहीने त्याला वाहिलेली ही मानवंदना आहे यात शंका नाही. हा गौरवशाली इतिहास आपण येथे थोडक्यात पाहुयात. मोरिय कुळ चंद्रगुप्ताचे "मौर्य" हे आडनाव कसे आले, त्याचे मूळ काय यावर इतकी परस्परविरोधी माहिती जातककथा, जैनसाहित्य, पुराणे व ग्रीक साधनांत आलेली आहे कि कोणीही गोंधळून जावे.याचे कारण हे की "पाटलिपुत्र" य

सबसे ज्यादा बीफ निर्यात करनेवाला देश बना भारत

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मंगल पांडे को धर्म की पड़ी थी, जबकि आजादी के दीवाने देश को आजाद करना चाहते थे

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1857 में विद्रोह तो होना ही था. मेरठ से लेकर कानपुर और दिल्ली में बगावत की तैयारी थी. लेकिन मंगल पांडे की धार्मिक सनक के कारण पूरे देश में एक साथ विद्रोह नहीं ह ो पाया, वरना शायद इस साल हम आजादी की 150वीं या 160वीं सालगिरह मना रहे होते. लेकिन एनफील्ड राइफल की कारतूस में अगर गाय की जगह, भैंस की चर्बी होती तो बंगाल नैटिव इन्फैंट्री का सिपाही मंगल पांडे किन पर गोलियां दाग रहा होता? चर्बी भैंस की होती, तो भी क्या उनकी देशभक्ति जगती? चर्बी भैंस की होती तो मंगल पांडे मेरठ के स्वतंत्रता सेनानियों पर गोलियां दाग रहा होता. मंगल पांडे के लिए देश से बड़ा उनका धर्म और जाति थी, जो गाय की चर्बी की वजह से संकट में थी. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1122505387843451&set=a.720491174711543.1073741830.100002520002974&type=3 मंगल पांडे को धर्म की पड़ी थी, जबकि आजादी के दीवाने देश को आजाद करना चाहते थे

Saudi royal family .....Jews ????

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Saudi royal family .....Jews ???? https://www.facebook.com/milano.sylvester/posts/542093629320048

प्राचीन फोनिशियन (पणि) लोग

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प्राचीन फोनिशियन (पणि) लोग इस शिल्प में प्राचीन फोनिशियन लोग पर्शियन सम्राट को भेंट -वस्तुएं देते हुये दिखाए है।फोनिशियन लोग मूलतः "सेमिटिक"(अफ्रो-एसियाटिक) मूल के थे।वो लोग प्राचीन काल में प्रसिद्ध व्यापारी और दर्यावर्दी थे। उनका नौकाज्ञान प्रगत था। पणि लोगों का व्यापर भूमध्यसागर तक फैला था। फ़ोनीशिया मध्य-पूर्व के उर्वर अर्धचंद्र(fertile crescent) के पश्चिमी भाग में भूमध्य सागर के तट के साथ-साथ स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। समुद्री व्यापार के ज़रिये यह १५०० से ३०० ईसा-पूर्व  के काल में भूमध्य सागर के दूर-दराज़ इलाक़ों में फैल गई। इन्होने जिस अक्षरमाला का इजाद किया उसपर विश्व की सारी प्रमुख अक्षरमालाएँ आधारित हैं। कई भाषावैज्ञानिकों का दावा है कि देवनागरी-सहित भारत की सभी वर्णमालाएँ इसी फ़ोनीशियाई वर्णमाला की संताने हैं। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=860210300778053&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

ऋग्वेद के "पणि" लोग

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ऋग्वेद के "पणि" लोग "फोनेशियान" लोगों को ऋग्वेद में पणि या "वाणी" नाम से संभोधित किया है और वो लोग "अनार्य" थे इसका ऋग्वेद में स्पष्ठ संकेत है।रोमन लोग पनि लोगों को "पणिक" नाम से जानते थे। वैदिक लोग मूलतः"पशुपाल" थे और पनि लोग अच्छे "व्यापारी" थे। फोनेशियन लोगों की भाषा "सेमेटिक"( अफ्रो-एसियाटिक ) परिवार की थी। वैदिक लोगों की भाषा "इंडो-यरोपियन" परिवार की थी।वैदिक लोग मूलतः मध्य एशिया से भारत आये थे। पनि लोगों का व्यापर भूमध्यसागर तक फैला था। पणि लोग ब्याजभोजी(सावकार) थे। आज का 'बनिया' शब्द वणिक का अपभ्रंश ज़रूर है मगर इसके जन्मसूत्र पणि में ही छुपे हुए हैं। दास बनाने वाले ब्याजभोजियों के प्रति आर्यों की घृणा स्वाभाविक थी। आर्य पशुपालन करते थे और पणियों का प्रधान व्यवसाय व्यापार और लेन-देन था। पणिक या फणिक शब्द से ही वणिक भी जन्मा है। फ़ोनीशिया मध्य-पूर्व के उर्वर अर्धचंद्र के पश्चिमी भाग में भूमध्य सागर के तट के साथ-साथ स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। समुद्री व्यापार के ज़रिये यह १५०
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Origin of Alphabets:(वर्णमाला का उगम) फ़ोनीशियाई वर्णमाला:देवनागरी,हिब्रू और इंग्लिश वर्णमाला का मूल अक्षरों की खोज का प्राथमिक श्रेय पशुपालों को देना चाहिए। उन्होंने पहली बार अपनी पशुओं की संख्या गिनने के लिए मिट्टी के वस्तुओं पर सांकेतिक लिपि की शुरुवात की थी।विश्व की प्राचीन प्रगत सभ्यता के निर्माता भी मूलतः पशुपाल यानि कि "धनगर" लोग ही थे।लेकिन जिन्होंने पहली बार अक्षरों की खोज की वही अक्षर अभी उनसे दूर जा रहे है। फ़ोनीशियाई वर्णमाला: फ़ोनीशिया मध्य-पूर्व के उर्वर अर्धचंद्र के पश्चिमी भाग में भूमध्य सागर के तट के साथ-साथ स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। समुद्री व्यापार के ज़रिये यह १५०० से ३०० ईसा-पूर्व के काल में भूमध्य सागर के दूर-दराज़ इलाक़ों में फैल गई। इन्होने जिस अक्षरमाला का इजाद किया उसपर विश्व की सारी प्रमुख अक्षरमालाएँ आधारित हैं। कई भाषावैज्ञानिकों का मानना है कि देवनागरी-सहित भारत की सभी वर्णमालाएँ इसी फ़ोनीशियाई वर्णमाला की संताने हैं। https://www.facebook.com/vinaykumar.madane/posts/859120224220394