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Showing posts from November, 2016

Albino people of Indian origin have created false history all over the world

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Albino people of Indian origin have created false history all over the world मूल सप्तसिंधु लोगों से (कृष्णवर्णी) निर्माण हुए (बाहर निकाल दिए गए) रंगहीन(श्वेतवर्णी) लोगों ने विश्व में गलत इतिहास का निर्माण किया है।

प्राचीन ईरान के "मीदि" लोग

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प्राचीन ईरान के "मीदि" लोग  मीदि लोग अच्छी नस्ल के घोड़े की पैदाइश और घुमंतू मेषपालन के लिए इतिहास में प्रसिध्द थे।सिंध प्रांत के "मोहना' लोग प्राचीन "मीदि साम्राज्य" के वंशज है। "हवक्षत्र" इस वंश के महान सम्राट थे जिन्होंने शक्तिशाली "असेरियन" साम्राज्य को पराजित करके ईसा.पूर्व ६०० में "मिडीयन" साम्राज्य की स्थापना की थी और तत्कालीन विश्व में महासत्ता के रूप में उभर आये।पर्शियन सम्राट साइरस महान की माता "मंदाने"(मंदाना) मीदि सम्राट "आस्तायागस" की पुत्री थी।

असुर गुरु ज़रथुश्त्र (संस्कृत: हरित् + उष्ट्र ,सुनहरी ऊंट वाला)

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असुर गुरु ज़रथुश्त्र (संस्कृत: हरित् + उष्ट्र ,सुनहरी ऊंट वाला) प्रेषित ज़रथुश्त्र प्राचीन ईरान के "पारसी" धर्म के संस्थापक थे।"अहुरा मज़्दा"(संस्कृत असुर मेधा) पार्सियों की मुख्या देवता(Supreme God) है। महिषासुर(म्हसोबा) महाराष्ट्र के पशुपालों की(धनगर/गवली) लोगों की एक देवता है।शिव धनगरों की मुख्या देवता(Supreme God) है।इससे पारसी और धनगरों का पुराना रिश्ता पता चलता है। https://www.facebook.com/photo.php?fbid=867011096764640&set=a.267277083404714.64323.100003672720193&type=3

सबसे जयादा कसाई मुस्लिम और कसाई खानों के मालिक हिन्दू : असद ईरशाद

सबसे जयादा कसाई मुस्लिम और कसाई खानों के मालिक हिन्दू : असद ईरशाद | 19 Aug 2016 भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी माँसाहार का सेवन करती है...यानि लगभग 75% भारतीय नॉन-वेज खाते है...इस पचहत्तर प्रतिशत मे हिन्दु, मुस्लिम, इसाई, दलित, और नास्तिक सभी आते है...पर माँसाहार के सेवन के लिए सबसे ज्यादा बदनाम मुसलमान है...क्योँ...? क्योकिँ यहाँ ज्यादातर कसाई मुसलमान होते है...गौमाँस हिँदुओ को छोड़कर बाकी सभी खाते है लेकिन गौमाँस खाने के लिए बदनाम सिर्फ मुसलमान है क्योकि गाय काटने वाले अधिकतर कसाई मुसलमान होते है...गौमाँस को छोड़ दे तो फिर बीफ(भैँस), मटन और चिकन खाने वालो मे हिंदु भी शामिल है...लेकिन फिर वही बात कि भैँस और बकरा काटने वाले कसाई भी ज्यादातर मुसलमान होते है...इसका मुल कारण ये है कि कसाई एक वंशानुगत पेशा है...कसाई का बेटा कसाई बनता है...जिस तरह दलितो का किसी और पेशे मे घुसने नही दिया जाता उसी प्रकार कसाईयो के साथ भी होता है...क्योकि लोग ये जानते है कि कसाई अगर अपना पेशा छोड़ दे तो फिर उनके थाली मे चिकन सुप, मटन कोफ्ता और बीफ फ्राई कैसै सजेगेँ...?कसाई समाज को भी अपने पेशे की वजह से अ

रामजन्म भूमि , राम की नहीं बौध विहार है जिसे ब्राह्मणों ने तोडा था : वीरू कौशिक

रामजन्म भूमि , राम की नहीं बौध विहार है जिसे ब्राह्मणों ने तोडा था : वीरू कौशिक https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1665525757100294&id=100009286577739

गोरे रंग का रहस्य

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गोरे रंग का रहस्य भारतीय और यूरोपीय लोगों में गोरे रंग का उगम मध्य-एशिया (यूरेशिया) में है।भारतीय पशुपालों का यूरेशिया की पशुपाल महिलाओं से संगोग हो गया है। आजके ब्राह्मण मूल भारत के कृष्णवर्णी (काले) वैदिक आर्यों के नहीं बल्कि मध्य एशिया की गोरी "सिथियन" जाति के वंशज है।भारतपर आर्य आक्रमण का कोई भी प्रमाण नहीं है। ईसा पूर्व ३०० से भारत पर सिथियन लोगों का आक्रमण होने लगा था।सिथियन लोगों ने भारत पर सत्ता की स्थापना की थी और ईसा.पूर्व ३०० के बाद के ज्यादातर राजवंश सिथ ियन वंश के थे।भारत आने के बाद सिथियन लोगों ने वैदिक सभ्यता को ही समर्थन दिया था।ब्राह्मण सिथियन लोगों की पुरोहित जाती थी। सुमेरियन और सिंधु सभ्यता के नष्ठ हो जाने के बाद ईरान और सिंधु सभ्यता के प्रगत लोग विपुल चरवाहा क्षेत्र की उपलब्धता के कारण मध्य एशिया गये थे।भारतीय पुरूषों का यूरेशिया की गोरी महिलाओं के साथ संयोग हो गया। इसी कारण भारत के धनगरों के डीएनए में भारतीय पुरुष और यूरेशियन महिलाओं का प्रमाण ज्यादा है। अभी तक ये विरोधाभास विद्वानों को रहस्यमय ही रहा है।भारत वापस आते समय ये लोग सिथियन(शक),हुन औ

आर्य आक्रमण सिद्धांत:मिथक/काल्पनिकता है

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आर्य आक्रमण सिद्धांत:मिथक/काल्पनिकता है(सुमेरियन,इजिप्तशियन और सिंधु सभ्यता के बाद ही हो गया आर्यों का उगम) ये शिल्प प्राचीन पर्शियन लोगों का है जिन्हें अभी तक गोरे आर्य समझा जाता है।पर्शियन और भारतीय(वैदिक) आर्यों का उगम ईरान की प्रगत सुमेरियन और भारत की सिंधु सभ्यता के बाद ही हो गया था। इसका मतलब आर्य लोग सुमेरियन और सिंधु वासियों के ही वंशज थे।भारतीय पुराण में "सुमेरु पर्वत" का संदर्भ आता है। गोरे रंग का रहस्य गोर रंग का उगम मध्य-एशिया (यूरेशिया) में हो गया था। सुमेरि यन और सिंधु सभ्यता के नष्ठ हो जाने के बाद ईरान और सिंधु सभ्यता के प्रगत लोग विपुल चरवाहा क्षेत्र की उपलब्धता के कारण मध्य एशिया गये थे।भारतीय पुरूषों का यूरेशिया की गोरी महिलाओं के साथ संयोग हो गया। इसी कारण भारत के धनगरों के डीएनए में भारतीय पुरुष और यूरेशियन महिलाओं का प्रमाण ज्यादा है। अभी तक ये विरोधाभास विद्वानों को रहस्यमय ही रहा है। भारत वापस आते समय ये लोग शक,हुन और गुर्जर नाम से जाने गए।कुछ लोग भारत और ईरान से इस्राइल गए जिन्हें अभी "ज्यु" कहा जाता है।इस्राइल के इतिहासकारों ने भी अ

प्राचीन सुमेर लोग(मेसोपोटेमिया/ईरान-इराक)

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प्राचीन सुमेर लोग(मेसोपोटेमिया/ईरान-इराक) सिंधु,पर्शियन,शक और सुमेर लोगों का मूल एक ही था। सिंधु और सुमेरियन लोगों की संस्कृति असुर/नाग संस्कृति थी।पर्शियन लोगों की देवता भी "असुर" ही थी।सिंधु और सुमेर लोगों की भाषा आद्य-पाली (हिंदी,मराठी इत्यादि भाषाओं की पूर्वज ) थी। सुमेरियन साहित्यामधील पुराणकथांमध्ये 'आरट्टा' नामक प्रदेशाचे उल्लेख आढळतात. तेथील प्रथम राजा उरूक होता. उरूक नावाचा प्रदेश आणि राजा मेसोपोटोमिया भागात असल्याचे शिलालेखीय उल्लेख आहेत. त्यांची एक देवता 'इनाना'  हि या प्रदेशातील होती त्यामुळे हे स्थान अत्यंत पवित्र मानण्यात येत असे. त्याचबरोबर त्यांचा ईश्कुर नामक देवता हा 'शेतकऱ्यांचा देव' मण्यात असे. पाश्चात्य अभ्यासकांच्या मते शिलालेखात उल्लेख असलेला 'शुरूप्पक' प्रदेश म्हणजेच आरट्टा असावा. त्यांच्यात राजाला/देवता 'दुमूझिद मेंढपाळ', 'दुमूझिद कोळी' असे पण उल्लेख आढळतात. (मेंढपाळ आणि कोळी हे मी मराठी अर्थाने लिहिलेले शब्द आहेत). इनाना देवीने 'दुमूझिद' हा मेंढपाळचा प्रमुखाला आरट्टामधील राजा म्हणून नेमले होत