गोरे रंग का रहस्य

गोरे रंग का रहस्य
भारतीय और यूरोपीय लोगों में गोरे रंग का उगम मध्य-एशिया (यूरेशिया) में है।भारतीय पशुपालों का यूरेशिया की पशुपाल महिलाओं से संगोग हो गया है। आजके ब्राह्मण मूल भारत के कृष्णवर्णी (काले) वैदिक आर्यों के नहीं बल्कि मध्य एशिया की गोरी "सिथियन" जाति के वंशज है।भारतपर आर्य आक्रमण का कोई भी प्रमाण नहीं है।
ईसा पूर्व ३०० से भारत पर सिथियन लोगों का आक्रमण होने लगा था।सिथियन लोगों ने भारत पर सत्ता की स्थापना की थी और ईसा.पूर्व ३०० के बाद के ज्यादातर राजवंश सिथियन वंश के थे।भारत आने के बाद सिथियन लोगों ने वैदिक सभ्यता को ही समर्थन दिया था।ब्राह्मण सिथियन लोगों की पुरोहित जाती थी।
सुमेरियन और सिंधु सभ्यता के नष्ठ हो जाने के बाद ईरान और सिंधु सभ्यता के प्रगत लोग विपुल चरवाहा क्षेत्र की उपलब्धता के कारण मध्य एशिया गये थे।भारतीय पुरूषों का यूरेशिया की गोरी महिलाओं के साथ संयोग हो गया। इसी कारण भारत के धनगरों के डीएनए में भारतीय पुरुष और यूरेशियन महिलाओं का प्रमाण ज्यादा है। अभी तक ये विरोधाभास विद्वानों को रहस्यमय ही रहा है।भारत वापस आते समय ये लोग सिथियन(शक),हुन और गुर्जर नाम से जाने गए।
सिथियन लोगों का मुल व्यवसाय पशुपालन ओर चर्मकर(चमड़े) का काम था। ज्यादातर पशुपाल योद्धा थे और चार्मकार व्यवसायिक थे। भारत के मूलनिवासी लोगों का गोरी व्यापारी जातियों के साथ संयोग हो गया।


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