वेद -शस्त्रों मे मांस -भक्षण के विधान ********

वेद -शस्त्रों मे मांस -भक्षण के विधान ********
वैदिक साहित्य से पता चलता है की प्राचीन आर्य -ऋषि और याज्ञिक ब्राह्मण सूरा-पान और मांसाहार के बड़े शौकीन थे यज्ञों मे पशु बाली अनिवार्य था बली किए पशु मांस पर पुरोहित का अधिकार होता था ,और वही उसका बटवारा भी करता था। बली पशुओ मे प्राय;घोडा ,गौ ,बैल अज अधिक होते थे.
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ऋग्वेद मे बली के समय पड़े जाने वाले मंत्रो के नमूने पड़िए;-

1- जिन घोड़ो को अग्नि मे बली दी जाती है ,जो जल पिता है जिसके ऊपर सोमरस रहता है ,जो यज्ञ का अनुष्ठाता है ,उसकी एवम उस अग्नि को मै प्रणाम करता हु।
(
ऋग्वेद 10,91,14)

- इंद्रा कहते है ,इंद्राणी के द्वारा प्रेरित किए गए यागिक लोग 15-20 सांड काटते और पकाते है मै उन्हे खाकर मोटा होता हू -ऋग्वेद 10,83,14

2- हे दिव्य बधिको!अपना कार्य आरंभ करो और तुम जो मानवीय बधिक हो ,वह भी पशु के चरो और आग घूमा चुकाने के बाद पशु पुरोहित को सौपदो। (एतरे ब्राह्मण )

*****एतद उह परम अन्नधम यात मांसम। (सत्पथ ब्राह्मण 11,4,1,3)
अर्थ ;- सटपथ ब्राह्मण कहता है, की जीतने भी प्रकार के खाद्द अन्न है,उन सब मे मांस सर्वोतम है
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इस प्रकार ऐसे कई उदाहरण है जो वेदो-शास्त्रो मे मांस भक्षण के समर्थन मे आपको मिल जाएंगे

वशिष्ठ धर्मसुत्रा (11/34) लिखा हैं,"अगर एक ब्राह्मण'श्रद्धा'या पूजा के अवसर पर उसे प्रस्तुत किया गया मांस खाने से मना कर देता है, तो वह नरक में जाता है."

"पिबा सोममभि यमुग्र तर्द ऊर्वं गव्यं महि गर्णानैन्द्र | वि यो धर्ष्णो वधिषो वज्रहस्त विश्वा वर्त्रममित्रियाशवोभि­ ||


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