एक राजपूत का मत

एक राजपूत का मत (लेकिन राजपूत भाई तुम ये मत भुलना की तुम्हारे अंदर भी पशुपाल और कोली लोगों का रक्त दौड़ रहा है और जाट तो राजपूतों से प्राचीन समुदाय है.सिर्फ फर्क इतना है कि सत्तरह सदी के पहले जाट,पटेल,बनिया आदि मामूली लोग थे)
कृपया जरूर पढ़ें,जो जाट बिरादरी आज अपनी नव धनाढ्य स्थिति पर इतना इतराती है,उसके ज्यादातर वंश राजपूत पिता(राजपूत पिता नही पशुपाल पिता.क्योंकि आप भी किसी के पूत हो) और जाट माता की संतान हैं ,जिन्हे वर्णसंकर होने के कारण राजपूत बिरादरी में शामिल नही किया गया और वो जाट बन गए,इस प्रकार जाट बिरादरी में भी राजपूतो के वंश जैसे चौहान,पवार,तोमर,सोलंकी आदि शुरू हो गए, क्योंकि राजपूतो में रक्त की शुद्धता को महत्व दिया जाता है,इसीलिए राजपूत पिता की जाटनी से हुई संतान राजपूत नही मानी गई,तब से जाट बिरादरी राजपूतो से ईर्षा भाव रखती है,और राजपूतो से चिड इनके खून में रच बस गई है,
कोई बात नहीं हमारे पुरखों की कुछ भूल का नतीजा है ये जो आज हमे आँखे दिखा रहे हैं,बस इनसे यही कहना चाहेंगे कि खूब तरक्की करो पर अपनी पैदाइश की कहानी मत भूलो।।
गर्व करो कि तुम्हारे अंदर भी राजपूती रक्त दौड़ रहा है.

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