शक विदेशी नही थे!

शक विदेशी नही थे!
इतिहासकार मानते हैं कि शक विदेशी थे! परन्तु इतिहास पुनःसंशोधन के बाद मुझे ये पता चला कि वो भारतीय धनगर ही थे जो चरवाही एवं साम्राज्य की स्थापना करने के लिये पश्चिम यूरेशिया गये थेI
धनगर डी एन ए रिपोर्ट में दक्षिण एशियाइ पुरुष (South Asian males) और पश्चिम यूरेशियन महिलाओं(West Eurasian Females) का प्रमाण ज्यादा हैI जब आर्य उत्तर ध्रुव (North Pole) से पश्चिम यूरेशिया पहुंचे तब भारतीय धनगर(दक्षिण एशियाइ पुरुष/South Asian males) पश्चिम एशिया पर राज्य करते थेI उन्होंने आर्य महिलाओं (पश्चिम यूरेशियन महिलाओं) से शादी की और आर्यों की वैदिक सभ्यता का स्विकार कियाI
राजपूतों की उत्पत्ति: विदेशी वंश का मत
राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में उतने ही मत हैं जितने कि उसके विद्वान। जहाँ एक ओर कुछ विद्वान राजपूतों को विदेशी बताते हैं, वहीं दूसरे उन्हें देशी मानते हैं जबकि एक तीसरा मत उनकी देशी - विदेशी मिश्रित उत्पत्ति मानता है। परन्तु मतों के इस विव्चना के पूर्व हम "राजपूत" शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार कर लेते हैंI
इतिहासकार कर्नल टॉड ने राजपूतों को शक और सिथियन बताया है। इसके प्रमाण में वे राजपूतों में प्रचलित ऐसे रीति - रिवाजों का उल्लेख करते हैं जो शक जाति के रीति - रिवाजों से साम्य रखते हैं। सूर्य की पूजा, सती प्रथा, अश्वमेघ यज्ञ, मद्यपान, शस्रों और घोड़ों की पूजा तथा तातारी और शकों की पुरानी कथाओं का पुराणों की कथाओं से साम्य रखना ऐसे तथ्य हैं जो राजपूतो की विदेशी उत्पत्ति प्रकट करते है। डॉ० स्मिथ ने भी शक, यूचि, गुर्जर व हूण विदेशी जातियों का भारत में धर्म परिवर्तन कर हिन्दू बन जाना स्वीकार किया है और इन विदेशी जातियों के राज्य स्थापित हो जाने पर उससे राजपूतों की उत्पत्ति मानी है। राजपूतों ने एपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु स्वयं को चन्द्र या सूर्यवंशी कहना प्रारम्भ किया। कर्नल टॉड की पुस्तक का सम्पादन करने वाले विलियम कुक भी इस मत का समर्थन करते हुए लिखते हैं कि वैदिक कालीन क्षत्रियों एवं मध्यकालीन राजपूतों की अवधि का अन्तराल इतना अधिक है कि दोनों के सम्बन्ध मूलवंश - क्रम से संबंधित करना संभव नहीं है। शक, सिथियन, हूण आदि विदेशी जातियाँ हिन्दू समाज में स्थान पा चुके थे और देश - रक्षक के रुप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। अत: उन्हें महाभारत तथा रामायण काल के क्षत्रियों से संबंधित कर दिया गया और सूर्य तथा चंद्रवंशी माना गया।
डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने विदेशी उत्पत्ति को अस्वीकार किया है। जिन रीति - रिवाजों के आधार पर राजपूतों और शकों का साम्य किया गया है वे रीति – रिवाज आर्यों मे वैदिक काल तथा पौराणिक काल में भी भारत में विद्यमान थे।

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