भूली-बिसरी कड़ियों का भारत
भारत की संस्कृति, विज्ञान और इतिहास की, कब कहाँ और कौन सी कड़ी खोई हुई है, इसकी चर्चा इस लेख में कर रहा हूँ।
वैदिक साहित्य के लिए तो 3-4 हज़ार साल पहले जाना होगा। देखें क्या चल रहा है! आश्रमों में बैठे छात्र हाथों की विभिन्न मुद्राओं के साथ वैदिक ऋचाओं का सस्वर पाठ कर रहे हैं। गायन और कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली भाषा संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन व्याकरण समृद्ध भाषा है। इसमें कहे गए वेद विश्व की प्राचीनतम साहित्यिक रचना हैं। भारतीय साहित्य के वेदों, महाभारत औरगीता का विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय महत्व है। ऋग्वेद के दसवें मंडल के 129वें सूक्त को, नासदीय सूक्त के रूप में ख्याति मिली। इसने पूरे विश्व को चमत्कृत कर दिया। इसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के रहस्यात्मक तथ्य की व्याख्या है। वेदों की प्राचीनता आज भी अतुलनीय है। जिस समय वेदों की रचना हुई, उस समय यूरोप की स्थिति इतनी पिछड़ी हुई थी कि जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक मॅक्समूलर ने कहा है कि ‘जब ऋग्वेद की रचना हो रही थी तो यूरोप में लोग वस्त्र पहनना और घरों में रहना भी नहीं जानते थे’।
वेदों के बाद उपनिषद और उसके बाद आया विश्व का विशालतम महाकाव्य महाभारत। महाभारत ने सदैव ही विश्व भर के विद्वानों को सम्मोहित किया है। जब महाभारत का ज़िक्र आता है तो होमर का इलियड और फ़िरदौसी का शाहनामा बहुत पीछे छूट जाते हैं। हमारे अद्भुत ग्रंथों की श्रृंखला में गीता का अनुवाद विश्व की सभी भाषाओं में हो चुका है। गीता हमें जीवन में सफल होने से लेकर गंभीर दर्शन और संन्यास तक की शिक्षा देती है। हम सन्यस्थ होकर सामान्य रूप से सांसारिक जीवन कैसे जी सकते हैं अथवा सांसारिक होकर कैसे सन्यस्थ रहें, यही गीता का मूल ज्ञान है जो सारी दुनिया को आकर्षित करता है।महात्मा गाँधी कहा करते थे कि मेरे पास कोई ऐसा प्रश्न नहीं है जिसका कि उत्तर मुझे गीता से मिल न जाए, हो सकता है पढ़ने के कुछ समय बाद मिले लेकिन मिलता अवश्य है।
आइए अशोक के काल याने तीसरी चौथी शताब्दी ईसा पूर्व चलते हैं, देखें क्या चल रहा है! महर्षि पाणिनि विश्व प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण के ग्रंथ अष्टाध्यायी को पूरा करने में निमग्न हैं। ये उस तरफ़ कौन बैठा है ? ये तो महर्षि पिंगल हैं पाणिनि के छोटे भाई, इनकी गणित में रुचि है, संख्याओं से खेलते रहते हैं और शून्य की खोज करके ग्रंथों की रचना कर रहे हैं। साथ ही कंप्यूटर में प्रयुक्त होने वाले बाइनरी सिस्टम को भी खोज कर अपने भुर्जपत्रों में सहेज रहे हैं।
कौन थे ये लोग ? क्या ये सब झूठ है ? आज के हालात देखकर तो ऐसा ही लगता है, सब कुछ जैसे विदेश से आ रहा है। दुनिया में न्यूटन और आइंसटाइन को विज्ञान का भगवान माना जाता है तो फिर येकणाद ऋषि कौन थे जिन्होंने परमाणु की खोज की, आर्यभट्ट कौन थे, जिन्होंने ‘पाई’ के मान को पहचाना और दुनिया को बताया, वाराहमिहिर आदि क्या काल्पनिक थे ?
यूरोप चलते हैं, पाँचवीं शताब्दी के रोम साम्राज्य में क्या हो रहा है। कभी हूण तो कभी गोथ वहाँ तबाही मचाए हुए हैं। इन गोथों ने तो पूरे रोम को बंधक बना लिया है। ज़बर्दस्त मांग है इनकी, आप जानते हैं वो क्या है? भारत के केरल राज्य की काली मिर्च। इन रोमनों की रिहाई 3000 पाउंड काली मिर्च देकर हुई है। यदि इंग्लैन्ड में चलें तो यहाँ राजकीय वस्त्रों को भारतीय नील से सजाया जा रहा है।
ईराक़ में, जो प्राचीन मेसोपोटामिया था, भारतीय पार्सलों का ढेर लगा है। ईसा पूर्व की 1500 साल पहले समाप्त हुई सिंधु सभ्यता में मुहर लगा कर बनाए गए पार्सल ईराक़ में ? हो क्या रहा है यह ? असल में मोअन-जो-दाड़ो और हड़प्पा के व्यापारिक संबंध न केवल मेसोपोटामिया से हैं बल्कि मिस्र (ईजिप्ट) से भी हैं।
थोड़ा पहले आएँ वापस भारत चलें। अंग्रेज़ों के या उससे पहले मुग़लों के शासन को देखें। भारत में शिक्षा के संबंध में कुछ भ्रांतियां अवश्य हो जाती हैं। इस संबंध में रूसी विशेषज्ञ विक्तर पेत्रोव के आंकड़ों को अवश्य देखना चाहिए।
वेदों के बाद उपनिषद और उसके बाद आया विश्व का विशालतम महाकाव्य महाभारत। महाभारत ने सदैव ही विश्व भर के विद्वानों को सम्मोहित किया है। जब महाभारत का ज़िक्र आता है तो होमर का इलियड और फ़िरदौसी का शाहनामा बहुत पीछे छूट जाते हैं। हमारे अद्भुत ग्रंथों की श्रृंखला में गीता का अनुवाद विश्व की सभी भाषाओं में हो चुका है। गीता हमें जीवन में सफल होने से लेकर गंभीर दर्शन और संन्यास तक की शिक्षा देती है। हम सन्यस्थ होकर सामान्य रूप से सांसारिक जीवन कैसे जी सकते हैं अथवा सांसारिक होकर कैसे सन्यस्थ रहें, यही गीता का मूल ज्ञान है जो सारी दुनिया को आकर्षित करता है।महात्मा गाँधी कहा करते थे कि मेरे पास कोई ऐसा प्रश्न नहीं है जिसका कि उत्तर मुझे गीता से मिल न जाए, हो सकता है पढ़ने के कुछ समय बाद मिले लेकिन मिलता अवश्य है।
आइए अशोक के काल याने तीसरी चौथी शताब्दी ईसा पूर्व चलते हैं, देखें क्या चल रहा है! महर्षि पाणिनि विश्व प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण के ग्रंथ अष्टाध्यायी को पूरा करने में निमग्न हैं। ये उस तरफ़ कौन बैठा है ? ये तो महर्षि पिंगल हैं पाणिनि के छोटे भाई, इनकी गणित में रुचि है, संख्याओं से खेलते रहते हैं और शून्य की खोज करके ग्रंथों की रचना कर रहे हैं। साथ ही कंप्यूटर में प्रयुक्त होने वाले बाइनरी सिस्टम को भी खोज कर अपने भुर्जपत्रों में सहेज रहे हैं।
कौन थे ये लोग ? क्या ये सब झूठ है ? आज के हालात देखकर तो ऐसा ही लगता है, सब कुछ जैसे विदेश से आ रहा है। दुनिया में न्यूटन और आइंसटाइन को विज्ञान का भगवान माना जाता है तो फिर येकणाद ऋषि कौन थे जिन्होंने परमाणु की खोज की, आर्यभट्ट कौन थे, जिन्होंने ‘पाई’ के मान को पहचाना और दुनिया को बताया, वाराहमिहिर आदि क्या काल्पनिक थे ?
यूरोप चलते हैं, पाँचवीं शताब्दी के रोम साम्राज्य में क्या हो रहा है। कभी हूण तो कभी गोथ वहाँ तबाही मचाए हुए हैं। इन गोथों ने तो पूरे रोम को बंधक बना लिया है। ज़बर्दस्त मांग है इनकी, आप जानते हैं वो क्या है? भारत के केरल राज्य की काली मिर्च। इन रोमनों की रिहाई 3000 पाउंड काली मिर्च देकर हुई है। यदि इंग्लैन्ड में चलें तो यहाँ राजकीय वस्त्रों को भारतीय नील से सजाया जा रहा है।
ईराक़ में, जो प्राचीन मेसोपोटामिया था, भारतीय पार्सलों का ढेर लगा है। ईसा पूर्व की 1500 साल पहले समाप्त हुई सिंधु सभ्यता में मुहर लगा कर बनाए गए पार्सल ईराक़ में ? हो क्या रहा है यह ? असल में मोअन-जो-दाड़ो और हड़प्पा के व्यापारिक संबंध न केवल मेसोपोटामिया से हैं बल्कि मिस्र (ईजिप्ट) से भी हैं।
थोड़ा पहले आएँ वापस भारत चलें। अंग्रेज़ों के या उससे पहले मुग़लों के शासन को देखें। भारत में शिक्षा के संबंध में कुछ भ्रांतियां अवश्य हो जाती हैं। इस संबंध में रूसी विशेषज्ञ विक्तर पेत्रोव के आंकड़ों को अवश्य देखना चाहिए।
शिक्षा
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पुरुष
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महिला
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सम्राट अशोक के समय
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27%
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7%
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मध्यकाल में
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15%
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3%
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अंग्रेज़ी शासन में
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11%
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0.6%
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भारत में पुत्री के विवाह की उम्र का शिक्षा पर सीधा असर रहा है।
कन्या विवाह
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उम्र
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वैदिक युग में
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16-18 वर्ष
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मध्यकाल में
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12-14 वर्ष
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उत्तर मध्यकाल में
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7-9 वर्ष
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मध्यकाल में विदेशी मुस्लिम शासन में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर उनका विवाह अत्यधिक कम उम्र में होने लगा और शिक्षा ख़त्म होती चली गई। मध्यकाल ने ही नहीं बल्कि अंग्रेज़ी शासन ने भी भारत में शिक्षा को समाप्त करने के पूरे उपाय किए। अंग्रेज़ों द्वारा, यूरोपीय शिक्षा प्रणाली तो लागू कर दी गई लेकिन बजट मात्र 1.7% ही रखा गया। याने विश्व भर में सबसे कम।
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