महाक्षत्रप नहपान:


नहपान 'क्षहरात वंश' का ख्यातिप्राप्त व बहुत ही योग्य शासक था।भूमक अपने समय के महान क्षत्रपों में गिना जाता था। उसके बाद नहपान ही 'क्षहरात वंश' (खरात वंश) का शासक व गद्दी का वास्तविक उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया था। भारत में शक राजा अपने आप को 'क्षत्रप' कहते थे। शक शासकों की भारत में दो शाखाएँ हो गई थीं। एक 'उत्तरी क्षत्रप' कहलाते थे, जो तक्षशिला एवं मथुरा में थे और दूसरे 'पश्चिमी क्षत्रप' कहलाते थे, जो नासिक एवं उज्जैन के थे। पश्चिमी क्षत्रप अधिक प्रसिद्ध थे।

सिक्के
भूमक के अनेक सिक्के उपलब्ध हुए हैं, जो महाराष्ट्र और काठियावाड़ से मिले हैं। इससे अनुमान किया जाता है कि महाराष्ट्र और काठियावाड़ दोनों उसके शासन में थे। क्षहरात कुल का सबसे प्रसिद्ध शक क्षत्रप नहपान था। इसके सात उत्कीर्ण लेख और हज़ारों सिक्के उपलब्ध हुए हैं। सम्भवतः यह भूमक का ही उत्तराधिकारी था, पर इसका भूमक के साथ क्या सम्बन्ध था, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। नहपान का राज्य बहुत ही विस्तृत था। यह बात उसके जामाता उषावदात के एक लेख से ज्ञात होती है। इस लेख के कुछ अंश निम्नलिखित हैं-

"सिद्ध हो। राजा क्षहरात क्षत्रप नहपान के जामाता, दीनाक के पुत्र, तीन लाख गौओं का दान करने वाले, बार्णासा (नदी) पर सुवर्णदान करने वाले, देवताओं और ब्राह्मणों को सोलह ग्राम देने वाले, सम्पूर्ण वर्ष ब्राह्मणों को भोजन कराने वाले, पुण्यतीर्थ प्रभास में ब्राह्मणों को आठ भार्याएँ देने वाले, भरुकच्छ दशपुर गोवर्धन और शोर्पारण में चतुःशाल वरुध और प्रतिश्रय देने वाले, आराम, तडाग, उदपान बनवाने वाले, इवा पारातापी करवेणा दाहानुका (नदियों पर) नावों और .....धर्मात्मा उपावदात ने गोवर्धन में त्रिरशिम पर्वत पर यह लेण बनवाई

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