महाक्षत्रप नहपान (नाबोवाहन)




महाक्षत्रप नहपान (नाबोवाहन): Mahakshatrap Nahpan as Nabhovahan (Greek called as Nambanus)
विक्रमादित्य के इतिहास को अंग्रेजों ने जान-बूझकर तोड़ा और भ्रमित किया और उसे एक मिथकीय चरित्र बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे, जबकि अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि ईसा मसीह के काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे
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§  गौतमीपुत्र सातकर्णि के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले अनेक शिलालेख सिक्के खोज द्वारा प्राप्त हुए हैं। इस प्रतापी राजा से सम्बन्ध रखने वाली एक जैन अनुश्रुति का उल्लेख करना भी इस सम्बन्ध में उपयोगी होगा। जैन ग्रंथ 'आवश्यक सूत्र' पर 'भद्रबाहु स्वामी'-विरचित 'निर्युक्ति' नामक टीका में एक पुरानी गाथी दी गई है, जिसके अनुसार 'भरुकच्छ'(भरूच) का राजा नहवाण कोष का बड़ा धनी था। दूसरी ओर प्रतिष्ठान का राजा सालवाहन सेना का धनी था। सालवाहन ने नहवाण पर चढ़ाई की, किन्तु दो वर्ष तक उसकी पुरी को घेर रहने पर भी वह उसे जीत नहीं सका। भरुकच्छ में कोष की कमी नहीं थी। अतः सालवाहन की सेना का घेरा उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। अब सालवाहन ने कूटनीति का आश्रय लिया। उसने अपने एक अमात्य से रुष्ट होने का नाटक कर उसे निकाल दिया। यह अमात्य भरुकच्छ गया और शीघ्र ही नहवाण का विश्वासपात्र बन गया। उसकी प्रेरणा से नहवाण ने अपना बहुत सा धन देवमन्दिर, तालाब, बावड़ी आदि बनवाने तथा दान-पुण्य में व्यय कर दिया। अब जब फिर सालवाहन ने भरुकच्छ पर चढ़ाई की, तो नहवाण का कोष ख़ाली था। वह परास्त हो गया, और भरुकच्छ भी सालवाहन के साम्राज्य में शामिल हो गया। शक क्षत्रप नहवाण (नहपान) के दान-पुण्य का कुछ परिचय उसके जामाता उषाउदात के लेखों से मिल सकता है।



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