अहीर कौन है ?


अहीर प्राचीन पशुपालक जाती है Iपुंड्र और औंड्र अहीर मुल आर्य वंशी थेI अहीर प्रतिहार, परिहार, परमार, सोलंकी(चालुक्य) और चौहान वंश के सूर्य और अग्निवंशी क्षत्रिय थेIअहीर कुछ धनगर और बहुतांश गुर्जर, जाट, राजपूत, मराठा, महार, कुणबी, माळी, गवळी, मातंग, पारधी ,भिल्ल ,रामोशी, वंजारी, कुर्ग, Bunt(शेट्टी/राय), मुदुराजा-कोळी ,महादेव-कोळी और भारता की ओबीसी जाती का मुल आहेI विश्वामित्रा की शाप से वो शूद्र(निषाद ) हो गये ऐसा ऐतरेय ब्राह्मण कहता हैIनाग महिलाओं से संबंध के कारण वो नागवंशी हो गयेI
अहीर का मतलब है नागI कृष्ण यादव थाI नंद बाबा अहीर-गुर्जर थाI महाभारत के बाद अहीर कृष्ण यानी की चंद्र(यदुवंश) से रिश्ता जोड़ने लगेI(Krishna was fostered by Ahirs).
पौंड्र, औंड्रा अहिरो ने विश्वामित्रा की शाप से दक्षिण में आकर बंगाल, आंध्र, ओडिसा (आंध्र और उड़ीसा औंड्र शब्द का अपभ्रंश है) में सत्ता स्थापन की I ये लोग वैदिक परंपरा के अनुसार शुद्र माने गये अवैदिक समाज थे और मुल पशुपालक थेI

Comments

  1. झूठा इतिहास बता कर लोगों में भ्रम पैदा करते हो

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  2. Chup gadhe. Tujhe kuch nhi pta logo me brahm failane k siva kuch aata h k nhi

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  3. अबे ओ मादरचोद अपनी माँ को चोद के आया है झूठा इतिहास लिख रहा है

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  4. कौन है बेवकूफ जो अहीरों के गौरवशाली इतिहास पर प्रश्रचिन्ह उठा रहा है।

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  6. are oye bete tu Ahir(Yadav) ke itihaas se cherchaar kr raha be bc... ahiro ka itihaas itna chota hai ke tum badal doge? Ahir hain hum , panga na le bc.

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  7. Usme hour krna thoda bhagwano ko kitni battmiji se likha he like krishna yadav tha kya tamij he chutiye ki bhagwano se aage ho gya nhi pta to gand marane ko gyan pelne aate ho

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  8. रांव तुलाराम की सेना में शेखवात राजपूतो ने भी हिस्सा लिया था। जिन जादोनो को शेखवात मुह नही लगाते वो शेखवात रांव तुलाराम की सेना में थे।

    अब बात करते है करौली के जादोन की , इनकी रियासत को अंग्रेज़ो के सामने घुटने टेकने वाली रियासतों में से सबसे पहली रियासत माना जाता है। क्यों ,क्योंकि करौली पर मराठो का कब्ज़ा था और जादोन ने अंग्रेजो से मिलकर करौली को दोबारा प्राप्त किया था।

    राजपूतो में अलग अलग गोत्र होते है और जादोन में अपने अलग अलग गोत्र होते है क्योंकि ये राजपूत में जा मिले , जिसकी वजह से आजतक इन्हें सही स्थान राजपूतो में नही प्राप्त हुआ।
    परंतु एक समय था जब प्रताप और राज केवल असली राजपरिवार के लोगो को लिखने का अधिकार था। परंतु राजपूतो में हर दूसरे अपने नाम के पीछे प्रताप और राज लिख रहा। जो की एक तरह से राजपरिवार के होने का ढोंग करना है।

    आज भी अहिरो के बिजनोर राजपरिवार के लोग के नाम के साथ राज शब्द इस्तमाल किया जाता है lt col अतुल राज सिंह जी (निर्वाण गोत्र) , मैनपुरी के भारौल रियासत के राजा अनुजेश प्रताप सिंह जी है और एटा की रूपधनी रियासत के अमित मोहन प्रताप सिंह जी है । ऐसे ही बुंदेलखंड के अहीर भी जो राजपरिवार से है प्रताप और ठाकुर लिखते है। यही स्थिति जाट , गुज्जर राज परिवारों में भी है।

    परंतु हर राजपूत अपने आप को जबरदस्ती राजपरिवार से जोड़ने की दौड़ में प्रताप और राज लिखना शुरू कर दिया। हरी ॐ ढोंग तो कोई राजपूतो से करना सीखें ,कोई सीखे इनसे।
    यादव महासभा की गलतियां।

    1) जाति जनजागरण शुरू किया गया जिसमे अहिरो को जोड़ने का कार्य जोर शोर से शुरू किया गया ,इसके लिए सभी अहीर राजपरिवार आगे आये और दान और सहयोग दिया, और 1924 से पहले स्थापना हुई 'अहीर क्षत्रिय महासभा' की। और कन्नौज और लखनऊ के आगे मिलने वाली ग्वालवंशी का गोपाल मित्र मंडल ऐसे ही उनकी भी एक महासभा थी। महासभा ने इस ग्वालवंशी को अहिरो में मिला दिया।

    नतीजा ये हुआ की जो ग्वालवंशी है वो मुख्या रूप से दूध और खेती के कार्य में समलित थे और अहीर एक कृषक और जमींदार कौम थी परंतु अहिरो को लोग दूध का कार्य करने वाले समझने लगे।

    ग्वाल यादव वंश का अति पवित्र गोत्र था इन्होंने बिहार के रति राउत और दक्षिण भारत मे कई जगहों पर शासन किया है नेपाल के पहले राजा भी गोपाल वंश के थे। वही पर अहिरो में गोत्र परंपरा ,इतिहास और वंशावली को लिखने के लिए भाट परंपरा चली आ रही , जो की क्षत्रिय में मुख्य रूप से होती है। ग्वालवंशीयो को वैश्य माना जाता था उनके कर्म के अनुसार और अहिरो में इनको मिला कर लोग भ्रान्ति वस् अहिरो को वैश्य मानने लगे। आज भी पूर्वांचल में ग्वाले अपने को निमण वर्ण का मानते है क्योंकि यह आर्थिक रूप से कमजोर है। महासभ ने इनको अहीरो के अंदर मिलाया है।

    अब आगे बात करे तो गुजरात के रेबारी और भरवाड़ और गड़रियों को भी महासभा ने अहिरो में मिलाना चाहा परन्तु गड़रिये छोड़ कर चले गए ,परंतु गुजरात में रेबारी और भरवाड़ अहीर लिखने लगे।

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  9. यादव और अहीर अलग-अलग कुल हैं


    यादव-प्राण-कार्ये च शक्राद अभीर-रक्शिणे।
    गुरु-मातृ-द्विजानां च पुत्र- दात्रे नमो नमः।।
    (Garga Samhita 6:10:16)
    Translation: जिन्होंने यादवों की रक्षा की, जिन्होंने राजा इंद्र से अहीरों की भी रक्षा की और अपनी माता, गुरु और ब्राह्मण को उनके खोए हुए बेटों को वापस दिलाया, मैं आपको आदरणीय प्रणाम करता हूँ।

    अन्ध्रा हूनाः किराताश् च पुलिन्दाः पुक्कशास् तथा
    अभीरा यवनाः कङ्काः खशाद्याः पाप-योणयः
    (Sanatakumara Sahmita - Sloka 39)
    Translation : अंध्र, हुण, किरात, पुलिंद, पुक्कश, अहीर, यवन, कंक, खस और सभी अन्य पापयोनि से उत्पन्न होने वाले भी मंत्र जप के लिए योग्य हैं।

    आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
    कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥ (Ramcharitmanas 7:130)
    Translation अहीर, यवन, किरात, खस, श्वपच (चाण्डाल) आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥

    किरात- हूणान्ध्र- पुलिन्द-पुक्कश आभीर- कङ्क यवनाः खशादयाः।
    येन्ये च पापा यद्-अपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः।।
    (Srimad Bhagavatam 2:4:18)
    Translation: किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, अहीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ॥

    ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
    आभीरोऽम्बष्ठकन्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ॥ १५ ॥
    (Manusmriti 10:15)
    Translation: उग्र कन्या (क्षत्रिय से शूद्रा में उत्पन्न कन्या को उग्रा कहते हैं) में ब्राह्मण से उत्पन्न बालक को आवृत, अम्बष्ठ (ब्राह्मण से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) कन्या में ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र अहीर और आयोगवी कन्या (शूद्र से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न पुत्र को धिग्वण कहते हैं।

    अन्त्यजा अपि नो कर्म यत्कुर्वन्ति विगर्हितम्‌ आभीरा ।
    स्तच्च कुर्वति तत्किमेतत्त्वया कृतम् ॥ ३९ ॥
    (Skanda Purana: Nagarkhand: Adhyaya 192 Sloka 39)
    Translation: अन्यज जाति के लोग भी जो घृणित कर्म नहीं करते अहीर जाति के लोग वह कर्म करते हैं।

    आभीरैर्दस्युभिः सार्धं संगोऽभूदग्निशर्मणः ।
    आगच्छति पथा तेन यस्तं हंति स पापकृत् ॥ ७ ॥
    (Skanda Puran: Khanda 5:Avanti Kshetra Mahatmyam : Adhyay 24: Sloka 7)
    Translation : उस जंगल में अहीर जाति के कुछ लुटेरे रहते थे। उन्हीं के साथ अग्निशर्मण की संगति हो गयी। उसके बाद बन के मार्ग में आने वाले लोकों को वह पापी मारने लगा।

    उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः ।
    आभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३३ ॥
    तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः ।
    अमोघः क्रियतां राम अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३४ ॥
    तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः ।
    मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३५ ॥
    (Valmiki Ramayan -Yudhkand: Sarg22: Shlok 33-35)
    Translation : वहाँ अहीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सब-के-सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ॥ ३३ ॥ उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं नहीं सह सकता। श्रीराम ! आप अपने इस उत्तम बाण को वहीं सफल कीजिये ॥ ३४ ॥ महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दिखाये अनुसार उसी देश में श्रीरामचन्द्रजी ने वह अत्यन्त प्रज्वलित बाण छोड़ दिया ॥ ३५ ॥

    शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम्।
    वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिनः।। १०।।
    (Mahabharata -Sabhaparva:Adhyay 35:Shlok 10)
    Translation : सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले शूद्र अहीर गण थे। मत्यस्यगण के पास रहने वाले और पर्वतवासी इन सबको नकुल ने वश में कर लिया ।

    यादव महिलाओं के साथ अहीरों ने किया बलात्कार
    ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतसः
    आभीरा मंत्रयामासः समेत्याशुभदर्शन का "
    प्रेक्षतस्तवेव पार्थस्य वृषणयन्धकवरस्त्रीय
    मुरादाय ते मल्लेछा समन्ताजज्नमेय् ।
    (Mahabharata: Mausalparva: Adhyay 7 Shlok -47,63)
    Translation: लोभ से उनकी विवेक शक्ति नष्ठ हो गयी, उन अशुभदर्शी पापाचारी अहीरो ने परस्पर मिलकर हमले की सलाह की। अर्जुन देखता ही रह गया, वह म्लेच्छ डाकू (अहीर) सब ओर से यदुवंशी - वृष्णिवंश और अन्धकवंश कि सुंदर स्त्रियों पर टूट पड़े।

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