रुद्रदामन-विक्रमादित्य

शक महाक्षत्रप रुद्रदामन
रुद्रदामन 'कार्दमक वंशी' पितामह चष्टन का पौत्र था, जिसे चष्टन के बाद गद्दी पर बैठाया गया था। यह इस वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था। रुद्रदामन एक अच्छा प्रजापालक, तर्कशास्त्र का विद्वान तथा संगीत का प्रेमी था। इसके समय में उज्जयिनी शिक्षा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन चुकी थी।
सातवाहन सम्राट गौतमीपुत्र सातकर्णि ने ईसा पूर्व.४३३ में क्षहरात(खरात) वंश के शकों को पराजीत किया थाI
ईसा पूर्व.३५० में कर्दम वंश के शक पितामह चष्टन ने क्षहरात वंश के शक महाक्षत्रप नहपान द्वारा खोए हुए कुछ प्रदेशों को सातवाहनों से पुनः जीतकर उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था और शक संवत की शुरुआत कीI
पितामह चष्टन के पौत्र महाक्षत्रप रुद्रदामन ने पश्चिमी शक क्षत्रप साम्राज्य का मालवा से सिंध प्रान्त और गुजरात से महाराष्ट्र तक विस्तार कियाI
रुद्रदामन के विषय में विस्तृत जानकारी उसके जूनागढ़ (गिरनार) से शक संवत 72 के अभिलेख से मिलती है।
रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से उसके साम्राज्य के पूर्वी एवं पश्चिमी मालवा, द्वारका के आस-पास के क्षेत्र, सौराष्ट्र, कच्छ, सिंधु नदी का मुहाना, उत्तरी कोंकण आदि तक विस्तृत होने का उल्लेख मिलता है।
महाक्षत्रप रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख
चन्द्रगुप्तस्य राष्ट्रियेण वैश्येन पुष्पगुप्तेन कारितमशोकस्य मौर्यस्य कृते यवनराजेन तुषारस्फेनाधिष्टाय....
इसी अभिलेख में रुद्रदामन द्वारा सातवाहन नरेश दक्षिण पथस्वामी में ही उसे 'भ्रष्ट-राज-प्रतिष्ठापक' कहा गया है।
इसने चन्द्रगुप्त मौर्य के मंत्री द्वारा बनवायी गई, सुदर्शन झील के पुननिर्माण में भारी धन व्यय करवाया था।
रुद्रदामन कुशल राजनीतिज्ञ के अतिरिक्त प्रजापालक, संगीत एवं तर्कशास्त्र के क्षेत्र का विद्वान था।
इसके समय में संस्कृत साहित्य का बहुत विकास हुआ था।
रुद्रदामन ने सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लम्बा अभिलेख (जूनागढ़ अभिलेख) जारी किया।यह लेख संस्कृत काव्य शैली के विकास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है।
उसके समय में उज्जयिनी शिक्षा का प्रमुख केन्द्र थी।
पश्चिमी भारत का अन्तिम शक नरेश रुद्रसिंह तृतीय था।
ईसा पूर्व.२५० में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस वंश के अन्तिम रुद्र सिंह तृतीय की हत्या कर शकों के क्षेत्रों को गुप्त साम्राज्य में मिला लिया
क्षहरात(खरात) वंश के चक्रवर्ती शक सम्राट विक्रमसेन (विक्रमादित्य) विश्वविजेता थेI किसी विक्रमादित्य राजा के विषय में, जो ई. पू. ५७ में था, सन्देह प्रकट किए गए हैं यह अफसोस की बात हैI चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य का जब जन्म हुआ था, तब देवता ने भी फुल बरसाए थे!
गुप्त साम्राज्य पर जीत के बाद शक सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत कीI
विक्रम संवत :ईसा पूर्व.५७
विक्रमादित्य के इतिहास को अंग्रेजों ने जान-बूझकर तोड़ा और भ्रमित किया और उसे एक मिथकीय चरित्र बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे, जबकि अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि ईसा मसीह के काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे।

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