अति प्राचीन सरगर वंश का इतिहास


नवम्बर 2011 में प्रकाशित ‘‘क्षत्रिय सरगरा समाज का गौरवशाली इतिहास’’ के लेखन डॉ. आर. डी. सागर ने सरगरा समाज की उत्पति के सम्बन्ध में एक कथा का वर्णन किया है । दैत्य कुल में जन्मे राजाबली ने स्वर्ग का राज्य प्राप्त करने लिए यज्ञ प्रारंभ किया । देवताओं के गुरू वृहस्पति(महर्षी वसिष्ठ के बेटे) ने इस यज्ञ में एक जीवित मनुष्य की आहुति देने की आज्ञा दी । राजा बलि आहुति के लिए जीवित मनुष्य ढूंढते हुए ऋषि मानश्रृंग के आश्रम में पहुचे । मानश्रृंग ऋषि के 14 वर्षीय पुत्र सर्वजीत को पिता की सहमति से लेकर आए । यज्ञ में आहुति देने से एक दिन पहले सर्वजीत ऋषि वाल्मीकि के पास पहूँचा । ऋषि ने अपने तप के प्रभाव से उसे ऊर्जावान बना दिया । यज्ञ में सर्वजीत की जीवित आहुति दे दी गई । यज्ञ सवा तीन महीने चला । यज्ञ समाप्ति के बाद सर्वजीत यज्ञ की ढेरी से जीवित निकला । ऋषि वाल्मीकि ने सर्वजीत को सात साल पाला-पोषा पढाया । गुरू वाल्मीकि की आज्ञा का पालन करते हुए सर्वजीत ने अवंति के राजा सत्यवीर(चौहान वंश) की पुत्री मधुकंवरी के साथ विवाह किया । उनके तीन पुत्र हुए- 1. सर्गरा 2. सेवक तथा 3.गांछा । इस प्रकार इन तीन जातियों की उत्पति हुई । लेखक यह भी कहते है कि क्षत्रिय सरगरा जाति के लोग राजा बलि की तुलना में महर्षि वाल्मीकि को श्रद्वा से देखते है


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