गुर्जर -प्रतिहार वंश का मूल (Origin of Gurjar-Pratihara)





महान कुषाण साम्राज्य के समय गुर्जरो ने काफी प्रतिष्ठा पाईI गुर्जर कनिष्क के समय भारत आये और गुप्तकाल में सामन्त रुप में रहे। कुषाण साम्राज्य के क्षेत्रपति(सामन्त) भी अपने आपको गुर्जर कहने लगे I प्रतिहार(मौर्य), सुळ/सुलुक/सरक/प्रतिसरक(सोलंकी), खरात (क्षहरात),खताल, खटाणा,कार्दमक ,ठोंबरे(तोमर),पहलव
पल्लव(पालवे),हूण,माने,हूणमाने, बैसला गुर्जर,पुंड्र(पुण्डीर) इत्यादि वंश कुषाण साम्राज्य के क्षेत्रपति थेIये सब आदिम वंश थेI मौर्य प्राकृत मोरी/ मोरीया शब्द का संस्कृत रूप, सोलंकी सुळ/सुलुक का संस्कृत रूप,तोमर ठोंबरे का संस्कृत रूप हैI
कुषाण और गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI छठी शताब्दी में शक्तिशाली गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का उदय हुआI
हट्टी और गुर्जर दोनों का मूल एक ही हैI हट्टी द्रविड़ शब्द हैI द्रविड़ हट्टी का मतलब है मेषपाल/गोपाल की भूमी(The land of Hatti). इतिहासकार घोरी के अनुसार गुर्जर शब्द पशुपालन से संबंधित हैI संस्कृत में गो का मतलब है गाय और पुरानी हिंदी(पाली) और पारसी में गदर का मतलब है भेड़- बकरीI गोचर गुर्जर में सरनेम पाया जाता हैI संस्कृत शब्दकोश(Shakabada1181) में गुर्जर का मतलब दिया है शत्रु का नाश करने वालाI नागौर जिले में दधिमाता मंदिर के शिलालेख में गुर्जर प्रदेश का उल्लेख है जो वहाँ की जोजरी नदी के कारण इस नाम से पुकारा गया है। ये साक्ष्य प्रकट करते हैं कि गुर्जर राजस्थान व गुजरात में निवास करते थे। डॉ० गोपीनाथ शर्मा तथा डॉ० ओझा 'गुर्जर' शब्द का अर्थ प्रदेश विशेष मानते हैंI शिलालेखों में इस प्रदेश के शासक को 'गुर्जरेश्वर 'या 'गुर्जर' कहा गया है।
राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। गुर्जर कनिष्क के समय भारत आये और गुप्तकाल में सामन्त रुप में रहे। जैक्सन ने भी गुर्जरों को 'हूणों' के साथ भारत अभियान पर आये 'खजर' जाति का माना है। आसोपा का मत है कि गुर्जरों ने छठी शताब्दी में राजस्थान तथा गुजरात में राज्य स्थापित कर लिये थे।
अगर इतिहास पलटा जाये तो हमें मिलता है कि गुर्जर मध्य एशिया के काकेशस क्षेत्र से आये है ,काकेशस क्षेत्र वही है जो वर्त्तमान में आर्मेनिया और जार्जिया हैंI
तुर्की में हट्टी साम्राज्य के पतन के बाद हट्टी लोगों ने ईरान में बहुत समय बीतायाI ईरान में ये लोग पहलव
कहलायेI गुर्जर भी यूरोप, मध्य एशिया और चीन घुमकर भारत आयेI चीन से आये यू-ची नामक कबीले द्वारा कुषाण साम्राज्य की स्थापना की गयीI इसी वंश का तीसरा महान शासक कनिष्क था। उसके शासनकाल में कुषाण राजवंश समृद्ध हुआ। उत्तरी भारत के सांस्कृतिक विकास में कुषाण युग की गणना एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में की जाती है।
कनिष्क के राज्यारोहण के समय कुषाण साम्राज्य में अफगानिस्तान , सिंध का भाग , बैक्ट्रिया एवं पार्थिया के प्रदेश शामिल थे। अपने चरमोत्कर्ष के समय कनिष्क का साम्राज्य पश्चिमोत्तर में खोतान से पूर्व में बनारस तक एवं उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में सौराष्ट्र एवं मालवा तक फैला था। कनिष्क के इस विशाल साम्राज्य की राजधानी पुरुष पुर यानी आधुनिक पेशावर थी। मथुरा की स्थिति लगभग दूसरी राजधानी जैसी थी। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के पश्चात पहली बार एक विशाल साम्राज्य की स्थापना हुई , जिसमें गंगा , सिंधु एवं ऑक्सस की घाटियां शामिल थीं। सिल्कमार्ग की तीनों महत्वपूर्ण शाखाओं पर इसका नियंत्रण था। उत्तर-पश्चिम भारत उस समय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया। आर्थिक दृष्टि से साम्राज्य अत्यंत समृद्ध था। सिक्कों के इतिहास की दृष्टि से भी यह काल अभूतपूर्व था।
कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
गुर्जर प्रतिहार छठी शताब्दी से ११वीं शताब्दी के मध्य उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से पर राज्य करने वाला राजवंश था।मिहिरभोज इनका सबसे महान राजा था|अरब लेखक मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते है| इतिहासकरो का मानना है कि इन गुर्जरो ने भारत को अरब हमलो से लगभग ३०० साल तक बचाया था, इसलिए प्रतिहार (रक्षक) नाम पडा|यद्यपि राष्ट्रकुट्टो, जो कि गुर्जरो के शत्रु थे, ने अपने अभिलेखो इन्हे उन्के किसी एक यज्ञ का प्रतिहार (रक्षक) बताया है|गुर्जर प्रतिहारो का पालवन्श तथा राष्ट्रकुट्ट राजवन्श के साथ कन्नोज को लेकर युध होता था|
'स्मिथ' ह्वेनसांग के वर्णन के आधार पर उनका मूल स्थान आबू पर्वत के उत्तर-पश्चिम में स्थित भीनमल को मानते हैं। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार उनका मूल स्थान अवन्ति था।
राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI

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