सम्राट विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्न (ईसा पूर्व.58)
विश्वविजेता चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य(त्रिलोक नरेश) का काल कला-साहित्य
का स्वर्ण युग कहा जाता है। उसके दरबार में विद्वानों एवं कलाकारों को
आश्रय प्राप्त था। उसके दरबार में नौ रत्न थे- कालिदास, धन्वन्तरि,
क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर, वररुचि,
आर्यभट्ट, विशाखदत्त, शूद्रक, ब्रम्हगुप्त, विष्णुशर्मा और भास्कराचार्य
उल्लेखनीय थे। ब्रह्मगुप्त ने ब्रह्मसिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे बाद में न्यूटन ने
गुरुत्वाकर्षण के नाम से प्रतिपादित किया।
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