विश्वामित्र और कौशिक गोत्र
विश्वामित्र और कौशिक गोत्र
विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे।
रचनाएँ
विश्वमित्र जी को गायत्री मन्त्र का दृष्टांत हुआ।
क्षत्रिय राजा के रूप में
प्रजापति के पुत्र कुश(श्रीराम के
बेटे कुश नही) , कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र थे। एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गये। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गये। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का यथोचित आदर सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह विचार करके कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा, विश्वामित्र जी ने नम्रता पूर्वक अपने जाने की अनुमति माँगी किन्तु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिये उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया।
वशिष्ठ जी ने नंदिनी गौ का आह्वान करके विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिये छः प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार के सुख सुविधा की व्यवस्था कर दिया। वशिष्ठ जी के आतिथ्य से विश्वामित्र और उनके साथ आये सभी लोग बहुत प्रसन्न हुये।
नंदिनी गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने उस गौ को वशिष्ठ जी माँगा पर वशिष्ठ जी बोले राजन! यह गौ मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता।
वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने का आदेश दे दिया और उसके सैनिक उस गौ को डण्डे से मार मार कर हाँकने लगे। नंदिनी गौ क्रोधित होकर उन सैनिकों से अपना बन्धन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी। वशिष्ठ जी बोले कि हे नंदिनी! यह राजा मेरा अतिथि है इसलिये मैं इसको शाप भी नहीं दे सकता और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं को विवश अनुभव कर रहा हूँ। उनके इन वचनों को सुन कर नंदिनी ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! एक ब्राह्मण के बल के सामने क्षत्रिय का बल कभी श्रेष्ठ नहीं हो सकता। आप मुझे आज्ञा दीजिये, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेनासहित नष्ट कर दूँगी। और कोई उपाय न देख कर वशिष्ठ जी ने नंदिनी को अनुमति दे दी।
आज्ञा पाते ही नंदिनी ने योगबल से अत्यंत पराक्रमी मारक शस्त्रास्त्रों से युक्त पराक्रमी योद्धाओं को उत्पन्न किया जिन्होंने शीघ्र ही शत्रु सेना को गाजर मूली की भाँति काटना आरम्भ कर दिया(उनको ही परमारा/ प्रतिहार कहा गया)। अपनी सेना का नाश होते देख विश्वामित्र के सौ पुत्र अत्यन्त कुपित हो वशिष्ठ जी को मारने दौड़े। वशिष्ठ जी ने उनमें से एक पुत्र को छोड़ कर शेष सभी को भस्म कर दिया।
अपनी सेना तथा पुत्रों के के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दुःखी हुये। अपने बचे हुये पुत्र को राज सिंहासन सौंप कर वे तपस्या करने के लिये हिमालय की कन्दराओं में चले गये। कठोर तपस्या करके विश्वामित्र जी नेमहादेव जी को प्रसन्न कर लिया ओर उनसे दिव्य शक्तियों के साथ सम्पूर्ण धनुर्विद्या के ज्ञान का वरदान प्राप्त कर लिया।
There are two gotras, or
lineages, bearing the name of Visvamitra.
Kaushika Gotra:
Kaushik/Koushik
is ancient Indian'Gotra' applied to an indo-aryan clan. Origin of Kaushik can
be referenced to an ancient Hindu text. There was a Rishi (saint) by the name
of "Vishvamitra" literally meaning 'friend of the universe','vishwa'
as in universe and mitra as in 'friend', he was also called as Rishi
"Kaushik". Vishvamitra is famous in many legendary stories and in
different works of Hindu mythology. It most notably refers to Chhatrapati
Shivaji.
People belonging to Kaushika (Kaushikasa/Kaushikasa/Ghrit) Gotra take
Rajarshi Kaushika as their progenitor. Kaushika was son of Vishvamitra. 11 out
of 96 royal clans of Marathas belong to Kaushika gotra
including the illustrious house of Shivaji. 2 more clans belong to the Vishvamitra gotra. Kaushika
gotra also belongs to Baish (Dhangar Rajput) clan of Rajputs which includes in
the Suryavanshi Rajput ? (Evidence are required for Suryavansh origin), one of
the oldest and biggest Kshatriya/Chattari/Khatti/Hatti clan of Vedic India.
Heena Kaushika is one of the most notable descendents of the Kaushika's empire.
Kousikh/Kaushikasa is also
a gotra of Brahmins of Rajasthan and Haryana. Brahmins consider themselves the
descendants of the seven main sages, Angiras, Bhrugu, Vishvamitra, Kashyap,
Vasishtha, Atri and Agasti.
Its origin lies in the
Rig-Veda; ancient Sanskrit language. Kaushik was the
son of Kushika an Indian legend.
Visvamitra Gotra: There was a king named Kusha (not to be
confused with Kusha,
son of Rama), a brainchild of Brahma, and Kusha's son was the powerful and verily
righteous Kushanabha. One who is highly renowned by the name Gaadhi was the son of Kushanabha, and Gaadhi's
son is this great-saint of great resplendence, Vishvamitra. Vishvamitra ruled
the earth, and this great-resplendent king ruled the kingdom for many thousands
of years
People belonging to the
Visvamitra Gotra consider Brahmarishi Visvamitra as their ancestor. There is an
off-shoot of "Vishvamitra Gotra" called "Chakita Vishvamitra
Gotra". Two explanations have been suggested for this off-shoot. The group
is supposed to have sprung from a "surprised" reaction of
Vishvamitra. The other, more likely, explanation, is that a group of
descendants decided to split from the main group and started their own branch
of this line. A significant number of Bias Brahmins have Kaushik gotra.
Vishvamitra descendants still
use Kaushik as their first or last name. This is how majority of the Hindu
names were followed. This system of following Rishis' name as the last name was
the foundation of "Gautra" in Hindu philosophy. Gautra is used to
trace back ancestry especially at the time of marriages till today. Kaushik as
the last name is mostly seen in Uttar Pradesh and Haryana (Northern India). for
e.g. Pawan Kaushik. Kaushik is also commonly used as a first name (mostly used
by people in West Bengal,Tamil Nadu, Gujarat and Karnataka in India and
Bangladesh). for e.g.Koushik Ghosh, Kaushik Das.
Gayatri Mantra
Brahmarshi Vishvamitra (Sanskrit विश्वामित्र viśvā-mitra
"all-friend") is one of the most venerated rishi's
or sages of ancient times in India. He is also credited as the author of most
of Mandala 3 of the Rigveda, including the revered great Gayatri Mantra. It is a mantra cum prayer and is found in all
the three Vedas; Rig, Yajur and Sama Veda. Veda's
clearly state that anyone can chant this Mantra, and gain its benefits.
The Puranas mention that only 24 Rishis since antiquity have
understood the whole meaning of, and thus wielded the whole power of, the
Gayatri Mantra. Sage Vishvamitra is supposed to be the first, and Sage Yajnavalkya the last.
Angad chand kaushik i am rajput from gorkhpur up East
ReplyDeleteक्या फर्जी कहानी लिखते थे पहले के ब्राम्हण , एक गाय और एक आदमी ने पूरी सेना को हरा दिया ,
ReplyDeleteब्रह्मर्षि कौशिक विश्वामित्र भगवान कुशनाभ के नहीं बल्कि कुशिक के पौत्र थे। कुशिक के पुत्र होने के कारण ही महेन्द्र गाधी! कौशिक के नाम से विख्यात हुए। कौशिक गाधी की ज्येष्ठ पुत्री सत्यवती काली जो भृगुवंशी ब्राह्मण ऋचिक ऋषि की पत्नी और जमदग्नि ऋषि की माता थी, वे भी कुशिक वंशी होने के कारण कौशिकी कहलायी।
ReplyDeleteकौशिकी काली! कौशिक विश्वामित्र जी की ज्येष्ठ बहन और कौशिक गाधी की पुत्री थी। जिस स्थान पर इनका निवास स्थल था वहाँ पर प्रवाहित होने वाली नदी इसी देवी के नाम पर आज भी काली नदी के नाम पर विख्यात है जबकि यही नदी आगे बढ़ने पर कोसी नदी (कौशिकी नदी का अपभ्रंश) के नाम से पहचाना जाता है।
बलकाश्व नन्दन कुश के चार पुत्रों कुशिक, कुशनाभ, कुशाम्ब और मूर्तिमान में से कुशिक ज्येष्ठ थे तथा वनवासी पह्लवों के साथ पल कर बड़े हुए थे। राजा कुशिक की पत्नी सूर्यवंशी राजा पुरुकुत्स की पुत्री थी।
कौशिक विश्वामित्र भगवान की पत्नी शालावती के गर्भ से उत्पन्न तीन पुत्रों देवश्रवा, कात्यायन गोत्र के प्रवर्तक कति, और हिरण्याक्ष का जन्म हुआ था। जबकि दूसरी पत्नी रेणु से उत्पन्न पुत्रों के नाम रेणुमान, सांकृति, गालव, मुद्गल, मधुछन्द, जय और देवल था। दृषद्वती के गर्भ से अष्टक का जन्म हुआ जबकि ययाति नन्दन यदु की बहन माधवी के गर्भ से कच्छप और हारित का जन्म हुआ था। नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर वासीनी देवी चक्षुष्मति के गर्भ से भगवान अग्निदेव को भी जन्म दिए थे। इनके अलावा पाणिन, बभ्रु, ध्यानजप्य, पार्थिव, शुनःशेप देवरात, शालङ्कायन, बाष्कल, लोहित, यामदूत, कारीषु, सौश्रुत, कौशिक, सैन्धवायन, देवल, रेणु, याज्ञवल्क्य, अघमर्षण, औदुम्बर, अभिष्णात, तारकायन, चुञ्चुल, शालावत्य और सांकृत सहित कई विद्वान पुत्र थे।
इसके अलावा एक अप्सरा मेनका के गर्भ से भी कौशिक विश्वामित्र भगवान के अंश से देवी शकुन्तला ने जन्म लिया था, जो राजर्षि कण्व की दत्तक पुत्री बन कर पुरुवंशी राजा दुष्यंत कुमार की पत्नी और भरत की माता बनी थी। शकुन्तला के अलावा कौशिक विश्वामित्र भगवान की एकऔर अति सुन्दरी कन्या थी। जो जन्म से ही कुब्जा होने के कारण कान्यकुब्ज के नाम से प्रसिद्ध थी।
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ReplyDeleteTum logo ko kuch bhi nahi atajata hai kaushik isliye vo lagate hai kyuki vo log kaushik Nadi ke tat varti pradesh ke hoge vishwa Mitra ke vanshaj apna gotra lagaye ge naki kaushik
ReplyDeleteOr they are fake and or they studied under vishwamitra students that's why they using it because I am lineage of gadhi naresh vishwamitra
Shivaji is from Rajasthan your story is fake
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