शिव उपासक अभीर/ अहीर कालचुर्य कुलदेवी माँ महामाया तथा इष्ट देवता हाटकेश्वर महादेव की जय हो!





अभीर/ अहीरकालचुर्य (कलचूरी) युग।
प्राचीन समय मे पृथ्वी के मध्य मे स्थित सुमेरु (मेरु) पर्वत के उत्तर मे चार दिव्य जाती नाग, यक्ष, गांधर्व, कुंभन का वर्णन मिलता है। सुमेरु पर्वत के ऊपर सपाट प्रदेश मे सुरलोक नीचे पाताललोक या असुरलोक होने की मान्यता है। जंबुद्वीप सुमेरु के दक्षिण मे होने का वर्णन मिलता है। संभवतः यह भारतीय उपखंड के स्खलन जावा द्वीप के स्थिरीकरण से पहले की स्थिति का वर्णन हो सकता है।
प्राचीन मेसोपोटेमिया (सुरप्रदेश/सुमेरिया/सिरिया) के अभीर या सुराभीर नाग की ओर से विश्व को कृषिशास्त्र, गोवंशपालन,मेषपालन या पशुपालन आधारित अर्थतंत्र, भाषा लेखन लिपि, चित्र मूर्तिकला, स्थापत्य कला (नगर शैली), नगर रचना (उन्ही के नाम से नगर शब्द), खाध्यपदार्थो मे खमीरिकरण या किण्वन (fermentation) प्रक्रिया की तकनीक (अचार, आटा/ब्रेड/नान, घोल/batter, सिरका, सुरा) इत्यादि जैसी सदैव उपयोगी भेट मिली है जो वर्तमान युग मे भी मानव जीवन और अर्थतन्त्र की द्रष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
भारतवर्ष के इतिहास मे जगह जगह पर अभीर राज्य यहा तक की अभीर दस्युओ का भी वर्णन मिलता है जो की अभीरो की संघर्ष गाथा के बिखरे पन्ने हो सकते है। ऐतिहासिक स्थापत्यकला के द्रष्टिकोण से अभीर समवायी धर्मनिरपेक्ष होने के साथ साथ हिन्दू वैदिक संस्कृति के प्रखर अनुयायी रहे है। अभीर अपने नाम के पीछे देव, राय, गुप्त, ब्रहमन वर्मन या बर्मन, सेन, मित्र इत्यादि लगाते थे।
चाइनिज साहित्य के अनुसार कुषाण साम्राज्य को पाँच कुलीनयुएझ़ीमे से एक का दर्जा प्राप्त था परंतु कुशाण और कुलीनयुएझ़ीके बीच का संबंध स्पष्ट नहीं होता है। शैवपंथी कुषाण राजवंश के ही राजा विम कैडफाइसिस (विम कपिशास) कालीन सिक्को पर भगवान शिव का रुद्र स्वरूप एव नंदी को देखा जा सकता है।
सांप्रदायिक सद्भावना सभी अभीर शाशकों की लाक्षणिकता रही है। हिन्दू वैदिक संस्कृति मे आस्था रखते हुए भी अभीरों ने राज्य व्यवस्था मे समय समय पर जर्थ्रोस्टि, बौद्ध, जैन सम्प्रदायो को भी पर्याप्त महत्व दिया है। हिन्दू वैदिक संस्कृति(खास कर शैवपंथ) के साथ साथ जर्थोष्टि बौद्ध सम्प्रदायो को भी समान आदर देनेवाले प्राचीन ग्रीक मूल के माने जाते कुशाण शाशको मे भी यही विशेषता का दर्शन होता है। माना जाता है की सासानीड आक्रमणों के चलते कुशाण साम्राज्य का अस्त हुआ।
नागवंश चंद्रवंश से संबन्धित अभीरो मे शैव वैष्णव दोनोही मान्यता वाले वर्ग थे। अफघानी कालटोयक हरिता को इसी संदर्भ मे देखा जाता है। भारतवर्ष मे त्रिकुटक वंश के अभीर वैष्णव धर्मावलम्बी होने की मान्यता है। सक शिलालेखों मे भी अभीर का उल्लेख मिलता है। अभीरों मे नाग पुजा गोवंश का विशेष महत्व रहा है। सोलोमन के मंदिरो से लेकर के वर्तमान शिवमंदिरो मे नंदी का विशेष स्थान रहा है। मध्य भारत के अभीर कालचुर्यों का राजचिन्ह भी स्वर्ण-नंदी ही था।
सोलोमन, हरप्पन, कुशाण से लेकर के कालचुर्य तक सभी अभीर राज्यो मे महारुद्र भगवान शिव, गोवंश (गाय, नंदी/वृषभ), देवी महामाया, धार्मिक स्थापत्य, सांप्रदायिक सदभावना, स्त्री दाक्षिण्य, लोकोपयोगी कार्य, लिपिज्ञान संशोधन, मुद्रा, सिक्के इत्यादि की महत्ता समानरूप से द्रष्टिगोचर होती है। उल्लेखनीय है की कालचुर्य इष्ट देवता महारुद्र भगवान शिव ब्रह्मा विष्णु महेश के त्रिदेव स्वरूप तथा कुल देवी माँ महामाया (सरस्वती, लक्ष्मी महिसासुरमर्दिनी का त्रिदेवी स्वरूप) का पूजन करते थे। उनका राज चिन्ह स्वर्ण नंदी (स्वर्ण वृषभ) था।








Comments

Popular posts from this blog

धनगर समाजातील आडनावे-

List of Hatkar clans

About 108 clans(108 कुळ/कुल) of Dhangars and 22 sub castes (22 पोट जाती).