कुषाण राजवंश
कुषाण प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था। कुषाण चलवासी पशुचारणिक जन(pastoral
nomadic) संबंधित लोग थेI कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युएझ़ी लोगों के मूल का मानते है। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबातक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में युएझ़ी नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी।
कुषाण वंश की वंशावली:
ब्रह्मा-प्रजापति -कुश(श्रीराम के बेटे कुश नही)-कुशनाभ -राजा गाधि -राजा/ऋषि विश्वामित्रा-कौशिक- नागा पुण्डरीक/ पुंडलिक राजा/ऋषि- पुंड्र/ औंड्र धनगर- राजा विट्ठल-हट्टी हटकर और गुर्जर- कुषाण सम्राट कनिष्क द ग्रेट-खखरात(क्षहरात), शिंदे और सुळे/शक/Western Satraps/Saka -शक सम्राट शालिवाहन- पुंडीर- परिहार/ गुर्जर प्रतिहार वंश-गुर्जर सम्राट मिहिर भोज- गवली धनगर- छत्रपति शिवाजी.
रबातक शिलालेख :अफ़्ग़ानिस्तान के बग़लान प्रान्त में सुर्ख़ कोतल के पास स्थित रबातक (رباطک, Rabatak) नामक पुरातन स्थल पर एक शिला पर बाख़्तरी भाषाऔर यूनानी लिपि में कुषाण वंश के प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क के वंश के बारे में एक २३ पंक्तियों का लेख है। यह इतिहासकारों को सन् १९९३ में मिला था और इस से कनिष्क के पूर्वजों के बारे में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी मिलती है। इसमें कनिष्क ने कहा है कि वह एक नाना नमक देवी का वंशज है और उसने अपने साम्राज्य में यूनानी भाषा को हटाकर आर्य भाषा चला दी है। उसने इसमें अपने पड़-दादा कोजोला कादफ़ीस, दादा सद्दाशकन, पिता विमा कादफ़ीस और स्वयं अपना ज़िक्र किया हैI
Kushans were member of a nomadic pastoralist ( चलवासी पशुचारणिक जन ) people. The Kushans were one of five branches of the Yuezhi confederation, a possibly Iranian or Tocharian Indo-European nomadic people who had migrated from the Tarim Basin and settled in ancient Bactria. Some of the Kushan kings, amongst them Kanishka, had a Turushka origin.
Their official language, the Indo-European Bactrian language, is closely related to the modern Afghan languages. were the people of Turkistan. In Sanskrit and Persian sources they are known as the Indo-Scythians or Turks, who, under Kanishka and other kings of the people, held Northern India.Generally, Turushka, a Sanskritized form of Turk, is used as an ethnic term for people from central Asia.
प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युएझ़ी लोगों के मूल का मानते है। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबातक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते है।
इतिहास:
सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वन्श को चीन से आया हुआ माना गया है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में युएझ़ी नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी। इसका सामना ह्युगनु कबीलों से हुआ जिसने इन्हें इनके क्षेत्र से खदेड़ दिया। ह्युगनु के राजा ने ह्यूची के राजा की हत्या कर दी। ह्यूची राजा की रानी के नेतृत्व में ह्यूची वहां से ये पश्चिम दिशा में नये चरागाहों की तलाश में चले। रास्ते में ईली नदी के तट पर इनका सामना व्ह्सुन नामक कबीलों से हुआ। व्ह्सुन इनके भारी संख्या के सामने टिक न सके और परास्त हुए। ह्यूची ने उनके चरागाहों पर अपना अधिकार कर लिया। यहां से ह्यूची दो भागों में बंट गये, ह्यूची का जो भाग यहां रुक गया वो लघु ह्यूची कहलाया और जो भाग यहां से और पश्चिम दिशा में बढा वो महान ह्यूची कहलाया। महान ह्यूची का सामना शकों से भी हुआ। शकों को इन्होंने परास्त कर दिया और वे नये निवासों की तलाश में उत्तर के दर्रों से भारत आ गये। ह्यूची पश्चिम दिशा में चलते हुए अकसास नदी की घाटी में पहुचे और वहां के शान्तिप्रिय निवासिओं पर अपना अधिकार कर लिया। सम्भवतः इनका अधिकार बैक्ट्रिया पर भी रहा होगा। इस क्ष्रेत्र में वे लगभग १० वर्ष ईपू तक शान्ती से रहे। चीनी लेखक फान-ये ने लिखा है कि यहां पर महान ह्यूची ५ हिस्सों में विभक्त हो गये - स्यूमी, कुई-शुआंग, सुआग्म, ,। बाद में कुई-शुआंग ने क्यु-तिसी-क्यो के नेतृत्व में अन्य चार भागों पर विजय पा लिया और क्यु-तिसी-क्यो को राजा बना दिया गया। क्यु-तिसी-क्यो ने करीब ८० साल तक शासन किया। उसके बाद उसके पुत्र येन-काओ-ट्चेन ने शासन सम्भाला। उसने भारतीय प्रान्त तक्षशिला पर विजय प्राप्त किया। चीनी साहित्य में ऐसा विवरण मिलता है कि, येन-काओ-ट्चेन ने ह्येन-चाओ (चीनी भाषा में जिसका अभिप्राय है - बड़ी नदी के किनारे का प्रदेश जो सम्भवतः तक्षशिला ही रहा होगा)। यहां से कुई-शुआंग की क्षमता बहुत बढ गयी और कालान्तर में उन्हें कुषाण कहा गया।
कुषाण वंश की वंशावली:
ब्रह्मा-प्रजापति -कुश(श्रीराम के बेटे कुश नही)-कुशनाभ -राजा गाधि -राजा/ऋषि विश्वामित्रा-कौशिक- नागा पुण्डरीक/ पुंडलिक राजा/ऋषि- पुंड्र/ औंड्र धनगर- राजा विट्ठल-हट्टी हटकर और गुर्जर- कुषाण सम्राट कनिष्क द ग्रेट-खखरात(क्षहरात), शिंदे और सुळे/शक/Western Satraps/Saka -शक सम्राट शालिवाहन- पुंडीर- परिहार/ गुर्जर प्रतिहार वंश-गुर्जर सम्राट मिहिर भोज- गवली धनगर- छत्रपति शिवाजी.
रबातक शिलालेख :अफ़्ग़ानिस्तान के बग़लान प्रान्त में सुर्ख़ कोतल के पास स्थित रबातक (رباطک, Rabatak) नामक पुरातन स्थल पर एक शिला पर बाख़्तरी भाषाऔर यूनानी लिपि में कुषाण वंश के प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क के वंश के बारे में एक २३ पंक्तियों का लेख है। यह इतिहासकारों को सन् १९९३ में मिला था और इस से कनिष्क के पूर्वजों के बारे में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी मिलती है। इसमें कनिष्क ने कहा है कि वह एक नाना नमक देवी का वंशज है और उसने अपने साम्राज्य में यूनानी भाषा को हटाकर आर्य भाषा चला दी है। उसने इसमें अपने पड़-दादा कोजोला कादफ़ीस, दादा सद्दाशकन, पिता विमा कादफ़ीस और स्वयं अपना ज़िक्र किया हैI
Kushans were member of a nomadic pastoralist ( चलवासी पशुचारणिक जन ) people. The Kushans were one of five branches of the Yuezhi confederation, a possibly Iranian or Tocharian Indo-European nomadic people who had migrated from the Tarim Basin and settled in ancient Bactria. Some of the Kushan kings, amongst them Kanishka, had a Turushka origin.
Their official language, the Indo-European Bactrian language, is closely related to the modern Afghan languages. were the people of Turkistan. In Sanskrit and Persian sources they are known as the Indo-Scythians or Turks, who, under Kanishka and other kings of the people, held Northern India.Generally, Turushka, a Sanskritized form of Turk, is used as an ethnic term for people from central Asia.
प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युएझ़ी लोगों के मूल का मानते है। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबातक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते है।
इतिहास:
सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वन्श को चीन से आया हुआ माना गया है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में युएझ़ी नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी। इसका सामना ह्युगनु कबीलों से हुआ जिसने इन्हें इनके क्षेत्र से खदेड़ दिया। ह्युगनु के राजा ने ह्यूची के राजा की हत्या कर दी। ह्यूची राजा की रानी के नेतृत्व में ह्यूची वहां से ये पश्चिम दिशा में नये चरागाहों की तलाश में चले। रास्ते में ईली नदी के तट पर इनका सामना व्ह्सुन नामक कबीलों से हुआ। व्ह्सुन इनके भारी संख्या के सामने टिक न सके और परास्त हुए। ह्यूची ने उनके चरागाहों पर अपना अधिकार कर लिया। यहां से ह्यूची दो भागों में बंट गये, ह्यूची का जो भाग यहां रुक गया वो लघु ह्यूची कहलाया और जो भाग यहां से और पश्चिम दिशा में बढा वो महान ह्यूची कहलाया। महान ह्यूची का सामना शकों से भी हुआ। शकों को इन्होंने परास्त कर दिया और वे नये निवासों की तलाश में उत्तर के दर्रों से भारत आ गये। ह्यूची पश्चिम दिशा में चलते हुए अकसास नदी की घाटी में पहुचे और वहां के शान्तिप्रिय निवासिओं पर अपना अधिकार कर लिया। सम्भवतः इनका अधिकार बैक्ट्रिया पर भी रहा होगा। इस क्ष्रेत्र में वे लगभग १० वर्ष ईपू तक शान्ती से रहे। चीनी लेखक फान-ये ने लिखा है कि यहां पर महान ह्यूची ५ हिस्सों में विभक्त हो गये - स्यूमी, कुई-शुआंग, सुआग्म, ,। बाद में कुई-शुआंग ने क्यु-तिसी-क्यो के नेतृत्व में अन्य चार भागों पर विजय पा लिया और क्यु-तिसी-क्यो को राजा बना दिया गया। क्यु-तिसी-क्यो ने करीब ८० साल तक शासन किया। उसके बाद उसके पुत्र येन-काओ-ट्चेन ने शासन सम्भाला। उसने भारतीय प्रान्त तक्षशिला पर विजय प्राप्त किया। चीनी साहित्य में ऐसा विवरण मिलता है कि, येन-काओ-ट्चेन ने ह्येन-चाओ (चीनी भाषा में जिसका अभिप्राय है - बड़ी नदी के किनारे का प्रदेश जो सम्भवतः तक्षशिला ही रहा होगा)। यहां से कुई-शुआंग की क्षमता बहुत बढ गयी और कालान्तर में उन्हें कुषाण कहा गया।
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