भगवान हाटकेश्वर अभीर/अहीर – कालचुर्य (कलचूरी) युग। कालचुर्य कुलदेवी माँ महामाया तथा इष्ट देवता हाटकेश्वर महादेव की जय हो!
अभीर/अहीर – कालचुर्य (कलचूरी) युग।
कालचुर्य कुलदेवी माँ महामाया तथा इष्ट देवता हाटकेश्वर महादेव की जय हो!
कालचुर्य कुलदेवी माँ महामाया तथा इष्ट देवता हाटकेश्वर महादेव की जय हो!
माना जाता है के नाग व चंद्रवश से संबन्धित कालचुरयो के पूर्वज हाटक ने इष्टदेवता भगवान शिव की कृपा से अपने नाम से हाटक राज्य की स्थापना की और भोलेनाथ भगवान शिव की हाटकेश्वर रूप मे अर्चना की। ऐसी मान्यता है की उनके वंशज बब्रुवाहन ने मध्यभारत के रायपुर व गुजरात के वडनगर मे हाटकेश्वर महादेव का भव्य मंदिर बनवाया। कालचुर्य वंश के राजा रामचन्द्र के पुत्र ब्रह्मदेव ने १४वी शताब्दी मे रायपुर के पास खारुण नदी के तट पर अपने इष्ट देवता हाटकेश्वर महादेव मंदिर को पुनः स्थापित किया। तत्पश्चात वडनगर का वर्तमान हाटकेश्वर मंदिर १७वी शताब्दी मे बना। कालचुर्य कुलदेवी माँ महामाया का मंदिर अम्बिकापुर के पास बिलासपुर मे रतनपुर शाखा के राजा रत्नासेन ने १०वी शताब्दी मे बनवाया। सभी स्थापत्य प्रशिष्ट नागर शैली मे है जो खजुराहो के मंदिरो से समरूप है।
कला व ज्ञान का सम्मान करने वाले कलचूरी स्वयं भी ज्ञान पिपासु रहे थे। कालचुर्य काल से पूर्व भाषा लेखन के लिए आर्मेईक और कोशट्रू जैसी लिपि से व्युत्पन्न ब्राह्मी लिपि का चलन था। भारतवर्ष मे प्रयोग मे आने वाली सर्व लेखन लिपियो समेत दक्षिण एशिया की लगभग ४० लेखन लिपयो का उद्भव इसी लिपि से हुआ है।
आज भारतीय उपखंड मे सर्वाधिक प्रयोग मे आने वाली देवनागरी लिपि का उद्भव भी कालचुर्य काल मे ही हुआ।
अभीर लाक्षणिक्तानुसार ही सभी कालचुर्य राजाओ ने भी अपने कार्य काल मे विविध चित्र व अंकन वाले सिक्के भी जारी किए जिसे ‘रूपक’ कहा जाता था।
कला व ज्ञान का सम्मान करने वाले कलचूरी स्वयं भी ज्ञान पिपासु रहे थे। कालचुर्य काल से पूर्व भाषा लेखन के लिए आर्मेईक और कोशट्रू जैसी लिपि से व्युत्पन्न ब्राह्मी लिपि का चलन था। भारतवर्ष मे प्रयोग मे आने वाली सर्व लेखन लिपियो समेत दक्षिण एशिया की लगभग ४० लेखन लिपयो का उद्भव इसी लिपि से हुआ है।
आज भारतीय उपखंड मे सर्वाधिक प्रयोग मे आने वाली देवनागरी लिपि का उद्भव भी कालचुर्य काल मे ही हुआ।
अभीर लाक्षणिक्तानुसार ही सभी कालचुर्य राजाओ ने भी अपने कार्य काल मे विविध चित्र व अंकन वाले सिक्के भी जारी किए जिसे ‘रूपक’ कहा जाता था।
उस दौर के मध्य भारत मे कदंब व उनके अनुगामी/वंशज चालुक्य, राष्ट्रकूट, कालचुर्य जैसे राजवंशो का आधिपत्य था। दक्षिण मे पल्लवो का आधिपत्य था। यह सभी इंडो आर्यन सिंथियन मूल के थे। कालचुर्यों का नाग व चन्द्र वंश से नाता उनके शाकाद्वीपी मूल का ही द्योतक है।
यह सभी हिन्दू वैदिक संस्कृति आधारित राज्य व्यवस्था वाले राज्य थे।
यह सभी हिन्दू वैदिक संस्कृति आधारित राज्य व्यवस्था वाले राज्य थे।
महाराष्ट्राचे मूळ नाव 'मरहट्ट' असून तिथे हट्टी किंवा
हाट लोकांची वस्ती हट्टी होती. शं. ब जोशी यांच्या मते यांच्या मते "महाराष्ट्र
या देशाचे मूळ नाव मरहट्ट असे होते. ते नाव कानडी आहे." मर हा कानडी शब्द असून
त्याचा अर्थ झाड असा आहे.आणि हट्ट म्हणजेच लढाऊ मेषपालक जनसमूह. दंडकारण्यातील या झाडी
मंडळासच पुढे मरहठ असे नाव मिळाले असा भावार्थ. (मर= झाड, हट्टी= प्रदेश). कानडीतील
नाचिरजिय, मंगराजनिघंटु वगैरे जुन्या शब्दकोशात 'हट्टीकार' म्हणजे गवळी असा अर्थ दिलेला
आहे.
तेव्हा झाडीत राहणारे हट्टी ते मरहट्टे लोक होत आणि
त्यांच्यावरून त्यांच्या भाषेला नाव हे स्पष्ट आहे.जोशी यांनी हट्टी- हटक जनांचा ईश्वर
तो हाटकेश्वर असा समास सोडविला आहे.मरहट्टाच्या नावाची ओळख ज्यात स्पष्ट दिसते अशा
मऱ्हाटी > मराठी या नावने ते ओळखले जाऊ लागले.
‘मरहट्ट’ हा शब्द कानडी असून ‘झाडीमंडळ’ असा प्रदेशवाचक
एक अर्थ व झाडीमंडळातील ‘हट्टीजन’ (पशुपालन करणारे धनगर-गवळी) असा दुसरा लोकवाचक अर्थ
होता.
अभीर – कालचुर्य (कलचूरी) युग।
प्राचीन मेसोपोटेमिया (सुरप्रदेश/सुमेरिया/सिरिया) के अभीर या सुराभीर नाग की ओर से विश्व को कृषिशास्त्र, गोवंशपालन या पशुपालन आधारित अर्थतंत्र, भाषा लेखन लिपि, चित्र व मूर्तिकला, स्थापत्य कला (नगर शैली), नगर रचना (उन्ही के नाम से नगर शब्द), खाध्यपदार्थो मे खमीरिकरण या किण्वन
(fermentation) प्रक्रिया की तकनीक (अचार, आटा/ब्रेड/नान, घोल/batter, सिरका, सुरा) इत्यादि जैसी सदैव उपयोगी भेट मिली है जो वर्तमान युग मे भी मानव जीवन और अर्थतन्त्र की द्रष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
सोलोमन, हरप्पन, कुशाण से लेकर के कालचुर्य तक सभी अभीर राज्यो मे महारुद्र भगवान शिव, गोवंश (गाय, नंदी/वृषभ), देवी महामाया, धार्मिक स्थापत्य, सांप्रदायिक सदभावना, स्त्री दाक्षिण्य, लोकोपयोगी कार्य, लिपिज्ञान संशोधन, मुद्रा, सिक्के इत्यादि की महत्ता समानरूप से द्रष्टिगोचर होती है। उल्लेखनीय है की कालचुर्य इष्ट देवता महारुद्र भगवान शिव व ब्रह्मा विष्णु महेश के त्रिदेव स्वरूप तथा कुल देवी माँ महामाया (सरस्वती, लक्ष्मी व महिसासुरमर्दिनी का त्रिदेवी स्वरूप) का पूजन करते थे। उनका राज चिन्ह स्वर्ण नंदी (स्वर्ण वृषभ) था।
उस दौर के मध्य भारत मे कदंब व उनके अनुगामी/वंशज चालुक्य, राष्ट्रकूट, कालचुर्य जैसे राजवंशो का आधिपत्य था। दक्षिण मे पल्लवो का आधिपत्य था। यह सभी इंडो आर्यन सिंथियन मूल के थे। कालचुर्यों का नाग व चन्द्र वंश से नाता उनके शाकाद्वीपी मूल का ही द्योतक है।
यह सभी हिन्दू वैदिक संस्कृति आधारित राज्य व्यवस्था वाले राज्य थे।
About Hatti-Hatak-Hatkar
and Hatkeshwar.
Hatti is the aristocratic
class made of Yaduvanshi and Nagvanshi Dhangars.
Prakrit word Hatti/Khatti
is derived from Sanskrit word
Kshatriya.Khattia/Hattia is the prakrit form of Kshatriya.
Word Hatak is derived from
Hatti. In Arthshastra by Kauttilya Hatak means Spear /Bhala.Thus Hatkars are shepherding
warriors with spear.Hatkars are also known as Barge/Bargal means Horsmen with
spear.Barge word is derived from Barchi means spear or Bhala.
Hatkeshwar is the lord of
Hatti people.
Abhir is the ancient tribe
of cattel herders/Pashupalak.
Abhira is sanskrit
word.Abhira means brave warrior.Other meaning of Abhira is black/naga people.
Ahir is prakrit form of
sanskrit Abhira.
There are many
vansh/lineage in Abhira/Ahir.
In Dhangars Nagvanshi and
Yaduvanshi Ahirs are found.
Hatti /Hatkar sub caste of
Dhangars is an aristocratic class of Nagvanshi and Yaduvanshi Ahirs.
There is Ahir Dhangar sub
caste of Dhangars.
There are Abhira Brahman
also.
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