नागवंश और नागों का साम्राज्य
मैं नागों में अनंत (शेष नाग) हूं।– श्रीकृष्ण
नागवंश का संक्षिप्त परिचय
भारत में आर्य, द्रविड़, दासों के साथ ही नागवंशी
समाजों का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है।
कश्यप ऋषि और उनकी नाग पत्नी कुदरू के एक सौ
एक नाग पुत्रों का पूरे काश्मीर से शकस्थान तक साम्राज्य फैला थाI अनंत
(शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का
भारत में वर्चस्व था। यह सभी कश्यप वंशी थे, लेकिन इन्ही से नागवंश चला।इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के
उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है।
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है।
नागवंशी का इतिहास: नागवंशीयों
का इतिहास बड़ा गौरवशाली रह हैI लक्ष्मणजी, ऋषि पुण्डरीक (पुंडलिक), भगवान
गौतम बुद्ध, भगवान विट्ठल एवं बिरोबा नागवंशी थेI
धनगर मौर्य,खरात, कर्दम/कदम, होळकर, शिंदे, सुळ, पिंगळे नाग
लोक थेI पुण्डरीक (पुंडलिक) गोत्र के नागवंशी शक- सुळ, खरात और शिंदे माउंट आबू, राजस्थान के अग्निकुंड के बाद अग्निवंशी
परिहार कहलायेंI सरगरा और चालुक्य प्राचीन अग्निवंशी क्षत्रिय हैI इन का जन्म
यज्ञकुंड से
हुआ हैI धनगर पिंगळे पिंगला नाग के वंशज है। शक
सम्राट शालिवाहन नागवंशी धनगर ही थेI
कभी कभी अगर हम नागवंश को सुर्यवंश
कहे तो गलत नही होगा क्योंकि सूर्यवंशी प्रभु श्रीराम के भ्राता लक्ष्मण जी शेषनाग
थेI
पुण्डरीक(पुंडलिक) वंश की उत्पत्ति:पुण्डरीक(पांडुरंग)
का मतलब हैं सफेद नाग!
इतिहास कार
इस वंश को सूर्यवंशी भी कहते हैं क्योंकि पुण्डरीक नाग ने प्रभु श्रीराम के जेष्ठ पुत्र
कुशा के कुल में जन्म लिया थाI राजा
पुण्डरीक ऋषि भी थेI पुण्डरीक के वंशज पुंड्र/ पुण्डीर धनगर कहलायेंI पुंड्र धनगर पंढरपुर शहर के संस्थापक हैंI भगवान
विट्ठल एवं बिरोबा पुंड्र धनगर थेI
हिंदू धर्म के दो भाग माने जाते हैं:- पहला वेद और दूसरा पुराण। नाग पूजा का प्रचलन पुराण पर आधारित है। माना जाता है कि मूलत: शैव, शाक्त, नाथ और नाग पंथियों में ही नागों की पूजा का प्रचलन था। वैष्णव आर्य तो परमशक्ति ब्रह्म (ईश्वर) के अलावा प्रकृति के पांच तत्वों की स्तुति करते थे।
भारत में आर्य, द्रविड़, दासों के साथ ही नागवंशी
समाजों का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। उक्त चारों की संस्कृति, परम्पराएं और
रीति-रिवाज अलग-अलग माने जाते थे। आज सब कुछ घालमेल हो चला है। फिर भी यह अभी शोध
का विषय बना हुआ है।
नाग से संबंधित कई बातें आज भारतीय संस्कृति, धर्म और परम्परा का हिस्सा बन गई हैं, जैसे नाग देवता, नागलोक, नागराजा-नागरानी, नाग मंदिर, नागवंश, नाग कथा, नाग पूजा, नागोत्सव, नाग नृत्य-नाटय, नाग मंत्र, नाग व्रत और अब नाग कॉमिक्स।
नाग और नाग जाति : जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। लेकिन भारत के धार्मिक और सामाजिक इतिहास को सर्वसम्मत बनाकर कभी भी क्रमबद्ध रूप से नहीं लिखा गया इसीलिए विरोधाभास ही अधिक नजर आता है।
महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है।
नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला।
वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
नाग से संबंधित कई बातें आज भारतीय संस्कृति, धर्म और परम्परा का हिस्सा बन गई हैं, जैसे नाग देवता, नागलोक, नागराजा-नागरानी, नाग मंदिर, नागवंश, नाग कथा, नाग पूजा, नागोत्सव, नाग नृत्य-नाटय, नाग मंत्र, नाग व्रत और अब नाग कॉमिक्स।
नाग और नाग जाति : जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। लेकिन भारत के धार्मिक और सामाजिक इतिहास को सर्वसम्मत बनाकर कभी भी क्रमबद्ध रूप से नहीं लिखा गया इसीलिए विरोधाभास ही अधिक नजर आता है।
महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को 'नागभाषा' कहते हैं।
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का 'अनंतनाग' इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है।
नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला।
वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
उनके बाद
ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय,
कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के
वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था।
अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।
अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।
नाक कुल की
भूमि : यह सभी नाग को पूजने वाले नागकुल थे इसीलिए उन्होंने नागों की प्रजातियों
पर अपने कुल का नाम रखा। जैसे तक्षक नाग के नाम पर एक व्यक्ति जिसने अपना 'तक्षक'
कुल चलाया। उक्त व्यक्ति का नाम भी तक्षक था जिसने राजा परीक्षित की हत्या कर दी
थी। बाद में परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लिया था।
'नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।
पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
शहर और गांव : नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव 'नाग' शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। बहुत सी महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी।
इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में 'नागदाह' नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।
'नागा आदिवासी' का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।
पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
शहर और गांव : नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव 'नाग' शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। बहुत सी महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी।
इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में 'नागदाह' नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।
क्षाहरात. हे विदेशी. शक होते याचा नायनाट उच्छेद सातवाहन सातकर्णी याने केला होता त्यामुळे देशी धनगर याचे शक क्षा हरात यांचे शी काहीच संबंध नाही उठ सुठ कोणालाही धनगर दाखवू नको
ReplyDeleteअगदी बरोबर
ReplyDeleteFake है। दुनिया का कोई science ये नही proof कर सकता है कि नागों से कोई इंसानी वंश भी चल सकता है
ReplyDeleteमौर्य वंश तो है ना..
DeleteNice post
ReplyDeleteHame bhi pade