दक्षिण भारत में कलचुरी शासन :धनगर- चेदि वंश(हैहय/ हट्टी/कलचुरी):यादव साम्राज्य- चेदि वंश एवं कलचुरी राजवंश






कलचुरियों ने दक्षिण भारत से कल्याणी के चालुक्यों को उखाड़ फेंका और एक विशाल साम्राज्य की स्थापन किये | उन्होंने मंगलवेदा को अपनी राजधानी बनाई |
दक्षिण भारत में प्रमुख कलचुरी शासक
उचिता 
असागा
कन्नम
किरियासगा
बिज्जाला I
कन्नमा
जोगमा 
बिज्जाला II (1130-1167) -1162 में स्वतंत्रता की घोषणा की |
सोविदेव (1168-1176)
मल्लुगी (भाई संकर्मा द्वारा गद्दी से हटाया गया)
संकर्मा (1176- 1180)
अश्वमल्ल (1180-1183)
सिन्घन (1183-1184)
About Hatti/Hittite:
In India, the Hittites were also known as Cedis or Chedis (pronounced Hatti or Khetti). Indian historians classify them as one of the oldest castes of the Yadavas. "The Cedis formed one of the most ancient tribes among the Ksatriyas (the aristocratic class made up of Hittites and Kassites) in early Vedic times. As early as the period of the Rgveda the Cedi kings had acquired great reknown... they were one of the leading powers in northern India in the great epic." (Yadavas Through the Ages, p. 90 by Dr.J.N.Singh Yadav)
Jerusalem was a Hittite (Indian hereditary leadership caste) city at the time of Abraham's death. In Genesis 23:4, Abraham asked the Jerusalem Hittites to sell him a burial plot.
About Hatti/Hittite/Hatkar/Dhangar people of India and there contribution to the modern world
http://history.knoji.com/interesting-facts-about-the-hitti…/
हट्टी शब्द का मतलब
क्षत्रिय को प्राकृत भाषा में खत्तिय कहा जाता हैI खत्तिय को पश्चिम यूरेशिया में भाषा बदलाव के कारण खट्टी/ हट्टी कहा गयाI जैसे कि यादव को जादौन/जादव कहा गयाI
चेदि वंश
चेदि आर्यों का एक अतिप्राचीन वंश है। ऋग्वेद की एक दानस्तुति में इनके एक अत्यंत शक्तिशाली नरेश कशु का उल्लेख है। ऋग्वेदकाल में ये संभवत: यमुना और विंध्य के बीच बसे हुए थे।
पुराणों में वर्णित परंपरागत इतिहास के अनुसार यादवों के नरेश विदर्भ के तीन पुत्रों में से द्वितीय कैशिक चेदि का राजा हुआ और उसने चेदि शाखा का स्थापना की।
चेदी प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका शासन क्षेत्र मध्य तथा पश्चिमी भारत था। आधुनिक बुंदलखंड तथा उसके समीपवर्ती भूभाग तथा मेरठ इसके आधीन थे। शक्तिमती या संथिवती इसकी राजधानी थी।
कलचुरि नाम से भारत में दो राजवंश थे- एक मध्य एवं पश्चिमी भारत (मध्य प्रदेश तथा राजस्थान) में जिसे 'चेदि', या 'हैहय' या 'उत्तरी कलचुरि' कहते हैं तथा दूसरा 'दक्षिणी कलचुरी' जिसने वर्तमान कर्नाटक के क्षेत्रों पर राज्य किया।
चेदि वंश एवं कलचुरी राजवंश
कलचुरि अपने को कार्तवीर्य अर्जुन(सहस्त्रबाहु अर्जुन) का वंशज बतलाते थे और इस प्रकार वे पौराणिक अनुवृत्तों की हैहय जाति की शाखा थे।
कलचुरीकल्ली और चुरी शब्द के मेल से बना है | कल्ली का अर्थ होता हैलम्बी मूंछे एवं चुरी का अर्थ होता हैतेज नाख़ून/ चाकू | विधर्मी ब्राह्मण परशुराम द्वारा हैहय यादवों की राजधानी महिष्मती को इक्कीस बार नष्ट करने पर, कार्तवीर्य अर्जुन के वंशजों ने आस-पास के वनों में शरण ले लिया | जंगलों में रहने के कारण उनके मूंछ, दाढ़ी और नाख़ून काफी लम्बे हो गए थे | इसलिए उनके वंशज कलचुरी कहलाये | 
(
महाराष्ट्राचे मूळ नाव 'मरहट्ट' असून तिथे हट्टी किंवा हाट लोकांची वस्ती हट्टी होती. शं. जोशी यांच्या मते यांच्या मते "महाराष्ट्र या देशाचे मूळ नाव मरहट्ट असे होते. ते नाव कानडी आहे." मर हा कानडी शब्द असून त्याचा अर्थ झाड असा आहे.आणि हट्ट म्हणजेच लढाऊ मेषपालक जनसमूह. दंडकारण्यातील या झाडी मंडळासच पुढे मरहठ असे नाव मिळाले असा भावार्थ. (मर= झाड, हट्टी= प्रदेश). कानडीतील नाचिरजिय, मंगराजनिघंटु वगैरे जुन्या शब्दकोशात 'हट्टीकार' म्हणजे गवळी असा अर्थ दिलेला आहे. 
तेव्हा झाडीत राहणारे हट्टी ते मरहट्टे लोक होत आणि त्यांच्यावरून त्यांच्या भाषेला नाव हे स्पष्ट आहे.जोशी यांनी हट्टी- हटक जनांचा ईश्वर तो हाटकेश्वर असा समास सोडविला आहे.मरहट्टाच्या नावाची ओळख ज्यात स्पष्ट दिसते अशा मऱ्हाटी > मराठी या नावने ते ओळखले जाऊ लागले.
महाराष्ट्र-महारठ्ठ-रठ्ठ या नामचिकित्सेवरून या प्रदेशातरट्टलोकांनी मूळ वसाहत केली असे दिसते. ‘मरहट्टहा शब्द कानडी असूनझाडीमंडळअसा प्रदेशवाचक एक अर्थ झाडीमंडळातीलहट्टीजन’ (पशुपालन करणारे धनगर-गवळी) असा दुसरा लोकवाचक अर्थ होता.)
छठी शताब्दी के आस-पास उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापन किये, जिसके अंतर्गत आधुनिक गुजरात, उत्तरी महाराष्ट्र एवं मालवा के क्षेत्र आते थे | इसकी एक दूसरी शाखा ने गोरखपुर के नजदीक अपनी राज्य का स्थापना किये | इसकी तीसरी शाखा ने बुंदेलखंड में एक महान एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना किये, जिसे चेदि राज्य भी कहा जाता था | जिसकी राजधानी त्रिपुरी (तेवर) था, जो जबलपुर के पास स्थित है |
कलचुरी शैवोपासक थे इसलिए उनके बनवाए मदिरों में शिव मंदिर अधिक हैं। उनमें त्रिदेवों की पूजा भी होती थी। स्थारपत्य और मूर्तिकला को कलचुरियों ने काफी प्रोत्सादहन दिया। ऐसी भी धारणा है कि समाज में विभिन्न वर्गों में उपजातियों का निर्माण इसी काल में हुआ था।
भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास में कलचुरी नरेशों का स्थान कई दृष्टियों में विशिष्ट है | संवत 550 से 1740 तक लगभग 1200 वर्षों की अवधि में कलचुरी नरेशों ने भारत के उत्तर तथा दक्षिण स्थित किसी किसी प्रदेश में अपना राज्य चलाया है | भारत वर्ष के इतिहास में ऐसा कोई भी राजवंश नहीं हुआ जिसने इतने लम्बी अवधि तक अपना राज्य चलाया हो | इस वंश ने उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों पर अलग-अलग समय पर राज किया है |



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