अहीर-गुप्त राजवंश: भारत का स्वर्ण युग. The Mighty Gupta of Pataliputra: The Golden age of India.







गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। मौर्य और गुप्त साम्राज्य भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है।
मौर्य शासकों के बाद शक-कुषाण राजाओं का शासन इस देश में रहा, उनमें कनिष्क महान और वीर 
था कनिष्क के बाद कोई राजा इतना वीर और शक्तिशाली नहीं हुआ, जो विस्तृत और सुदृढ़ राज्य का गठन करता इसके परिणाम स्वरुप देश में अनेक छोटे-बड़े राज्य बन गये थे किसी में राजतंत्र और किसी में जनतंत्र था राजतंत्रों में मथुरा और पद्मावती राज्य के नागवंश विशेष प्रसिद्व थे जनतंत्र शासकों में यौधेय, मद्र, मालव और अजुर्नायन प्रमुख थे उत्तर-पश्चिम के प्रदेशों में शक और कुषाणों के राज्य थे
मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था।
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस अवधि का योगदान आज भी सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है। कालिदास इसी युग की देन हैं। अमरकोश, रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा अनेक पुराणों का वर्तमान रूप इसी काल की उपलब्धि है।
महान गणितज्ञ आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर गुप्त काल के ही उज्ज्वल नक्षत्र हैं। दशमलव प्रणाली का आविष्कार तथा वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला ओर धातु-विज्ञान के क्षेत्र की उपलब्धियों पर आज भी लोगों का आनंद और आश्चर्य होता है।
गुप्त राजवंश की उत्पति:
इतिहासकार डी. आर. रेग्मी के अनुसार गुप्त वंश की उत्पति नेपाल के प्राचीन अभीर-गुप्त राजवंश (गोपाल राजवंश) से हुई थी | इतिहासकार एस. चट्टोपाध्याय ने पंचोभ ताम्र-पत्र के हवाले से कहा कि गुप्त राजा क्षत्रिय थे तथा उनका उद्भव प्राचीन अभीर-गुप्त वंश से हुई थी | गोप एवं गौ शब्द से गुप्त शब्द की उत्पति हुई है |
इतिहास:
गुप्त काल भारत का स्वर्ण काल कहा गया है. इसी शासन काल के कारण उस समय भारत वर्ष सोने की चिड़िया कहलाया। आरम्भ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। कालिदास के संरक्षक सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-415 .) इसी वंश के थे। यही 'विक्रमादित्य' और 'शकारि' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 .) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। बालादित्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी . में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है।
गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था।
इस राजवंश में जिन शासकों ने शासन किया उनके नाम इस प्रकार है:-
श्रीगुप्त (240-280 .),
घटोत्कच (280-319 .),
चंद्रगुप्त प्रथम (319-335 .)
समुद्रगुप्त (335-375 .)
रामगुप्त (375 .)
चंद्रगुप्त द्वितीय (375-414 .)
कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य (415-454 .)
स्कन्दगुप्त (455-467 .)


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